वाराणसी: महागठबंधन से मोदी को टक्कर देगी ये पूर्व कांग्रेस नेत्री

सपा-बसपा गठबंधन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ वाराणसी संसदीय सीट से शालिनी यादव को प्रत्याशी बनाया है. शालिनी यादव पहले कांग्रेस में थीं. वे वाराणसी से ही मेयर का चुनाव कांग्रेस पार्टी के सिंबल पर लड़  चुकी हैं. अगर कांग्रेस पार्टी भी किसी दिग्गज को यहां से उतार देती है तो मुकाबलता दिलचस्प हो सकता है.

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(फाइल फोटो- शालिनी यादव) (फाइल फोटो- शालिनी यादव)

कुमार अभिषेक

  • वाराणसी,
  • 23 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 6:37 AM IST

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ समाजवादी पार्टी(सपा) और बहुजन समाज पार्टी(बसपा) गठबंधन ने वाराणसी सीट पर अपने प्रत्याशी के नाम का ऐलान कर दिया है. पीएम मोदी के खिलाफ शालिनी यादव अपना भाग्य आजमाने उतरेंगी. इससे पहले शालिनी यादव कांग्रेस में थीं उन्होंने पाला बदलकर सोमवार को समाजवादी पार्टी का दामन थाम लिया. वाराणसी की यह सीट गठबंधन में समाजवादी पार्टी के खाते में गिरी है.

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ऐसे में समाजवादी पार्टी पीएम मोदी के खिलाफ टक्कर देने वाले किसी प्रत्याशी के नाम पर फैसला नहीं कर पा रही थी. पार्टी को अपनी पार्टी में कोई नेता नहीं मिला तो पूर्व कांग्रेसी को ही पार्टी में शामिल कर लिया.

वाराणसी सीट लोकसभा चुनाव 2014 के बाद से ही सबसे वीआईपी सीट में तब्दील हो चुकी है. यहां अगर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी खुद नहीं उतरतीं हैं तो लड़ाई बेहद आसान साबित हो सकती है. शालिनी यादव के पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात की जाए तो उनका कांग्रेस से पुराना रिश्ता है. वे इससे पहले वाराणसी से मेयर का चुनाव लड़ चुकी हैं.

नरेंद्र मोदी के आने से पहले वाराणसी से 2009 का चुनाव बीजेपी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुरली मनोहर जोशी ने लड़ा था और विजयी रहे थे. 2014 में भी जोशी यहीं से लड़ना चाहते थे, लेकिन मोदी की वजह से उन्हें यह सीट छोड़नी पड़ गई थी. 1952 में वाराणसी (सेंट्रल) से कांग्रेस के रघुनाथ सिंह को जीत मिली थी और वह 1962 तक यहां से लगातार 3 बार विजयी रहे थे.  1967 के चुनाव में सत्यनारायण सिंह ने कम्युनिस्ट पार्टी की टिकट पर लड़े और उन्हें यहां से जीत मिली.

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1990 के दशक देश में मंदिर आंदोलन शुरू होने के बाद बीजेपी एक नई ताकत के रूप में उभरी और 1991 से 1999 तक लगातार 4 चुनावों में बीजेपी को जीत हासिल हुई.  2004 के चुनाव में कांग्रेस ने एक अरसे बाद वापसी की. कांग्रेस उम्मीदवार डॉक्टर राजेश कुमार मिश्रा ने यहां से 3 बार के सांसद शंकर प्रसाद जयसवाल को हरा दिया. फिर 2009 के चुनाव में बीजेपी ने कद्दावर नेता मुरली मनोहर जोशी को टिकट दिया और उन्होंने जीत हासिल करते हुए अपनी पार्टी की पकड़ को बनाए रखा. फिर 2014 के चुनाव में नरेंद्र मोदी ने यहां आकर बड़ी जीत हासिल की और देश के प्रधानमंत्री पद पर काबिज हुए. 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी एक बार फिर बीजेपी प्रत्याशी के रूप में अपनी चुनौती पेश कर रहे हैं.

2011 की जनगणना के मुताबिक 36.8 लाख है जिसमें 19.2 लाख (52%) पुरुष और 17.5 लाख (48%) महिलाओं की आबादी शामिल है. इनमें से 86% आबादी सामान्य वर्ग की है, जबकि 13% आबादी अनुसूचित जाति की है और महज 1% आबादी अनुसूचित जनजाति की है. इसमें 57% यानी 20.8 लाख आबादी ग्रामीण इलाकों में और 43% यानी 16 लाख आबादी शहरी इलाकों में रहती है.

धर्म के आधार पर वाराणसी में 85 फीसदी आबादी हिंदुओं की है जबकि 15 फीसदी मुस्लिम समाज के लोग रहते हैं. यहां के लिंगानुपात का अनुपात देखा जाए तो प्रति हजार पुरुषों पर 913 हिंदू और 915 मुसलमान महिलाएं रहती हैं. वाराणसी का साक्षरता दर 76% है जिसमें 84 फीसदी पुरुषों की आबादी तो 67% महिलाओं की आबादी साक्षर है.

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चुनाव में मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री पद के दावेदार नरेंद्र मोदी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच था. हालांकि इस मुकाबले में मैदान में 42 प्रत्याशियों ने अपनी चुनौती पेश की थी. इसमें 20 उम्मीदवार बतौर निर्दलीय मैदान में थे. नरेंद्र मोदी ने आसान मुकाबले में केजरीवाल को 3,71,784 मतों के अंतर से हराया था. मोदी को कुल पड़े वोटों में 581,022 यानी 56.4% वोट हासिल हुए जबकि आम आदमी पार्टी के प्रत्याशी अरविंद केजरीवाल के खाते में 2,09,238 (20.3%) वोट पड़े. तीसरे नंबर पर कांग्रेस के उम्मीदवार अजय राय रहे जिनके खाते में महज 75,614 वोट ही पड़े. अब देखते हैं कि बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस और सपा-बसपा गठबंधन अलग-अलग किस तरह से जीतने दावेदारी पेश कर सकते  हैं.

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