लोकसभा चुनाव के 5 चरण पूरे हो चुके हैं. छठा चरण 12 मई को होगा. इस बार के चुनाव का खर्च करीब 5418 करोड़ रुपए है. यह 2014 के चुनाव से करीब 40% ज्यादा है. पिछली बार 3870 करोड़ रुपए खर्च हुए थे. इस चुनाव के छठे चरण तक के 60 सबसे रईस उम्मीदवारों की कुल संपत्ति 10,075 करोड़ है. जो इस लोकसभा चुनाव के कुल खर्च से दोगुना है. ये चाहें तो लोकसभा चुनाव दो बार करवा दें.
यही नहीं, चुनाव आयोग ने इस लोकसभा चुनाव में अब तक करीब 3500 करोड़ रुपए से अधिक कीमत की अवैध शराब, नकदी और आभूषण आदि जब्त की है. यह राशि 2014 के लोकसभा चुनाव के कुल खर्च 3870 करोड़ रुपए से थोड़ी ही कम है. अगर 1951-52 के चुनाव का खर्च 10.45 करोड़ रुपए था. जो अब 518 गुना बढ़कर 5418 करोड़ हो गया है.
हर वोटर पर चुनाव का खर्च 6 पैसे से बढ़कर 60 रु. हो गए
1952 में 17.32 करोड़ वोटर थे. हर वोटर पर चुनाव के खर्च का बोझ करीब 60 पैसे पड़ता था. अब 90 करोड़ वोटर हैं, तो चुनाव के खर्च का बोझ भी बढ़कर 60 रु. हो गई है. यह राशि 2014 के खर्च से 13.86 रु. ज्यादा है.
जानिए... हर चरण के 10 रईस उम्मीदवारों की संपत्ति
लगातार बढ़ता रहा चुनाव का खर्च और वोटर्स की संख्या
1952 में पहला चुनाव था और सबकुछ शुरुआत से होना था. बैलेट पेपर से लेकर चुनावी तैयारियों के लिए कुल 10.45 करोड़ रुपए का बजट रखा गया था. हालांकि 1957 में हुए दूसरे चुनाव का बजट तकरीबन आधा हो गया. लेकिन 1977 में चुनाव का बजट पिछले चुनावी बजट से दोगुना हो गया. 1971 में चुनाव का खर्च 11.61 करोड़ था. 1977 में बढ़कर 23.03 करोड़ पर पहुंच गया.
लोकसभा चुनाव का खर्च केंद्र और विधानसभा का राज्य सरकार करती है
लोकसभा पर होने वाले खर्चों को केंद्र सरकार वहन करती है जबकि विधान सभा के चुनावी व्यवस्था पर होने वाले खर्चों को राज्य सरकार चुकाती है. अगर लोकसभा के साथ ही राज्यों के विधान सभा चुनाव होते हैं तो केंद्र और राज्य दोनों बराबर रूप से चुनाव पर हुए खर्चों को वहन करते हैं. चुनावी खर्चों में स्याही और अमोनिया पेपर से लेकर वोटिंग मशीन और उन्हें बूथ तक ले जाने के साथ मतगणना में लगे कर्मचारियों का दैनिक भत्ता तक शामिल होता है.
ऋचीक मिश्रा