गुजरात की इन 25 सीटों पर दलित वोट है निर्णायक, जानिए कैसे बन बिगड़ सकता है पार्टियों का गेम

गुजरात विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दल अपने-अपने समीकरण को दुरुस्त करने में जुट गए हैं. ऐसे में गुजरात में दलित समुदाय की आबादी महज आठ फीसदी है और उनके लिए 13 सीटें रिजर्व है, लेकिन सियासी प्रभाव 25 सीटों पर है. गुजरात में दलित वोटों पर बीजेपी की पकड़ 2017 में कमजोर पड़ी है. ऐसे में देखना है कि दलित समुदाय की पहली पसंद कौन बनेगा?

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गुजरात में दलित चेहरा जिग्नेश मेवाणी गुजरात में दलित चेहरा जिग्नेश मेवाणी

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 18 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 2:39 PM IST

गुजरात विधानसभा चुनाव 2022 की भले ही औपचारिक घोषणा नहीं हुई, लेकिन सियासी सरगर्मियां तेज है. बीजेपी सत्ता पर अपना दबदबा कायम रखने में जुटी है तो कांग्रेस वापसी के लिए जद्दोजहद कर रही है. इस बार आम आदमी पार्टी मुकाबले को त्रिकाणीय बनाने में जुटी है. अन्य राज्यों की तरह ही गुजरात में भी जातिगत समीकरण के खास मायने हैं. दूसरे राज्यों के मुकाबले गुजरात में दलित आबादी काफी कम है, लेकिन दो दर्जन से ज्यादा सीटों पर  राजनीतिक दलों का खेल बनाने और बिगाड़ने की ताकत रखते हैं. ऐसे में देखना है कि इस बार दलित मतदाताओं की पहली पसंद गुजरात में कौन बनाता है? 

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गुजरात में दलित समुदाय की आबादी महज 8 फीसदी है, जिसके चलते राज्य की कुल 182 विधानसभा सीटों में से 13 सीटें उनके लिए रिजर्व हैं. हालांकि, दलित समुदाय का प्रभाव इससे कहीं ज्यादा है. राज्य की करीब 25 सीटों पर दलित मतदाता अहम भूमिका में है. गुजरात की जिन 13 सीटें रिजर्व है, उन पर दलितों की आबादी 25 फीसदी है और बाकी अन्य 12 सीटों पर 10 फीसदी से ज्यादा हैं. 

13 दलित रिजर्व सीटों के नतीजे

2017 के विधानसभा चुनाव में दलित सुरक्षित 13 सीटों के नतीजे को देखें तो बीजेपी का पल्ला भारी रहा था. दलितों के लिए रिजर्व 13 सीटों में से 7 सीटें बीजेपी जीती थी जबकि पांच सीटें कांग्रेस को मिली थी. इसके अलावा एक सीट पर निर्दलीय के रूप में जिग्नेश मेवाणी विधायक बने थे, जिन्हें कांग्रेस ने समर्थन किया था. 

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वहीं, 2012 के विधानसभा चुनाव नतीजों को देखें तो दलित सीटों पर बीजेपी का दबदबा था. 13 सीटों में से 10 पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था तो 3 पर कांग्रेस जीत दर्ज की थी. इससे साफ जाहिर होता है कि पिछले चुनाव में दलित वोटों पर बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई जबकि कांग्रेस उसमें सेंधमारी करने में कामयाब रही थी. इस बार कांग्रेस, बीजेपी और आम आदमी पार्टी तीनों की नजर दलित वोटों पर है.

गुजरात में दलित प्रभावित सीटें  

गुजरात में दलितों के लिए रिजर्व 13 सीटें है. इसमें असरवा, राजकोट ग्रामीण, गड्डा, वडोदरा सिटी, बारडोली, काडी, इदर और गांधीधाम सीट पर बीजेपी के विधायक हैं जबकि दानिलिमदा, दासदा, कलावाड़, कोडिनार सीट कांग्रेस जीती थी और  वडगाम निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी विधायक बने थे. इसके अलावा जिन 12 सीटों पर दलित मतदाता 10 फीसदी से अधिक है, वह सीटें अमराईवाड़ी, बापूनगर, ठक्करबापा नगर, जमालपुर, ढोलका, पाटन, चनास्मा, सिद्धपुर, केशोद, अब्दसा, मनावदार और वाव सीट है. 

