गुजरात विधानसभा चुनाव की भले ही अभी तक औपचारिक घोषणा न हुई हो, लेकिन सियासी रण को फतह करने के लिए बीजेपी पूरी तरह कमर कस ली है. बीजेपी 27 सालों से गुजरात की सत्ता में है और अपनी बादशाहत कायम रखने के लिए 'नो रिपीट थ्योरी' का फॉर्मूला हर चुनाव में आजमाती रही है. मोदी-शाह के इस अचूक प्लान की काट कांग्रेस 27 सालों से नहीं तलाश सकी है, जिसके चलते सियासी वनवास झेल रही है.
बीजेपी 26 फीसदी नए चेहरों को देगी टिकट
बीजेपी इस बार के विधानसभा चुनाव में सत्ता विरोधी लहर से निपटने के लिए अपना जांचा-परखा नो रिपीट फॉर्मूला आजमा सकती है. पिछले दिनों केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने कहा था कि आगामी गुजरात विधानसभा चुनाव में पार्टी नए चेहरों को 25 फीसदी टिकट देगी, लेकिन टिकट के लिए उम्मीदवार के जीतने की क्षमता ही एकमात्र मापदंड है. साथ ही उन्होंने कहा था कि अगर अन्य उम्मीदवारों की अपेक्षा जीतने की क्षमता होगी तो पार्टी तीन-चार बार से निर्वाचित हो रहे उम्मीदवारों को टिकट दे सकती है.
गुजरात में बीजेपी 25 फीसदी नए चेहरों को टिकट देती है तो उसे अपने मौजूदा विधायकों में बड़ी तादाद में टिकट काटने पड़ सकते हैं. इससे बीजेपी के मौजूदा विधायकों में टिकट कटने का खौफ सताने लगा है. गुजरात में सत्ता विरोधी रुझान से बचने के लिए विधायक की बली देती रही है. बीजेपी ने एंटी इनकमबेंसी के पार पाने के लिए पुराने विधायकों की जगह नए चेहरे के साथ गुजरात के सियासी रण में उतरने का मन बनाया है. ऐसे में गुजरात बीजेपी में सबकी नजरें विधानसभा चुनाव के लिए उम्मीदवारों की सूची पर हैं.
गुजरात बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला
गुजरात को बीजेपी की सियासी प्रयोगशाला के लिए जाना जाता है. राज्य में पार्टी ने समय-समय पर परंपरागत राजनीति से हटकर कई सफल प्रयोग करती रही है और उसका उसे राजनीतिक लाभ मिलता रहा है. बीजेपी ने 'नो रिपीट' फॉर्मूले को सबसे पहले नगर निकाय चुनाव में अपनाया था और पुराने चेहरे को हटाकर नए चेहरों को मैदान में उतारा था, जिसका पार्टी को फायदा हुआ था.
गुजरात में बीजेपी पहली बार मौजूदा विधायकों के टिकट नहीं काटने जा रही है. इससे पहले भी पुराने चेहरों की जगह नए उम्मीदवार उतारती रही है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुजरात में मुख्यमंत्री रहते तीनों विधानसभा चुनावों के दौरान 'नो रिपीट थ्योरी' अपनाई थी. 2002 के चुनाव से लेकर 2017 तक के गुजरात के हर विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने पुराने विधायकों के बड़ी संख्या में टिकट काटे और उनकी जगह नए चेहरों को उतारा.
गुजरात की सत्ता में बीजेपी पहली बार 1995 में सत्ता में आई, जिसके बाद से आजतक काबिज है. साल 1995 में बीजेपी को 121, साल 1998 में 117, साल 2002 में 127, साल 2007 में 116, साल 2012 में 115 और साल 2017 में 99 सीटें मिली थीं. गुजरात में बीजेपी की सीटें और वोट प्रतिशत भले ही घटा, लेकिन सत्ता से कोई बेदखल नहीं कर सका. इसके पीछे पार्टी का एक ही फॉर्मूला रहा 'नो रिपीट थ्योरी' का.
2002 से लगातार विधायकों के टिकट कटे
गुजरात में दो दशक से बीजेपी पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ रही है. नरेंद्र मोदी के अगुवाई में पहला विधानसभा चुनाव 2002 में लड़ा गया था, उस वक्त वो मुख्यमंत्री थे. बीजेपी 2002 के गुजरात चुनाव में अपने मौजूदा 121 विधायकों में से 18 विधायकों के टिकट काट दिए थे. मोदी का यह फॉर्मूला हिट रहा और बीजेपी 127 सीटों के साथ सत्ता में वापसी थी. बीजेपी ने इसके बाद हर चुनाव में इसी फॉर्मूले को आजमाया.
2007 में गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने 47 मौजूदा विधायकों का टिकट काट दिया था. इस बार के चुनाव में बीजेपी की सीटें भले ही नहीं बढ़ी, लेकिन 116 सीटों के साथ सत्ता को बचाए रखने में सफल रही. यह चुनाव भी नरेंद्र मोदी के अगुवाई में लड़ा गया था. इसके बाद 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अपने 30 विधायकों के टिकट को काट दिया था और उनकी जगह नए चेहरों को चुनाव लड़ा था. 2012 के चुनाव में बीजेपी 115 सीटों के साथ सत्ता के बचाए रखा.
2017 में 34 विधायकों के टिकट काटे
नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बन जाने के बाद गुजरात में बीजेपी के पास कोई बड़ा चेहरा नही हैं. 2017 के चुनाव में बीजेपी कई चुनौतियों से जूझ रही थी. पाटीदार आरक्षण आंदोलन से लेकर जीएसटी और नोटबंदी तक के मुद्दे थे. इन सारी चुनौतियों से पार पाने के लिए बीजेपी ने अपने 34 विधायकों के टिकट काट दिए. गुजरात की 182 सीटों में से बीजेपी ने 148 सीटों अपने पुराने चेहरे उतारे थे.
साल 2017 का चुनाव कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे लड़ाई वाला माने जाने लगा था. पीएम मोदी ने फिर मोर्चा संभाला और चुनावी रुख बदल दिया. गुजरात में 182 विधानसभा सीटें हैं और बहुमत के लिए 92 सीटें की जरूरत है. बीजेपी 99 सीटें लेकर सत्ता को बचाने में सफल रही. बीजेपी के इस फॉर्मूले का कांग्रेस गुजरात में काट नहीं तलाश पाई, जिसके चलते सत्ता का वनवास 27 सालों से झेल रही है.
बीजेपी का सफल रहा फॉर्मूला
बीजेपी ने दिल्ली नगर निगम के 2017 चुनाव में सभी अपने पार्षदों को टिकट काटकर उनकी जगह नए चेहरों को उतारा था. बीजेपी इस फॉर्मूले के जरिए सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने के साथ-साथ आम आदमी पार्टी पार्टी के असर को दिल्ली के एमसीडी चुनाव में बेअसर कर दिया था. बीजेपी ने इस फॉर्मूले के तहत 2022 के गुजरात चुनाव से पहले रुपाणी सरकार में शामिल सभी चेहरे को बदल दिया है. विजय रुपाणी की जगह भूपेंद्र पटेल को सत्ता की कमान सौंपी और कैबिनेट में सभी नेए चेहरों को जगह दिया. गुजरात में पूरी सरकार को ही बदलकर सत्ता विरोधी लहर को खत्म करने का दांव चला और अब 25 फीसदी नए चेहरे चुनाव में उतारने के संकेत दिए हैं.
कुबूल अहमद / गोपी घांघर