बिहार: जेल की सलाखों के पीछे से भी राजनीति का केंद्र बने हैं लालू प्रसाद यादव

बिहार में पिछले चार दशक की राजनीतिक में पहली बार होगा जब लालू यादव के बिना बिहार का चुनावी संग्राम होगा. ऐसे में उनके कुनबे में भी महाभारत छिड़ी हुई है और खुद को कृष्ण-अर्जुन बताने वाले दोनों बेटे आमने-सामने हैं. ऐसे में लालू के बिना लोकसभा चुनाव में आरजेडी पिछले चुनाव के मुकाबले फायदे में रहेगी या फिर नुकसान में.

Advertisement
लालू प्रसाद यादव (फोटो-फाइल) लालू प्रसाद यादव (फोटो-फाइल)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली,
  • 05 अप्रैल 2019,
  • अपडेटेड 4:28 PM IST

बिहार की सियासत के बेताब बादशाह कहे जाने वाले आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव सजायाफ्ता होने के चलते जेल में हैं, लेकिन फिलहाल इलाज के लिए रांची के रिम्स हॉस्पिटल में भर्ती हैं. इसके चलते लालू यादव बिहार की चुनावी महासंग्राम में न तो उतरेंगे और नहीं उनकी आवाज सुनाई सुनाई देगी. पिछले चार दशक की राजनीतिक में पहली बार होगा जब लालू यादव के बिना बिहार का चुनावी संग्राम होगा. ऐसे में उनके कुनबे में भी महाभारत छिड़ी हुई है और खुद को कृष्ण-अर्जुन बताने वाले दोनों बेटे आमने-सामने हैं. ऐसे में आरजेडी के लिए अंदर और बाहर दोनों चुनौतियों से समाना करना पड़ रहा है.

Advertisement

1970 के दशक में लालू यादव अपना सियासी सफर जीरो से शुरू किया और सड़क से संसद तक संघर्ष कर बिहार के दलितों-पिछड़ों और वंचितों की आवाज बन गए. 15 साल तक बिहार की सत्ता पर काबिज रहने के बाद लालू को 2005 के राज्य विधानसभा चुनाव में जबरदस्त झटका लगा. लेकिन मोदी के केंद्र में राजनीतिक उदय होने के बाद लालू अपने पुराने तेवर में नजर आए.

2014 में हार से हताश विपक्ष को लालू ने जीत का फॉर्मूला दिया. बिहार में लालू ने नीतीश के साथ मिलकर महागठबंधन का निर्माण किया. बिहार में यह राजनीतिक समीकरण मोदी-शाह पर भारी पड़ा और इसने महाबंधन के पक्ष में वोटों की बरसात कर दी. इससे बीजेपी की जीत का सिलसिला ही नहीं थमा बल्कि विपक्ष में एक उम्मीद जगी कि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी को हराया जा सकता है. लालू ने एक बार फिर जता दिया कि सियासी दांवपेच में उनका कोई जोड़ नहीं है.

Advertisement

बिहार की सियासत के 40 साल में पहली बार है कि लालू प्रसाद यादव चुनावी रणभूमि में नजर नहीं आ रहे हैं. लालू की अनुपस्थित में आरजेडी की बागडोर उनके बेटे और बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव संभाल रहे हैं. लेकिन उनके लिए सबसे बड़ा सिरदर्द उनके बड़े भाई तेज प्रताप बने हुए हैं.

आरजेडी नेता व राज्यसभा सदस्य मनोज झा ने आजतक से बातचीत करते हुए कहा, 'लालूजी के बिना बिहार ही नहीं बल्कि उत्तर भारत में चुनाव की परिकल्पना नहीं की जा सकती है. सच है कि आरजेडी के लिए उनकी अनुपस्थिति मायने रखती है, लेकिन उनकी अनुपस्थिति किन वजहों, किन लोगों और किन साजिशों से है, यह चीज ज्यादा महत्व रखती है. ऐसे में जाहिर है कि चुनाव के दौरान लोग अपने नेता को अपने बीच देखना चाहते हैं, लेकिन ऐसा नहीं हो पाया. सत्तापक्ष की ओर से पूरी कोशिश की गई कि लालूजी चुनाव में मौजूद न रहें. बिहार का जनता इसका मुंहतोड़ जवाब देने का मन बना चुकी है.'