बीजेपी को भरोसा है कि इस बार विधानसभा चुनावों में दलित समुदाय उसे वोट देंगे तो कांग्रेस उम्मीद लगाए है कि दलित सीटों पर उसे पिछली बार से ज्यादा वोट मिलेंगे. साल 1995 से दलित के लिए आरक्षित 13 सीटों में से अधिकांश पर जीत हासिल की है. 2007 में बीजेपी 11 और  2012 में 10 सीटें सीटें जीती थी जबकि कांग्रेस दो और तीन सीटें जीती थी. 

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पिछले चुनाव में बीजेपी की दलित प्रभाव वाली सीटों पर प्रदर्शन कमजोर हुआ है तो कांग्रेस का प्रभाव बढ़ा है. एक तरह से देखें तो दलित सुरक्षित सीटें कांग्रेस से महज एक ही ज्यादा बीजेपी जीत सकी थी. हालांकि, 2017 के बाद से बीजेपी दलित वोटों को मजबूत करने में लगी है, जिसके मद्देनजर गड्डा सीट से कांग्रेस विधायक प्रवीण मारू को मिला. मारू ने 2020 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और 2022 में बीजेपी में शामिल हो गए, लेकिन बीजेपी ने आत्माराम परमार ने निर्वाचन क्षेत्र में उपचुनाव जीता. 

दलित तीन उपजातियों में बंटा है

गुजरात में दलित समुदाय महज आठ फीसदी है, लेकिन तीन उप-जातियों में बंटा हुआ है. राज्य में दलित वंकर, रोहित और वलिमकी उपजातियों के नाम से जाने जाते हैं. वांकर समुदाय बीजेपी के साथ मजबूती से जुड़े हैं, जिसकी आबादी दलितों में सबसे ज्यादा है. इसके अलावा दूसरे नंबर पर वाल्मिकी समुदाय आता है, जो शहरी और नगरी क्षेत्र में साफ-सफाई के काम करते हैं. 

गुजरात में दलितों के वोटिंग पैटर्न देखें तो अभी तक बीजेपी और कांग्रेस के बीच बंटता रहा है, लेकिन इस बार तीसरी पार्टी के तौर पर आम आदमी पार्टी की भी एंट्री हो गई है. माना जा रहा है कि इस बार के चुनाव में दलित समुदाय तीनों पार्टियों के बीच बंट सकते हैं. बीजेपी दलितों को लुभाने के लिए कई पहल कर रही हैं तो कांग्रेस कांग्रेस दलितों को पकड़ बनाए रखने के लिए जिग्नेश मेवाणी को आगे बढ़ा रही है. 

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गुजरात में कांग्रेस का सियासी आधार एक समय क्षत्रिय, दलित, आदिवासी और मुस्लिम के बीच रहा है, लेकिन बीजेपी के हिंदुत्व कार्ड में दलित वोटों में सेंध लगी है. गांव में दलित वोटर बहुत कम है जबकि शहरी क्षेत्रों में अच्छी खासी है. ऐसे में दलित वोटों में सेंधमारी के लिए आम आदमी पार्टी भी कोशिश में लगी है, जिसके लिए बाबा साहेब भीमराव अंबेडकर की विरासत का दावा करती है. 

हालांकि, केजरीवाल के दलित सियासत पर झटका तब लगा है, जब उसके दिल्ली में दलित समुदाय से मंत्री रहे राजेंद्र पाल गौतम को बौद्ध धर्म ग्रहण करने के बाद इस्तीफा देना पड़ा. इसे लेकर कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी को दलित विरोधी के तौर पर खड़े करने कोशिश थी. गुजरात से ही देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह आते हैं. इस तरह से दोनों ही नेता गुजरात में बीजेपी की पकड़ को कमजोर नहीं होने देना चाहते हैं. 

गुजरात में दलित चेहरे

गुजरात की राजनीति में जिग्नेश मेवाणी का नाम अब मुख्यधारा के नेताओं में जुड़ गया है. गुजरात की दलित सियासत में वो एक बड़ा चेहरा बनकर उभर रहे हैं. गुजरात के चुनाव में उन्हें पूरी तरीके से खारिज कर देना भी उचित नहीं है. जिग्नेश दलित राजनीति को लेकर सजग हैं और मौजूदा समय में कांग्रेस के साथ है. वहीं, दलित सियासत की कद्दावर चेहरा मायावती की पार्टी बीएसपी भी चुनावी ताल ठोकने की तैयारी में है तो दिवंगत रामविलास पासवान की राजनीतिक वारिस के तौर पर खुद को स्थापित करने में लगे उनके बेटे चिराग पासवान भी गुजरात के चुनाव में किस्मत आजमाने की तैयारी में है. ऐसे में देखना है कि दलितों की पहली पसंद कौन पार्टी बनती है? 
 

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