कूच बिहार लोकसभा सीट: कौन-कौन है उम्मीदवार, किसके बीच होगी कड़ी टक्कर

कूच बिहार नई संसदीय प्रणाली में लोकसभा क्षेत्र बन चुका है, जिस पर लंबे समय तक वामपंथी दल फारवर्ड ब्लॉक का कब्जा रहा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में इस सीट की तस्वीर बदली और तृणमूल कांग्रेस की रेणुका सिन्हा जीतने में कामयाब रहीं. रेणुका सिन्हा के निधन के बाद 2016 में हुए उपचुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस के प्रथा प्रतिमा राय जीतने में कामयाब रहे. अब 2019 के चुनावी मैदान में कौन-कौन इस सीट से उम्मीदवार हैं. जानने के लिए पढ़िए पूरी खबर.

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2014 में TMC को मिली थी कूच विहार से जीत (सांकेतिक-ट्विटर) 2014 में TMC को मिली थी कूच विहार से जीत (सांकेतिक-ट्विटर)

सुरेंद्र कुमार वर्मा

  • नई दिल्ली,
  • 30 मार्च 2019,
  • अपडेटेड 7:32 AM IST

पश्चिम बंगाल के कूच बिहार संसदीय क्षेत्र ऐतिहासिक होने के साथ-साथ प्राकृतिक संसाधनों और अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता हैं. कूच बिहार की स्थापना असम के कामरूप राज परिवार ने चौथी से 12वीं सदी के बीच की थी. बाद में यह कामता साम्राज्य का हिस्सा बन गया. कामता साम्राज्य पर सबसे पहले खेन राजवंस का राज रहा जिनकी राजधानी कामतापुर हुआ करती थी.

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कूच विहार संसदीय सीट पर पहले चरण में मतदान होना है. 11 अप्रैल में होने वाले इस चुनावी समर में 11 प्रत्याशी मैदान में हैं. ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस से परेश चंद्र अधिकारी, ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉक से गोबिंद चंद्र राय, कांग्रेस से प्रिया राय चौधरी के अलावा भारतीय जनता पार्टी के श्री नीतिश प्रमाणिक के अलावा 3 उम्मीदवार निर्दलीय मैदान में हैं जबकि अन्य उम्मीदवार क्षेत्रीय दलों के हैं.

कभी फारवर्ड ब्लॉक का रहा कब्जा

कूच बिहार नई संसदीय प्रणाली में लोकसभा क्षेत्र बन चुका है, जिस पर लंबे समय तक वामपंथी दल फारवर्ड ब्लॉक का कब्जा रहा है, लेकिन 2014 के लोकसभा चुनावों में इस सीट की तस्वीर बदली और तृणमूल कांग्रेस की रेणुका सिन्हा जीतने में कामयाब रहीं. रेणुका सिन्हा के निधन के बाद 2016 में हुए उपचुनाव में भी तृणमूल कांग्रेस के प्रथा प्रतिमा राय जीतने में कामयाब रहे.

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देश में 1951 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में यहां से कांग्रेस के उपेंद्रनाथ बर्मन चुने गए. 1957 में भी उपेंद्र विजयी रहे थे. इसके बाद 1962 में आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के टिकट पर दिबेंद्र नाक कर्जी ने चुनाव में जीत हासिल की. हालांकि 1963 में हुए उपचुनाव में आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के ही पीसी बर्मन चुने गए. 1967 में बिनॉय कृष्णदास चौधरी आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के टिकट पर जीते जबकि 1971 के चुनाव में वह कांग्रेस के टिकट पर लड़े और सासंद चुने गए.

इसके बाद 1980 से लेकर 1999 तक लगातार 7 लोकसभा चुनावों में आल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के अमरेंद्रनाथ प्रधान चुनाव जीतते रहे. इसी पार्टी के हितेन बर्मन 2004 में चुनाव जीते जबकि 2009 में नृपेंद्रनाथ राय ने जीत हासिल की. 2014 में तृणमूल कांग्रेस की रेणुका सिन्हा ने यह सीट अपने कब्जे में ले ली. रेणुका सिन्हा के निधन के बाद हुए उपचुनाव टीएमसी के ही प्रता प्रतिम राय सांसद चुने गए.

आदिवासी वर्चस्व का इतिहास

जनगणना 2011 के मुताबिक कूच बिहार की कुल आबादी 22,65,726 है जिनमें 89.87 फीसदी जनसंख्या गांवों में रहती है और 10 फीसदी शहरी आबादी है. यह दिलचस्प बात है कि इस क्षेत्र का इतिहास आदिवासी वर्चस्व का रहा जबकि आबादी में उनकी हिस्सेदारी बेहद कम है. कुल आबादी में अनुसूचित जाति और जनजाति की जनसंख्या क्रमशः 48.59 और 0.59 फीसदी है.

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कूच बिहार लोकसभा सीट अभी अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित है. इसके तहत सात विधानसभा सीटें मसलन मठाबगान, सीतालकुची, सिताई, अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित हैं जबकि कूच बिहार उत्तर, कूच बिहार दक्षिण, दिनहाटा और नाटाबाड़ी सामान्य सीटें हैं.

मतदाता सूची 2017 के मुताबिक इस सीट पर 17,52,569 मतदाता और 1992 मतदाता केंद्र हैं. 2014 के आम चुनावों में 82.62 फीसदी मतदान हूए जबकि 2009 में यहां 84.35 फीसदी मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया था. 2014 के संसदीय चुनाव में तृणमूल कांग्रेस, बीजेपी, फारवर्ड ब्लॉक और कांग्रेस को क्रमशः 39.51%, 16.34%, 32.98% और 5.59% वोट मिले. वहीं 2009 में फारवर्ड ब्लॉक को 44.66, तृणमूल कांग्रेस को 41.65 फीसदी और बीजेपी को 5.83 फीसदी मत मिले.

2014 में रेणुका सिन्हा को मिली थी जीत

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की प्रत्याशी रेणुका सिन्हा ने 2014 के लोकसभा चुनावों में जीत हासिल की थी. उन्हें कुल वोटिंग का 39.5 फीसदी यानी 526,499  मत मिले थे. ऑल इंडिया फारवर्ड ब्लॉक के दीपक कुमार रॉय 439,392 (33.0%) मत के साथ दूसरे स्थान पर रहे. जबकि बीजेपी के हेमचंद्र बर्मन को 217,653  (16.3%) मतों से संतोष करना पड़ा था. कांग्रेस चौथे स्थान पर रही थी उसके प्रत्याशी केशब चंद्र राय को 74,540 (5.6%) मत मिले थे. बाद में हुए उपचुनाव टीएमसी के ही प्रता प्रतिम राय सांसद चुने गए.

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