क्या उत्तर बंगाल के इन जिलों में इतिहास बदल पाएगी टीएमसी? 2016 में नहीं मिली थी एक भी सीट

उत्तर बंगाल को लेकर ममता बनर्जी कितनी गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने धूर विरोधी गोरखा नेता बिमल गुरुंग से भी हाथ मिला लिया. उनकी गंभीरता के पीछे लोकसभा चुनाव और पिछले दो विधानसभा चुनाव में पार्टी का लचर प्रदर्शन बड़ी वजह माना जा रहा है.

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पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फाइल फोटोः पीटीआई) पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी (फाइल फोटोः पीटीआई)

बिकेश तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2021,
  • अपडेटेड 5:59 PM IST
  • आम चुनाव में टीएमसी नहीं जीत पाई थी एक भी सीट
  • टीएमसी को 2016 में मिली थीं 54 में से 26 सीटें
  • 2011 के चुनाव में 16 सीटें ही जीत पाई थी टीएमसी

पश्चिम बंगाल की अगली सरकार के लिए चुनावी रणभेरी बज चुकी है. आठ चरणों में चुनाव का कार्यक्रम चुनाव आयोग ने जारी कर दिया है. चुनाव कार्यक्रम के ऐलान के साथ ही सूबे में आदर्श चुनाव आचार संहिता लागू हो गई है. मुख्यमंत्री तृणमूहल कांग्रेस के नेतृत्व में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) लगातार तीसरी बार सत्ता में आने के लिए जोर लगा रही है. वहीं, विपक्षी भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी), टीएमसी की सत्ता को उखाड़ फेकने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है.

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बंगाल में चुनावी बिसात बिछ चुकी है तो वहीं प्रचार पहले से ही जोरों पर है. सत्ताधारी दल की ओर से खुद सीएम ममता बनर्जी चुनाव प्रचार अभियान का अग्रिम मोर्चे से नेतृत्व कर रही हैं. इस चुनाव की क्या अहमियत है, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि बीजेपी अपने ट्रंप कार्ड पीएम मोदी को भी चुनाव प्रचार के मैदान में उतार चुकी है. बंगाल का उत्तरी इलाका यानी उत्तर बंगाल बीजेपी के मिशन बंगाल का केंद्र बनकर उभरा है.

टीएमसी हो या बीजेपी, दोनों ही खेमों के लिए उत्तर बंगाल महत्वपूर्ण है. उत्तर बंगाल के कुछ जिले ऐसे भी हैं, जहां टीएमसी पिछले विधानसभा चुनाव में खाता तक नहीं खोल पाई थी. बीजेपी जानती है कि ममता का दुर्ग ध्वस्त करना है तो टीएमसी के लिए कमजोर कड़ी रहे उत्तर बंगाल में प्रदर्शन और बेहतर करना होगा. उत्तर बंगाल में अच्छे प्रदर्शन से बंगाल में 'आसोल परिवर्तन' के नारे को हकीकत में तब्दील करने की दिशा में कदम को मजबूती दी जा सकती है.

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लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उत्तर बंगाल में बेहतर प्रदर्शन किया था. टीएमसी के लिए उत्तर बंगाल कमजोर कड़ी कैसे है? सीएम ममता बनर्जी का फोकस आखिर उत्तर बंगाल पर क्यों है? इसका जवाब 2019 के आम चुनाव और 2011, 2016 के विधानसभा चुनाव के नतीजों में छिपा है. राजनीति के जानकार भी यही कहते हैं कि उत्तर बंगाल को लेकर ममता बनर्जी कितनी गंभीर हैं, इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि दीदी ने अपने धूर विरोधी गोरखा नेता बिमल गुरुंग से भी हाथ मिला लिया. दीदी की गंभीरता के पीछे लोकसभा चुनाव समेत पिछले तीन चुनाव में पार्टी का लचर प्रदर्शन और दक्षिण बंगाल में बीजेपी की सेंध के अनुमानों को भी बड़ी वजह माना जा रहा है.

आम चुनाव में नहीं खुला था टीएमसी का खाता

बीजेपी ने उत्तर बंगाल की आठ लोकसभा सीट में से सात सीटें जीती थीं. एकमात्र सीट जहां बीजेपी को शिकस्त मिली थी, वह कांग्रेस की झोली में गई थी. बीजेपी के उम्मीदवार कूचबिहार, अलीपुरद्वार, जलपाईगुड़ी, दार्जिलिंग, रायगंज, बालूरघाट, उत्तरी मालदा में विजय पताका फहराने में सफल रहे. मालदा दक्षिण लोकसभा सीट से दिवंगत कांग्रेसी दिग्गज गनी खान चौधरी के भाई अबू हसीम खान चौधरी को जीत मिली. चौधरी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव मैदान में थे. लोकसभा चुनाव में उत्तर बंगाल से टीएमसी का सूपड़ा साफ हो गया था और पार्टी एक भी सीट जीतने में नाकाम रही.

