बिहार विधानसभा चुनाव 2020 में नेताओं की सियासत पर जनता की नाराजगी भारी पड़ रही है. रूठने और मनाने का क्रम भी जारी हो चुका है. कहीं नेता नाराज हैं, तो कहीं पूरा समाज. हम बात कर रहे हैं पश्चिमी चंपारण जिले के उन छह प्रखंडों की जहां थारू जनजाति का बहुमत है. यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जनसभा हुई, जिसमें साफ पता चला कि लोगों में कुछ तो नाराजगी है. मुख्यमंत्री ने मंच से सीधे कहा कि मन में कुछ बात है, तो उसे निकाल दो, हम फिर आएंगे और बैठकर बात करेंगे.
पश्चिमी चंपारण जिला के लगभग 6 प्रखंडों की बात की जाए तो यहां थारू जनजाति की लगभग तीन लाख की आबादी है. चार विधानसभा सीटों पर इनका अच्छा प्रभाव रहता है. वहीं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इस जनजाति के लोगों के लिए तमाम योजनाएं चलाईं, फिर भी सीएम नीतीश से इनकी क्या नाराजगी है? सीएम नीतीश ने जनसभा में थारू समाज की ओर इशारा किस बात को लेकर किया. कई सवाल खड़े हो गए, जिनके जवाब जानने के लिए आजतक की टीम ने अखिल भारतीय थारू महासंघ के राष्ट्रीय अध्यक्ष दीपनारायण प्रसाद से बातचीत की.
दीपनारायण प्रसाद ने बताया कि थारू समुदाय के लोगों का जीवन खेती और जंगल पर आधारित है. 8 जनवरी 2003 को अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में इस जाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा मिला, तो समाज के विकास की रफ्तार कुछ बढ़ी, लेकिन विकास का ये पहिया अधिक दिन तक नहीं घूम सका.
सीएम ने दिलाया था विकास का भरोसा
दीपनारायण प्रसाद ने बताया कि बिहार में अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में आज कई जातियों को शामिल किया गया है, इसलिए इनकी संख्या को देखते हुए आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाकर पांच प्रतिशत किया जाना चाहिए, जो संविधान सम्मत भी है. पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश में थारू समाज की बहुत कम आबादी है, फिर भी वहां दो प्रतिशत का आरक्षण प्राप्त है. जब नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बने, तो समाज का एक प्रतिनिधिमंडल उनसे मिला भी. नीतीश सरकार ने अधिकतर मांगों को मान लिया और थरुहट के समुचित विकास का भरोसा भी दिलाया था.
काम हुआ, लेकिन नहीं मिला लाभ
दीपनारायण प्रसाद ने बताया कि शिक्षा के क्षेत्र में काम तो हुआ, लेकिन उसका लाभ नहीं मिल रहा है. थरुहट क्षेत्र के बच्चों के लिए अनुसूचित जनजाति आवासीय विद्यालय रतनपुरवा, कदमहवा, बेलसंडी में बने हुए हैं, लेकिन यहां संसाधन और व्यवस्था की भारी कमी के कारण बच्चों का भविष्य अंधकार में दिख रहा है. बगहा दो प्रखंड के थरुहट क्षेत्र में एक भी आवासीय विद्यालय नहीं बना है, जबकि यहां पर विद्यालय बनना स्वीकृत है. स्कूल को मैट्रिक स्तर का तो बना दिया गया, लेकिन किसी स्कूल में शिक्षक नहीं हैं.
उन्होंने बताया कि सीएम नीतीश कुमार ने हरनाटांड़ में लड़कियों के लिए जुगुल साहलिका उच्च विद्यालय को सरकारी मान्यता तो दे दी, लेकिन शिक्षा विभाग की मिलीभगत से यह विद्यालय राजनीति का अखाड़ा बना हुआ है. थरुहट क्षेत्र में एक महाविद्यालय कि स्थापना की मांग को तो सीएम नीतीश ने मान लिया, लेकिन इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ.
लाचार हैं स्वास्थ्य सेवाएं
दीपनारायण प्रसाद ने बताया कि 2009 में पूरे थरुहट क्षेत्र में लगभग आधा दर्जन नये स्वास्थ्य केंद्र की स्वीकृति मिली. तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री चंद्रमोहन राय के कार्यकाल में एक दो जगह को छोड़कर सभी जगह पर स्वास्थ्य केंद्र के भवन भी बन गए, लेकिन यहां स्वास्थ्य कर्मचारियों की तैनाती नहीं हुई.
वनाधिकार कानून को लागू किया जाए
दीपनारायण प्रसाद ने बताया कि भारत सरकार ने 2006 में वनाधिकार कानून को पास कर दिया है, लेकिन बिहार में यह आज तक लागू नहीं हुआ, जबकि थारू जनजाति का जीवन जंगल से जुड़ा हुआ है. इस कानून के अभाव में हम लोगों को अपने मूल अधिकार से वंचित रहना पड़ रहा है. इस कानून को लागू करने के लिए हम लोगों ने कई बार व्यक्तिगत और सामूहिक रूप से प्रक्रिया को पूरा भी किया, लेकिन इन प्रार्थना पत्रों को रद्दी की टोकरी में फेंक दिया गया.
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नहीं मिला परिवार को न्याय
उन्होंने बताया कि नौरंगिया पुलिस गोली कांड में मृत परिवार के सदस्य को सरकार ने नौकरी देने का वादा किया था, जो स्वीकृत भी हो गया है, लेकिन आज तक इसका लाभ नहीं मिल सका. उन्होंने बताया कि 2013 में थारू समाज के एक युवक की रहस्यमयी मौत के बाद न्याय के लिए प्रदर्शन हो रहा था. पुलिस ने प्रदर्शन कर रहे लोगों पर गोली चला दी, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई और एक युवक की रीढ़ की हड्डी में गोली लगने से अपाहिज हो गया था.
थरुहट विकास अभिकरण को प्राधिकार का दर्जा दिया जाए
वहीं समाज के नेता जगदीश सोखईट का कहना है कि सीएम नीतीश कुमार ने थरुहट के विकास कार्यों को समुचित रूप से कराने के लिए समेकित थरुहट विकास अभिकरण का गठन किया, लेकिन इसमें शामिल पदाधिकारी थारू समुदाय से विचार विमर्श किये बिना ही कार्य योजना लागू कर देते हैं, जिससे कई जरूरी चीजें छूट जाती हैं. इसलिए मांग की गई थी, कि समेकित थरुहट विकास अभिकरण को प्राधिकार का दर्जा दिया जाए, ताकि हम लोगों को भी अपनी बात रखने का अवसर मिल सके.
राजनीति में मिले हिस्सेदारी
उन्होंने कहा कि अनुसूचित जनजाति आयोग में 2010 में थारू समुदाय से नंदलाल महतो को सदस्य बनाया गया, लेकिन उनके बाद इस आयोग में थारू समुदाय का प्रतिनिधि नहीं रखा गया. इसलिए मांग है कि इस आयोग में एक थारू और एक उरांव समुदाय से सदस्य बनाया जाए, इसके साथ ही थारू समुदाय को भी राजनीति में उचित भागीदारी मिले.
(रिपोर्ट- गिरीन्द्र कुमार पाण्डेय)
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