बेंगलुरु उत्तर लोकसभा सीट कर्नाटक राज्य की अहम सीट है. यह सीट राज्य की सबसे बड़ी और देश की तीसरी सबसे बड़ी लोकसभा सीट है. इस सीट पर फिलहाल बीजेपी का कब्जा है और सूबे के पूर्व मुख्यमंत्री सदानंद गौड़ा यहां से सांसद हैं. साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर दिलचस्प मुकाबला हो सकता है क्योंकि जेडीएस पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा को यहां से चुनाव लड़ाना चाहती है जबकि कांग्रेस के एच एम रेवन्ना यहां से चुनाव लड़ने को कमर कस चुके हैं. हालांकि बीजेपी से मौजूदा सांसद और केंद्र में मंत्री सदानंद गौड़ा की दावेदारी फिलहाल तय नहीं है.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
इस सीट को पूर्व में अलग-अलग नामों से जाना जाता रहा है. 1957 से 1962 के चुनाव में यह सीट बेंगलुरु शहर के नाम से जानी गई जबकि पहले इसे बेंगलुरु उत्तर का ही नाम दिया गया था. इस सीट पर 1951 में हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के केशव लिंगर को जीत मिली थी. तब से लेकर साल 1996 तक यानी 45 साल इस सीट पर लगातार कांग्रेस को जीत मिलती रही. पहली बार 1996 में जनता दल के सी नारायणसामी ने बेंगलुरु उत्तर सीट पर जीत दर्ज की. इसके बाद से यहां पर बीजेपी का खाता खुलना शुरू हुआ और 2004 में बीजेपी के एच टी संगलियाना को जीत मिली. 2009 में बीजेपी के डी बी चंद्र गौड़ा और 2014 के चुनाव में बीजेपी के सदानंद गौड़ा यहां से सांसद चुने गए.
बेंगलुरु उत्तर सीट पर अब तक हुए 16 चुनावों में से 12 बार कांग्रेस को जीत मिली है जबकि पिछले तीन चुनावों में लगातार बीजेपी यहां से जीत दर्ज करती आ रही है. इस सीट से एक चुनाव जनता दल ने भी जीता था. कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सी के जफर शरीफ सबसे ज्यादा 7 बार इस सीट से सांसद रहे हैं, जिसमें में 1977-96 तक लगातार 5 बार वो जीत दर्ज कर चुके हैं.
सामाजिक तानाबाना
साल 2014 में इस सीट पर करीब 24 लाख मतदाता थे. इनमें 12.60 लाख पुरुष और 11.40 महिला मतदाता शामिल हैं. अगर आबादी की बात करें तो इस सीट पर 2011 की जनसंख्या के मुताबिक कुल 29 लाख में से 92.54 फीसदी आबादी शहरी है. साथ ही सीट के दायरे में करीब 7.46 ग्रामीण आबादी आती है. जातिगत आधार की बात करें तो सीट के अंतर्गत अनुसूचित जाति (SC) की 11.79 फीसदी और अनुसूचित जनजाति (ST) की 2.21 फीसदी आबादी रहती है.
2014 का जनादेश
साल 2014 के लोकसभा चुनाव में देशभर की ज्यादातर सीटों की तरह बेंगलुरु उत्तर सीट पर बीजेपी का परचम लहराया था. बीजेपी के सदानंद गौड़ा को यहां की जनता ने 2014 में विजयी बनाया. उन्होंने कांग्रेस के सी नारायणसामी को करीब 2.3 लाख वोटों से हराया और केंद्र में मंत्री पद भी हासिल किया. गौड़ा के पक्ष में 7 लाख से ज्यादा वोट पड़े जबकि कांग्रेस यहां 4.88 लाख वोटों पर सिमट गई. जेडीएस, आम आदमी पार्टी और बसपा क्रमश: तीसरे, चौथे और पांचवे पायदान पर रहीं. इस चुनाव में वोटिंग प्रतिशत 56 के करीब रहा था.
इस लोकसभा के अंतर्गत आने वाली 8 लोकसभा सीटों में से 5 पर कांग्रेस का ही कब्जा है. इस लिहाज से बीजेपी के लिए फिर से यहां जीत दर्ज करना मुश्किल होगा, क्योंकि सूबे में फिलहाल कांग्रेस-जेडीएस के गठबंधन की सरकार है. लंबे समय तक यहां के मतदाताओं ने कांग्रेस पर ही भरोसा जताया है लेकिन पिछले तीन चुनाव से वोटिंग पैटर्न में बदलाव आया है.
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
डी.वी. सदानंद गौड़ा (65) ने जनसंघ से राजनीतिक करियर शुरू करते हुए कर्नाटक के 20वें मुख्यमंत्री और फिर केंद्र में मंत्री तक का सफर तय किया. साल 1994 में वो पहली बार कर्नाटक विधानसभा के लिए चुने गए और 2004 तक विधायक रहे. इसके बाद साल 2004 में वो पहली बार मंगलोर लोकसभा सीट से चुनकर संसद पहुंचे इसके बाद 2009 में फिर से उडूपी-चिकमंगलूर सीट से लोकसभा सांसद चुने गए. इसके बाद साल 2011-12 में कर्नाटक के मुख्यमंत्री भी रहे. 2014 में फिर से वो संसद पहुंचे लेकिन इस बार उन्होंने बेंगलुरु उत्तर सीट सें चुनाव जीता.
गौड़ा को मोदी सरकार में कानून मंत्री और रेल मंत्री का जिम्मा भी दिया गया था. फिलहाल उनके पास सांख्यिकी मंत्रालय की जिम्मेदारी है. सांसद गौड़ा का एक बेटा है और उन्होंने उडूपी के लॉ कॉलेज से कानूनी की डिग्री हासिल की है. 2014 के हलफनामे के मुताबिक उनके पास 10 करोड़ की संपत्ति है और उनपर कोई भी आपराधिक मुकदमा दर्ज नहीं है. गौड़ा ने अपनी सांसद निधि का करीब 87 फीसदी पैसा विकास कार्यों में खर्च कर लिया है.
अनुग्रह मिश्र