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ममता ने पूछा था- हमारी गलती क्या है?

उत्तर बंगाल में टीएमसी के लचर प्रदर्शन के बाद ममता बनर्जी का पूरा फोकस इस रीजन पर है. ममता ने लोकसभा चुनाव परिणाम के बाद यानी पिछले करीब दो साल में उत्तर बंगाल के करीब दर्जनभर दौरे किए हैं. ममता ने कुछ ही महीने पहले उत्तर बंगाल में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा भी था कि लोकसभा चुनाव में हमें एक भी सीट नहीं मिली. बीजेपी को सब मिला. आखिर हमारी गलती क्या है? ममता के इस बयान को इमोशनल कार्ड के तौर पर देखा जा रहा है.

2016 में 26 सीटें जीत सकी थी टीएमसी

उत्तर बंगाल के 8 जिलों में कुल 54 विधानसभा सीटें हैं. साल 2016 के विधानसभा चुनाव में सत्ताधारी टीएमसी इनमें से 26 सीटें ही जीत सकी थी. दार्जिलिंग, कालिम्पोंग और मालदा जिले में टीएमसी खाता तक नहीं खोल पाई थी. इन जिलों में कुल 18 विधानसभा सीटें हैं. हालांकि, जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार और कूचबिहार जिले की 21 में से 20 विधानसभा सीटें टीएमसी ने जीती थीं और एक सीट बीजेपी के खाते में गई थी. उत्तर और दक्षिण दिनाजपुर जिले की 15 विधानसभा सीटों में से टीएमसी को 6, कांग्रेस को 4, सीपीएम को 2, फॉरवर्ड ब्लाक को एक, रिवॉल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को दो सीटें मिली थीं. उत्तर बंगाल की 54 विधानसभा सीटों में से 14 पर कांग्रेस के उम्मीदवार विजयी रहे थे.

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2011 में भी कुछ खास जुदा नहीं थे हालात

साल 2011 में भी सत्ताधारी टीएमसी के लिए हालात कुछ खास जुदा नहीं थे. तब टीएमसी दार्जिलिंग और मालदा जिले में एक-एक सीट ही जीत सकी थी. मालदा जिले की मानिकचक और दार्जिलिंग जिले की सिलीगुड़ी विधानसभा सीट से टीएमसी के उम्मीदवार विजयी रहे थे. जलपाईगुड़ी, अलीपुरद्वार और कूचबिहार जिले की 21 में से सत्ताधारी पार्टी 7 ही सीटें जीत पाई थी. टीएमसी उत्तर दिनाजपुर की 9 में से दो सीटें ही जीत सकी थी. हालांकि, दक्षिण दिनाजपुर में सत्ताधारी दल का प्रदर्शन काफी बेहतर रहा था और पार्टी ने 6 में से 5 सीटें जीती थीं. टीएमसी 2011 में 54 में से महज 16 सीटें ही जीत सकी थी.

क्या सुधर पाएगी टीएमसी की स्थिति?

उत्तर बंगाल की राजनीति और इसबार के चुनाव, चुनाव पूर्व हालात को लेकर बात करते हुए सिलीगुड़ी के रहने वाले जगन शर्मा कहते हैं कि दीदी को भी इस बात का आभास है कि उत्तर बंगाल में उनकी पार्टी की सियासी राह आसान नहीं. शायद यही वजह है कि वो इस इलाके में खुद काफी सक्रिय नजर आईं. वह कहते हैं कि दार्जिलिंग में भले ही ममता बनर्जी को कभी बीजेपी के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल रहे गोरखा जनमुक्ति मोर्चा (जीजेएमएम) का साथ मिल गया हो, लेकिन गोरखा वोटरों का समर्थन भी मिल ही जाएगा, यह कहना मुश्किल है.

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उत्तर बंगाल के किस जिले में कब मतदान

जलपाईगुड़ी और दार्जिलिंग जिले के मतदाता अपना विधायक चुनने के लिए 17 अप्रैल को मतदान करेंगे, वहीं अलीपुरद्वार और कूचबिहार जिले में वोटिंग 8 अप्रैल को होगी. उत्तर दिनाजपुर में 22 अप्रैल, दक्षिण दिनाजपुर में 26 अप्रैल को मतदान होगा. मालदा में दो चरण में 26 और 29 अप्रैल को मतदान होगा. 

 

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