यूपी चुनाव: चंद्रशेखर और अखिलेश के मिलने से क्या पश्चिमी यूपी में गेमचेंजर हो जाएगी सपा?

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी की आरएलडी के साथ गठबंधन फाइनल कर लिया है और अब भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को भी साथ लाने में जुटे हैं. ऐसे में अगर चंद्रशेखर और अखिलेश के बीच गठबंधन बन जाता है तो सपा पश्चिमी यूपी में गेमचेंजर साबित हो सकती है, क्योंकि जाट-मुस्लिम-दलित वोटर मिलकर किसी भी दल का खेल बिगाड़ सकते हैं?

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चंद्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव चंद्रशेखर आजाद और अखिलेश यादव

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 29 नवंबर 2021,
  • अपडेटेड 12:57 PM IST
  • जयंत के बाद चंद्रशेखर के साथ सपा गठबंधन करेगी?
  • पश्चिम यूपी में जाट-मुस्लिम-दलित समीकरण बनेगा
  • पश्चिमी यूपी में 109 सीटों पर बीजेपी का कब्जा है

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी के गठबंधन फॉर्मूले से ही बीजेपी को शिकास्त देने की रणनीति पर सपा प्रमुख अखिलेश यादव इन दिनों काम कर रहे हैं. सूबे में जातीय समीकरण के चलते कुछ हजार वोट भी खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखने वाले छोटे तमाम दलों को अखिलेश यादव अपने साथ मिलाने में जुटे हैं. सपा इस तरह बीजेपी के खिलाफ मजबूत सोशल इंजीनियरिंग के साथ 2022 के चुनावी रण में उतरने की तैयारी में है.  

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पश्चिमी यूपी में सपा का गठबंधन फॉर्मूला

पूर्वांचल में ओमप्रकाश राजभर और संजय चौहान की पार्टी से हाथ मिलाने के बाद अखिलेश यादव ने पश्चिमी यूपी में जयंत चौधरी की आरएलडी के साथ गठबंधन फाइनल कर लिया है. वहीं, अब भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद को भी साथ लाने में जुटे हैं. ऐसे में अगर चंद्रशेखर और अखिलेश के बीच गठबंधन बन जाता है तो सपा पश्चिमी यूपी में गेमचेंजर साबित हो सकती है.  

यूपी में दलित वोटों के सहारे अपनी सियासी राह तलाश रहे चंद्रशेखर आजाद की सपा प्रमुख अखिलेश यादव से रविवार को मुलाकात नहीं हो सकी. लेकिन, बीजेपी और सपा के बीच 2022 का विधानसभा चुनाव जिस तरह से सिमटता जा रहा है. ऐसे में चंद्रशेखर देर-सबेर अखिलेश की साइकिल पर सवारी करते नजर आ सकते हैं. अखिलेश-जयंत चौधरी-चंद्रशेखर की तिकड़ी पश्चिम यूपी में बीजेपी और बीएसपी दोनों के लिए सियासी तौर पर कड़ी चुनौती पेश कर सकती है. 

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सपा का जाट-मुस्लिम-दलित कॉम्बिनेशन

पश्चिम यूपी की सियासत में जाट, मुस्लिम और दलित वोटर काफी अहम भूमिका अदा करते हैं. आरएलडी का कोर वोटबैंक जहां जाट माना जाता है तो सपा का मुस्लिम है. वहीं, चंद्रशेखर आजाद दलित नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है. वो बसपा के लगातार गिरते ग्राफ का सियासी फायदा उठाने की कवायद में है. 2017 में सहारनपुर में ठाकुरों और दलितों के बीच हुए जातीय संघर्ष में दलित समाज के युवाओं के बीच चंद्रशेखर ने मजबूत पकड़ बनाई है.

चंद्रशेखर आजाद ने आजतक से बातचीत करते हुए कहा कि हमारी पार्टी ने तय किया है कि गठबंधन के साथ 2022 चुनाव में जाना चाहिए. दो दिसंबर से पहले गठबंधन फाइनल करना है, जिसके लिए लखनऊ में रहकर तमाम सियासी नेताओं से मुलाकात करेंगे. चंद्रशेखर ने कहा कि कॉमन मिनिमम प्रोग्राम बनाने पर बात करेंगे और सीट शेयरिंग को कोई बड़ा मुद्दा नहीं है. 

जयंत चौधरी के बाद अगर चंद्रशेखर भी अखिलेश यादव के साथ हाथ मिला लेते हैं तो पश्चिमी यूपी में दलित-मुस्लिम-जाट का मजबूत कॉम्बिनेशन सपा गठबंधन का बन सकता है. पूरे उत्तर प्रदेश में जाट भले ही 4 फीसदी है, लेकिन पश्चिमी यूपी में 20 फीसदी के करीब हैं. वहीं, मुस्लिम 30 से 40 फीसदी के बीच हैं और दलित समुदाय भी 25 फीसदी के ऊपर है. इन तीनों जातियों के साथ ही साथ कश्यप और सैनी वोटरों पर भी सपा की नजर है.  

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जाट-मुस्लिम फिर साथ आ रहे हैं

वरिष्ठ पत्रकार सिद्धार्थ कलहंस कहते हैं कि 2013 मुजफ्फरनगर दंगे के बाद बीजेपी जाट समुदाय को जोड़कर उसने अपनी सियासी जमीन को मजबूत किया, लेकिन किसान आंदोलन के चलते जाट-मुस्लिम के बीच दूरियां पटती दिखी. आरएलडी को सियासी संजीवनी मिली है. चंद्रशेखर आजाद की दलित समुदाय के बीच पकड़ मजबूत हुई है. जयंत चौधरी, चंद्रशेखर और अखिलेश एक साथ आते हैं तो पश्चिमी यूपी की दूसरी तमाम छोटी-छोटी जातियां भी जुड़ेंगी, जो सपा के लिए सियासी तौर पर गेमचेंजर साबित हो सकती है. 

पश्चिम यूपी में बीजेपी के पास 109 सीट

बता दें कि 2017 के विधानसभा चुनाव में पश्चिम यूपी की कुल 136 सीटों में से 109 सीटें बीजेपी ने जीती थीं. 20 सीटें सपा के खाते में आई थीं. कांग्रेस दो सीटें और बसपा तीने सीटें जीती थी. वहीं, एक सीट आरएलडी के खाते में गई थी. सूबे के बदले हुए सियासी समीकरण में सपा और आरएलडी के साथ आने के बाद अब जिस तरह चंद्रशेखर के भी गठबंधन में शामिल होने की चर्चाएं है, उससे बीजेपी के लिए अपने पुराने नतीजे को दोहराना आसान नहीं होगा.  

पश्चिमी यूपी की 136 में से करीब 95 ऐसी है, जहां जाट-मुस्लिम-दलित को मिलकर 60 फीसदी से ज्यादा पहुंच रहा है. यही वो समीकरण है, जिसे अखिलेश यादव सियासी तौर पर अमलीजामा पहनाना चाहते हैं. बीजेपी का इसी समीकरण के टूटने का फायदा 2017 के चुनाव में मिला था, जिसके चलते विपक्ष का पूरे इलाके से सफाया हो गया था. 

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'चंद्रशेखर अभी मायावती के विकल्प नहीं'

वरिष्ठ पत्रकार अजय श्रीवास्तव कहते हैं कि 2019 के लोकसभा चुनाव में भी अखिलेश-मायावती और चौधरी अजित सिंह ऐसा ही समीकरण बनाकर उतरे थे. इस गठबंधन का सपा-आरएलडी से ज्यादा बसपा को फायदा मिला था. किसान आंदोलन से पश्चिमी यूपी का माहौल बदला है और बीजेपी के खिलाफ बना. जयंत चौधरी का सियासी ग्राफ भी बढ़ा है जबकि दलित नेता के तौर चंद्रशेखर आजाद उभरे हैं, लेकिन अभी तक मायावती का विकल्प नहीं बन सके हैं. 

जयंत-अखिलेश के आने से सपा और आरएलडी को फायदा हो सकता है, लेकिन चंद्रशेखर के जरिए दलित वोटर आएगा, यह कहना अभी मुश्किल हैं. हालांकि, बसपा का सियासी ग्राफ गिरा है, उससे दलित वोट भी बसपा से खिसका है. सूबे में दलित वोटर करीब 22 फीसदी है, लेकिन वो जाटव और गैर-जाटव दलित के बीच बंटा हुआ है. जाटव 14 फीसदी हैं तो गैर-जाटव वोटों की आबादी करीब 8 फीसदी है. 

मायावती और चंद्रशेखर आजाद दलित समुदाय के एक ही जाति से आते हैं और एक ही क्षेत्र से हैं. दोनों जाटव समाज से संबंध रखते हैं. इस लिहाज से पश्चिमी यूपी में अगर सपा अपने साथ चंद्रशेखर मिलाती है तो गठबंधन में दलित समाज की भागेदारी बढ़ेगी. चंद्रशेखर के जरिए दलितों का भले ही पूरा वोट गठबंधन के साथ न आए, लेकिन हर सीट पर चार से पांच हजार वोट जरूर मिल सकता है. यह वोट सपा के लिए गेमचेंजर पश्चिमी यूपी में हो सकता है.
 

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