इंदौर में भाजपा की विजय लगभग तय, लेकिन क्या होगा जीत का अंतर? कांग्रेस बोली- NOTA बनाएगा रिकॉर्ड

इंदौर में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार ने नाम वापस ले लिया था. ये झटका कांग्रेस को 29 अप्रैल को लगा था, जब उसके उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया. इसकी वजह से इंदौर के 72 साल के इतिहास में पहली बार सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को मतदान में कोई हिस्सेदारी नहीं मिली.

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सांसद शंकर लालवानी टिकट मिलते ही चौंक गए सांसद शंकर लालवानी टिकट मिलते ही चौंक गए

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 03 जून 2024,
  • अपडेटेड 10:33 PM IST

लोकसभा चुनाव के परिणाम अब कुछ घंटों में आने वाले हैं. ऐसे में इंदौर लोकसभा सीट को लेकर अलग ही बहस जारी है, क्योंकि यहां भाजपा की जीत लगभग तय है. हालांकि इस पर चर्चा जारी है कि जीत की लीड कितनी रहेगी. भाजपा ने सोमवार को कहा कि, उसकी जीत का अंतर रिकॉर्ड 10 लाख के हाई लेवल पर होगा. वहीं, विपक्षी कांग्रेस ने दावा किया है, नोटा पर रिकार्ड वोट पड़ेंगे. बता दें कि पिछली बार लोकसभा चुनाव में जीत का मार्जिन पांच लाख 47 हजार था.

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दरअसल, इंदौर में लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस उम्मीदवार ने नाम वापस ले लिया था. ये झटका कांग्रेस को 29 अप्रैल को लगा था, जब उसके उम्मीदवार अक्षय कांति बम ने अपना नामांकन वापस ले लिया. इसकी वजह से इंदौर के 72 साल के इतिहास में पहली बार सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी को मतदान में कोई हिस्सेदारी नहीं मिली. कांग्रेस, इसे "लोकतंत्र का गला घोंटना" बताया था. वहीं, इंदौर में कांग्रेस ने पूरे प्रचार के दौरान वोटर्स से "भारतीय जनता पार्टी को सबक सिखाने" के लिए ईवीएम पर नोटा दबाने के लिए अपील की थी.

भारत निर्वाचन आयोग के आंकड़ों के अनुसार, इंदौर में मतदान 13 मई को हुआ था, जिसमें 25.27 लाख मतदाताओं में से 61.75 प्रतिशत ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. 
पर्यवेक्षकों के अनुसार, जबकि 14 उम्मीदवार मैदान में थे, मुख्य लड़ाई भाजपा के मौजूदा सांसद शंकर लालवानी और नोटा के बीच थी. लालवानी ने मीडिया से कहा, ''हमें विश्वास है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हम इंदौर में 10 लाख से अधिक वोटों के अंतर से अब तक की सबसे बड़ी जीत दर्ज करेंगे.'' 2019 के चुनाव में उन्होंने कांग्रेस के पंकज संघवी को 5.48 लाख वोटों से हराया था.

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2019 में, इंदौर में 69.31 प्रतिशत मतदान हुआ, जिसमें 5,045 मतदाताओं ने नोटा का विकल्प चुना. मंगलवार को मतगणना की पूर्व संध्या पर वरिष्ठ कांग्रेस नेता शोभा ओझा ने कहा, "इस बार इंदौर में नोटा को कम से कम दो लाख वोट मिलेंगे. यह राष्ट्रीय रिकॉर्ड इतिहास में दर्ज होगा. यह भाजपा जैसे राजनीतिक दलों के लिए एक सबक होगा." जो लोकतंत्र का गला घोंटता है.” नोटा को सितंबर 2013 में सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले के बाद पेश किया गया था. संयोग से, 2019 में बिहार की गोपालगंज लोकसभा सीट पर नोटा का रिकॉर्ड 51,660 वोट या लगभग 5 प्रतिशत मतदान है. 

जहां तक ​​अधिकतम जीत अंतर का सवाल है, 2019 के लोकसभा चुनावों में, गुजरात भाजपा प्रमुख सीआर पाटिल ने नवसारी से 6.90 लाख वोटों से जीत हासिल की. अक्टूबर 2014 में हुए लोकसभा उपचुनाव में बीजेपी की प्रीतम मुंडे ने महाराष्ट्र के बीड से 6.96 लाख वोटों के अंतर से जीत हासिल की थी. भाजपा के कद्दावर नेता गोपीनाथ मुंडे की कार दुर्घटना में मौत के कारण उपचुनाव जरूरी हो गया था.

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