बिहार की राजनीति को करीब से देखने वाले वरिष्ठ पत्रकार हिमांशु मिश्रा कहते हैं कि लालू यादव भले ही जेल में हों, लेकिन मिथक के तौर पर अभी भी बिहार की सियासत में मौजूद हैं. जेल में रहते हुए लालू ने जिस तरह से दलों को जोड़कर गठबंधन और सीटों का बंटवारा किया. इससे साफ है कि लालू अपनी अनुपस्थिति में भी दमदार उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहे. इसीलिए लालू के कमरे की तलाशी की गई.

Advertisement

उन्होंने कहा कि लालू के जेल में रहने से बस यही गलत संदेश जा रहा है कि परिवार नहीं संभल रहा है. राजनीतिक विरासत के लिए दोनों बेटे आमने-सामने हैं. ऐसे में अगर लालू बाहर होते तो परिवार में इस तरह से कलह सामने न आती. इसके अलावा सीपीआई से जो गठबंधन नहीं हो सका, उसे वो सुलझा लेते. जेल में रहते हुए इस मायने में नुकसान रहा है. इसके अलावा जेल में रहने से जिस वर्ग में सहानुभूति है वह वर्ग हमेशा से उनके साथ रहा है. मोदी लहर के बावजूद आरजेडी का 20 फीसदी से ज्यादा वोट रहा है, ऐसे में लालू के जेल में रहने से आरजेडी के यादव और मुस्लिम में वोटिंग प्रतिशत में बढ़ोत्तरी हो सकती है.

राजनीतिक विश्लेषक अलीगढ़ मुस्लिम के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद कहते हैं कि लालू यादव मैदान में रहें या न रहें, लेकिन उनकी राय तो लोगों के सामने आ रही है. लालू के जेल में रहने का आरजेडी को राजनीतिक फायदा मिलेगा, क्योंकि उनके लोग मान रहे हैं कि लालू को अपरक्लास और बीजेपी ने एक साजिश के तहत जेल में डाल रखा है. जबकि दूसरे घोटाले के आरोपी बाहर घूम रहे हैं. आरजेडी के लोग लालू यादव के एक पीड़ित के तौर पर पेश कर रही है. हालांकि लालू के चुनावी मैदान में न रहने से उनके भाषण और अनोखे अंदाज नहीं देखने को मिलेगा.

Advertisement

बता दें कि 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद लालू यादव ही ऐसे एकलौते नेता थे, जिन्होंने नरेंद्र मोदी और अमित शाह के विजय रथ पर ब्रेक लगाने का काम किया था. लालू यादव ने नीतीश कुमार के साथ दुश्मनी भुलाकर हाथ मिलाया और नया राजनीतिक समीकरण बनाया. इसका नतीजा था कि 2015 के विधानसभा चुनाव में मोदी-शाह की जोड़ी को बिहार में करारी मात खानी पड़ी.

हालांकि आरजेडी-जेडीयू का ये साथ बहुत ज्यादा दिनों तक नहीं चल सका. 2018 में नीतीश ने लालू का साथ छोड़कर बीजेपी के साथ दोबारा गठबंधन कर सरकार बना ली. जेडीयू लोकसभा चुनाव में बीजेपी और एलजेपी के साथ मैदान में उतरी है. वहीं, लालू यादव की राजनीतिक विरासत संभाल रहे तेजस्वी यादव ने कांग्रेस समेत कई दलों के साथ महागठबंधन बनाया है. इसमें आरजेडी, कांग्रेस, हिंदुस्ताना आवाम मोर्चा,  आरएलएसपी और वीआईपी पार्टी ने मिलकर गठबंधन किया है.

चुनाव की हर ख़बर मिलेगी सीधे आपके इनबॉक्स में. आम चुनाव की ताज़ा खबरों से अपडेट रहने के लिए सब्सक्राइब करें आजतक का इलेक्शन स्पेशल न्यूज़लेटर

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement