पश्चिम बंगाल में चुनावी हिंसा का दौर जारी है. पश्चिम बंगाल में पांचवें चरण के मतदान के दौरान भी हिंसक झड़पें हो रही हैं. बैरकपुर में भाजपा और टीएमसी समर्थकों के बीच झड़प हुई है. बीजेपी प्रत्याशी अर्जुन सिंह ने टीएमसी कार्यकर्ताओं पर हमला करने का आरोप लगाया, जबकि टीएमसी ने भाजपा पर गुंडागर्दी करने का आरोप लगाया है. पश्चिम बंगाल में 60 के दशक से राजनीतिक झड़पें और हिंसा ही चुनावी हथियार रहे हैं. शासन और प्रशासन पर सत्ताधारी दल अपना वर्चस्व बनाए रखने के लिए ऐसे हथियारों का उपयोग करते आए हैं.
2019 लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल में मतदान भी बंपर हो रहा है. पिछले दो चुनावों की बात करें तो देश के अन्य राज्यों की तुलना में यहां सबसे ज्यादा वोट पड़े हैं. 2009 के लोकसभा चुनाव में बंगाल में 81.40% वोट पड़े थे और 2014 की मोदी लहर में भी राज्य की 82.17% जनता ने वोट डाला था. बंगाल की बंपर वोटिंग दिखाती है कि विभिन्न दलों का कैडर अपने नेताओं के साथ मजबूती से खड़ा है. भीषण गर्मी और हिंसा की घटनाएं भी बंगाल की जनता का मनोबल तोड़ने में नाकाफी रहती हैं.
पश्चिम बंगाल में 4 चरणों की हिंसा और मतदान
भाजपा और तृणमूल के बीच कड़ी टक्कर
पश्चिम बंगाल की अधिकांश सीटों पर मुकाबला भाजपा और तृणमूल में ही है. चुनाव आयोग के आंकड़ों को देखें तो हाल ही में हुए स्थानीय निकाय के चुनाव में टीएमसी ने 1,614 सीटों और भाजपा ने 1,143 सीटों के लिए नामांकन भरा. कांग्रेस और माकपा इस मामले में काफी पीछे थी. साफ पता चलता है कि आम चुनाव में भी बंगाल में मुकाबला भाजपा और तृणमूल में ही है.1960 के दशक में शुरू हुआ राजनीतिक हिंसा का दौर
बंगाल में राजनीतिक हिंसा की शुरुआत 1960 के दशक में हुई. इस राजनीतिक हिंसा के पीछे तीन अहम कारण हैं- राज्य में बढ़ती बेरोजगारी, विधि शासन पर सत्ताधारी दल का वर्चस्व. अभी एक अन्य प्रमुख कारण यह भी है कि जिस तरह से भाजपा का उभार हुआ है, उससे तनाव बढ़ा हुआ है.1977 से 2007 तक 28 हजार राजनीतिक हत्याएं
पश्चिम बंगाल विधानसभा के एक जवाब के मुताबिक 1977 से 2007 तक (लेफ्ट फ्रंट की सत्ता) 28,000 राजनीतिक हत्याएं हुई थीं. सिंगूर और नंदीग्राम का आंदोलन भी हिंसा का एक नमूना है. लेकिन बहुत सारी घटनाएं तो ऐसी होती हैं, जो रिपोर्ट ही नहीं हो पातीं.मोदी Vs ममता
मोदी और ममता की सियासी जंग किसी से छुपी हुई नहीं है. 2014 में भाजपा को बंगाल में सिर्फ 2 सीटें मिली थीं, लेकिन पार्टी ने पिछले 5 साल में यहां संगठन को काफी मजबूत किया है. इसका नतीजा है कि भाजपा राज्य में चौथे नंबर से दूसरे नंबर की पार्टी बन गई है. वहीं, अब बांग्लादेशी घुसपैठियों का मुद्दा हो या फिर NRC ऐसे तमाम ज्वलंत मुद्दों पर दोनों दलों के बीच तलवारें पहले से खिंची हुई हैं. हालांकि टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी बंगाल में बीजेपी के लिए कोई भी स्पेस नहीं देना चाहती हैं.
ऋचीक मिश्रा