बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की रणभेरी बज चुकी है. 28 अक्टूबर से 7 नवंबर तक तीन चरणों में चुनाव होने हैं और नतीजे 10 नवंबर को आने हैं. चुनाव के शंखनाद के साथ ही बिहार के गली-मोहल्लों, चौक-चौराहों पर चुनावी चर्चा भी शुरू हो चुकी है. तमाम मुद्दों पर लोग मुखर हैं और सबसे बड़ा मुद्दा उद्योगों का है, रोजगार का है. क्योंकि हाल ही में लॉकडाउन लगने के बाद बड़े शहरों से बिहार की ओर लौटते मजदूरों की दिक्कतों को पूरे देश ने देखा तो बिहार ने उसे भुगता.
लॉकडाउन में बड़ी संख्या में लोगों का रोजगार छिन गया तो वापस लौटे प्रवासी मजदूरों को स्थानीय उद्योगों की कमी के कारण रोजगार का कोई साधन बिहार में दिख नहीं रहा है. ऐसे मौके पर हम आपको बिहार के सारण(छपरा) जिले के एक ऐसे इलाके के बारे में बताएंगे जो किसी दौर में बिहार ही नहीं पूरे देश में औद्योगिक केंद्र के रूप में जाना जाता था. जहां नौकरियों के लिए बाहर से लोग आते थे. ये जगह है मढ़ौरा. यह सारण जिला मुख्यालय छपरा के उत्तर में 26 किलोमीटर दूर बसा है. एक समय यहां चार बड़े उद्योग थे जहां रोजगार के लिए दूर-दूर से लोग आते थे.
1. मढ़ौरा चीनी मिल की शुरुआत और अंत की कहानी
एक जमाने में यहां बिहार की सबसे पुराना चीनी मिल थी. जो चीनी उत्पादन में देश में दूसरे स्थान पर थी. इसकी स्थापना 1904 में हुई थी. 1947-48 में ब्रिटिश इंडिया कॉरपोरेशन ने इसे अपने अधीन ले लिया था. चीनी मिल के कारण इलाके के किसानों के लिए गन्ने की खेती सबसे पहला विकल्प होती थी. कैश क्रॉप होने के कारण गन्ना किसानों की पौ बारह थी. 1980 के दशक तक यहां खूब चीनी उत्पादन हुआ. 90 के दशक में प्रबंधन के विवाद में यह फंस गया. 1998 आते-आते यह बंद हो गया. करीब 2 हजार लोगों का रोजगार छिन गया और इलाके के 20 हजार किसानों के लिए कैश क्रॉप का जरिया. तब से हर चुनाव में इसे चालू कराने के वादे होते हैं लेकिन स्थानीय लोगों का ये इंतजार तीन दशक में भी खत्म नहीं हुआ.
2. मॉर्टन चॉकलेट की मिठास कैसे हुई गायब?
चीनी मिल के साथ-साथ मढ़ौरा के मॉर्टन मिल में बने चॉकलेट भी काफी मशहूर थे. इसकी मिठास आज भी स्थानीय लोगों को याद है. विदेशों तक में इसका निर्यात होता था. ब्रिटिश काल में 1929 में C. C. E. Morton (India) Ltd द्वारा इसकी स्थापना की गई थी. 1990 के दशक में इस चॉकलेट फैक्ट्री पर भी ताला लग गया और बिहार के एक और उद्योग की बदहाली की कहानी में ये दास्तान भी जुड़ गई.
3. सारण फैक्ट्री
सारण फैक्ट्री में मढ़ौरा चीनी मिल में इस्तेमाल आने वाले कल-पुर्जे बनाए जाते थे. पूरे सारण कमिश्नरी की ये सबसे बड़ी फैक्ट्री हुआ करती थी. इस फैक्ट्री में बने कल पुर्जे बिहार की 4 कमिश्नरियों में सप्लाई किए जाते थे. लेकिन सिस्टम की उदासीनता ने यहां भी तालाबंदी के हालात पैदा कर दिए और स्थानीय लोगों के रोजगार का एक और जरिया खत्म हो गया.
4. इसके अलावा डिस्टीलरी उत्पादन संयंत्र भी कभी यहां के औद्योगिक प्लान का हिस्सा था और लोगों को रोजगार मुहैया कराता था.
मढ़ौरा के सारे उद्योग एक-एक कर बंद होते गए और फिर वो हालात बन गए जो आज बिहार के हर जिले की कहानी है. बढ़ती बेरोजगारी, रोजगार के लिए बड़े शहरों की ओर मजबूरी में पलायन, और हर बार के चुनावी वादों पर खत्म होता लोगों का भरोसा. इस बार फिर चुनाव आते ही रोजगार को लेकर सभी दलों के दावे और वादे शुरू हो गए हैं.
कब है यहां चुनाव?
मढ़ौरा इलाका सारण जिले में आता है. सारण जिले में 10 विधानसभा सीटें हैं. जहां दूसरे चरण में 3 नवंबर को मतदान होगा.
क्या है मढ़ौरा का सियासी गणित?
सारण जिले का मढ़ौरा एक विधानसभा सीट भी है. यहां से अभी वर्तमान विधायक हैं आरजेडी के जीतेंद्र कुमार राय. 2015 के चुनाव में मढ़ौरा सीट से जीतेंद्र कुमार राय ने बीजेपी के लाल बाबू राय को 16 हजार से अधिक वोटों से हराया था. इस सीट से पिछले 5 चुनाव में से तीन में आरजेडी जीती है जबकि दो चुनाव निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गए.
संदीप कुमार सिंह