दिल्ली मॉडल के दम पर पंजाब में प्रचंड बहुमत के साथ सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी अब गुजरात को लेकर मिशन मोड पर आ गई है. यहां भी उसी मॉडल के दम पर बीजेपी के 27 साल के शासन को चुनौती देने की तैयारी है. इस राह में आप संयोजक अरविंद केजरीवाल के लिए बड़ा सियासी हथियार वो ऑटो वाले बन सकते हैं जिन्होंने पहले दिल्ली और फिर पंजाब में आम आदमी पार्टी को अप्रत्याशित समर्थन दिया था.
गुजरात में केजरीवाल की नई रणनीति
अरविंद केजरीवाल ने सोमवार गुजरात में ऑटो कैंपेन शुरू किया. इस कड़ी में उन्होंने तमाम ऑटो ड्राइवरों के साथ संवाद स्थापित किया. इस संवाद के दौरान बड़ी बात ये रही कि एक ऑटो चालक ने केजरीवाल को अपने घर खाने पर आने का न्योता दिया. उसने कहा कि मैंने सोशल मीडिया पर आपका एक वीडियो देखा था, जिसमें आप पंजाब में एक ऑटो चालक के घर डिनर करने गए थे. क्या आप मेरे घर भी रात के खाने के लिए आएंगे?
ऑटो चालक के न्योते पर केजरीवाल ने हामी भर दी और फिर रात में उनके घर जाने की तैयारी की. लेकिन गुजरात पुलिस ने ये कहकर उन्हें ऑटो में जाने से मना कर दिया कि उनकी सुरक्षा को खतरा है. पुलिस के मना करने के बाद जमकर बवाल हुआ और केजरीवाल ने दो टूक कह दिया कि उन्हें गुजरात पुलिस की सुरक्षा नहीं चाहिए, उन्हें जबरदस्ती कैद नहीं किया जा सकता.
ગુજરાતની જનતા એટલે જ દુઃખી છે કેમ કે ભાજપના નેતાઓ જનતાની વચ્ચે નથી જતા અને અમે જનતાની વચ્ચે જઈએ છે તો તમે રોકો છો - CM @ArvindKejriwal
પ્રોટોકોલ તો એક બહાનું છે... હકીકતમાં કેજરીવાલને સામાન્ય જનતાની વચ્ચે જતા રોકવાનું છે pic.twitter.com/CqFXbWGlf0
हालांकि, अरविंद केजरीवाल उस ऑटो ड्राइवर के घर भी गए और वहां पर भोजन भी किया. आप की तरफ से उसकी एक तस्वीर भी ट्वीट की गई. अब ऑटो वालों से संवाद करना, उनको ध्यान रखते हुए बड़े वादे करना, आम आदमी पार्टी की ये पुरानी चुनावी रणनीति है. इसकी शुरुआत दिल्ली से कर दी गई थी. 2013 से ही आप ने दिल्ली में ऑटो वालों को एक अलग वोटर के रूप में देखा है. उनके जरिए बड़े स्तर पर पार्टी की योजनाओं, वादों का प्रचार भी हुआ है और उन्हीं के जरिए 'आम आदमी' वाली छवि को बल देने का प्रयास रहा है.
दिल्ली में ऑटो वाले बने AAP के सबसे बड़े प्रचारक
2015 के दिल्ली विधानसभा चुनाव के दौरान देखा गया था कि ऑटो वालों ने आम आदमी पार्टी का जमकर प्रचार किया. हर ऑटो पर पार्टी के पोस्टर लगे होते थे और झाड़ू को वोट देने की बात होती थी. इसका बड़ा कारण ये था कि अरविंद केजरीवाल ने आगे बढ़कर इन ऑटो वालों से सीधा संवाद स्थापित किया था. वे ऑटो यूनियन से बात किया करते थे. उस समय केजरीवाल की जो रणनीति थी, उसमें दिल्ली के ऑटो वालों को 'विक्टिम या पीड़ित' के रूप में दिखाया गया था.
उस समय कहा गया था कि ऑटो वालों को हर जगह रिश्वत देनी पड़ती है. तब आप संयोजक ने ये नारा दिया था कि ऑटो वाले माफिया नहीं बल्कि विक्टिम हैं. उनका इतना कहना ही दिल्ली के ऑटो वालों को आम आदमी पार्टी के पक्ष में कर गया था. इस साल पंजाब चुनाव में प्रचार के दौरान खुद अरविंद केजरीवाल ने दावा किया कि उन्हें 70 फीसदी वोट तो ऑटो और टैक्सी वालों के मिले थे.
