बांका विधानसभा सीट: बीजेपी-आरजेडी में हो सकती है कड़ी टक्कर, क्या बदला ले पाएगी लालू की पार्टी

बांका विधानसभा सीट 1951 में अस्तित्व में आई. यहां पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के राघवेंद्र सिंह को जीत मिली. इसके अगले चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीदवार ने बाजी मारी.

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आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (फाइल फोटो) आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव (फाइल फोटो)

देवांग दुबे गौतम

  • नई दिल्ली,
  • 21 सितंबर 2020,
  • अपडेटेड 12:34 PM IST
  • राम नारायण मंडल हैं बांका के विधायक
  • बीजेपी का है इस सीट पर कब्जा
  • 2015 में आरजेडी को मिली थी हार

बिहार की बांका विधानसभा सीट राज्य की अहम विधानसभा सीटों में से एक है.1951 में बांका सीट अस्तित्व में आई. यहां पर हुए हाल के चुनावों में बीजेपी और आरजेडी के बीच मुकाबला देखने को मिला है. इस सीट पर बीजेपी का कब्जा है और राम नारायण मंडल विधायक हैं. बांका में इस बार के भी चुनाव में बीजेपी और आरजेडी के बीच ही मुकाबला देखने को मिल सकता है.

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सामाजिक ताना-बाना

बांका विधानसभा सीट बिहार के बांका जिले में आती है. बिहार के मैदानी क्षेत्र का आखिरी सिरा और झारखंड और बिहार के सीमा का मिलन स्थल है. 2011 की जनगणना के अनुसार, यहां की जनसंख्या 366489 है. बांका की 87.45 फीसदी आबादी ग्रामीण और 12.55 फीसदी आबादी शहरी क्षेत्र में रहती है. कुल जनसंख्या में से अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी) का अनुपात क्रमशः 11.26 और 2.01 है. 2019 की मतदाता सूची के अनुसार, इस निर्वाचन क्षेत्र में 247052 मतदाता और 267 मतदान केंद्र हैं.

राजनीतिक पृष्ठभूमि

बांका विधानसभा सीट 1951 में अस्तित्व में आई. यहां पर हुए पहले चुनाव में कांग्रेस के राघवेंद्र सिंह को जीत मिली. इसके अगले चुनाव में भी कांग्रेस के उम्मीदवार ने बाजी मारी. हालांकि इसके बाद के चुनाव में कांग्रेस को हार मिलती है. लेकिन 1963 के उपचुनाव में कांग्रेस ने फिर वापसी की. और 1967 के चुनाव में उसे एक बार फिर बांका की जनता नकार दिया.

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कांग्रेस को 1969 और 1972 के चुनाव में फिर जीत मिली. यहां पर शुरुआती दौर में कांग्रेस को तो जीत मिलती रही. लेकिन 1986 के बाद से उसे जनता ने नकार दिया और तब से कांग्रेस यहां पर जीत की आस लगाई है. 

बांका में बीजेपी को पहली बार 1986 में जीत मिली. जे यादव ने उपचुनाव में कांग्रेस के टी अंसारी को हराया था. बीजेपी की ये जीत अगले चुनाव में भी कायम रही. लेकिन इस बार पार्टी ने राम नारायण मंडल को उम्मीदवार बनाया था. उन्होंने निर्दलीय उम्मीदवार वेदानंद सिंह को शिकस्त दी. हालांकि अगले चुनाव में राम नारायण को जनता दल के उम्मीदवार से मात मिल गई. लेकिन राम नारायण अगले ही चुनाव में हार का बदला लेते हैं और एक बार फिर बांका से विधायक बनते हैं.

जैसा कि बांका की जनता लगातार किसी एक उम्मीदवार पर भरोसा नहीं जताती, वैसा ही इस बार भी जारी रहा. 2005 में आरजेडी के जावेद अंसारी ने राम नारायण को हराते हुए यहां के विधायक बने.पिछले दो विधानसभा चुनावों की बात करें तो यहां पर बीजेपी के राम नारायण को ही जीत मिली है. उन्होंने दोनों ही बार आरजेडी के प्रत्याशी को शिकस्त दी. बांका में मुकाबला बीजेपी और आरजेडी के बीच होता आया है. ऐसे में इस बार के भी चुनाव में यहां पर इन्हीं दोनों पार्टियों में मुकाबला देखने को मिल सकता है.

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2015 का जनादेश

बांका में हुए 2015 के विधानसभा चुनाव में 235691 वोटर्स थे. इसमें से 52.91 फीसदी पुरुष और 47.08 फीसदी महिला वोटर्स थीं. बांका में 136746 लोगों ने वोट डाला था. 58 फीसदी वोटिंग इस सीट पर हुई थी. इस चुनाव में बीजेपी के राम नारायण मंडल ने आरजेडी के जफरूल को 3 हजार से ज्यादा वोटों से मात दी थी. राम नारायण को 52379 (38.36 फीसदी) और जफरूल को 48649 (35.63 फीसदी) वोट मिले थे. तीसरे स्थान पर बसपा के अजीत कुमार थे. 

ये प्रत्याशी हैं मैदान में

बांका विधानसभा सीट पर 19 उम्मीदवार मैदान में हैं. यहां से बीजेपी के राम नारायण मंडल और आरजेडी के जावेद इकबाल अंसारी प्रत्याशी हैं. बांका में मुकाबला बीजेपी और आरजेडी के बीच ही माना जा रहा है.

कितनी हुई वोटिंग

बांका में पहले चरण के तहत मतदान हुआ. यहां पर 28 अक्टूबर को वोटिंग हुई. बांका में 62.31 फीसदी मतदान हुआ. मतगणना 10 नवंबर को की जाएगी.

विधायक के बारे में

15 जुलाई, 1963 को जन्मे राम नारायण मंडल की शैक्षिणिक योग्यता साक्षर है. उन्होंने साल 1972 में राजनीति में एंट्री की. 1990 में पहली बार वह विधानसभा पहुंचे. वह 2000, 2005, 2014, 2015 के चुनाव में जीत हासिल कर चुके हैं. राम नारायण मंडल राज्य सरकार में मंत्री रह चुके हैं. 

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