(2015 दिल्ली चुनाव के दौरान की तस्वीर)
ऑटो चालकों पर मेहरबान सरकार
वहीं, भारी संख्या में ऑटो वालों ने आम आदमी पार्टी का समर्थन किया है तो सरकार ने भी समय-समय पर इस समुदाय को बड़ी रियायतें दीं. 2019 के दिल्ली विधानसभा चुनाव से पहले सरकार ने ऑटो का किराया बढ़ा दिया था. इसी तरह इस साल फिर ऑटो किराया बढ़ाने को लेकर अहम मंथन हुआ है. शुरुआती डेढ़ किमो. का 25 रूपये आधार शुल्क से बढ़ाकर 30 रुपये करने की बात हो रही है. इसके अलावा दिल्ली की आप सरकार ने ऑटो पर लगने वाले 600 रुपये के फिटनेस चार्ज को भी माफ कर दिया है.
ऑटो रजिस्ट्रेशन फीस को 1000 रुपये से घटाकर 300 रुपये कर दिया गया. ये सब करने के पीछे सियासी मकसद है, क्योंकि अकेले दिल्ली में 90 हजार से ज्यादा ऑटो रजिस्टर्ड हैं. ऐसे में इनके हर परिवार के तीन सदस्य भी जोड़ लिए जाएं तो ये आंकड़ा 3 लाख के करीब पहुंच जाता है. ऐसे में ऑटो वालों को खुश कर आम आदमी पार्टी ये तीन लाख वोट अपने पाले में करने की कोशिश करती रहती है.
पंजाब में केजरीवाल का सफल प्रयोग
इसी तरह का एक्सपेरिमेंट पंजाब में भी देखने को मिला था. चुनाव प्रचार के दौरान अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान एक ऑटो चालक के घर खाना खाने गए थे. यहां भी पहले आप की तरफ से ऑटो चालकों के साथ एक कार्यक्रम रखा गया और फिर वहां पर एक ड्राइवर ने उनसे सीधी बात की. बातचीत में केजरीवाल को अपना फैन बताया और फिर खाने का न्योता. चुनावी मौसम में केजरीवाल ने भी उस मौके को पूरी तरह भुनाया और भगवंत मान के साथ ऑटो में बैठकर ही उस चालक के घर गए और फिर भोजन किया.
गुजरात में नया वोटबैंक बनाने की तैयारी
गुजरात में अरविंद केजरीवाल ने ऑटो चालकों को लेकर बड़ा वादे किए. सोमवार को एक कार्यक्रम में आप संयोजक ने जोर देकर कहा है कि गुजरात में सरकार बनते ही किसी भी ऑटो चालक को लाइसेंस बनवाने या रिन्यू करवाने के लिए RTO के चक्कर नहीं काटने पड़ेंगे, बल्कि उनके घर पर ही बैठे-बैठे उनका ये काम होगा. इसके अलावा दिल्ली-पंजाब की तरह यहां भी ऑटो वालों को मुफ्त बिजली, अच्छी शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य के भी सपने दिखाए गए.
आम आदमी पार्टी की ये सबसे बड़ी यूएसपी के तौर पर देखा जा रहा है, जहां पर 'ऑटो वोटर' को भी केजरीवाल मॉडल से जोड़ दिया गया है. अब अगर ये रणनीति आप के फेवर में जाती है तो एक बड़ा वर्ग पार्टी के लिए नया वोटबैंक बन सकता है. गुजरात में बड़ी संख्या में ऑटो हैं. ऐसे में अगर उन्हें एकजुट करने में AAP कामयाब हो जाती है तो चुनाव का माहौल बदल सकता है.
(गुजरात में ऑटो चालक के घर खाना खाते केजरीवाल-पीटीआई)
बीजेपी ने हाल ही में हुए राज्योंके विधानसभा चुनाव के दौरान अपने लिए एक अलग से 'लाभार्थी वोटबैंक' बनाया था, जिसका सीधा फायदा पार्टी को मिला है. उसी तर्ज पर गुजरात में आम आदमी पार्टी ऑटो चालकों को एक अलग वोटबैंक के रूप में देख रही है, जो जमीन पर जातीय समीकरण से ऊपर उठकर पार्टी के पक्ष में वोट करते हैं तो सियासी मुकाबला काफी दिलचस्प हो सकता है?
सुधांशु माहेश्वरी