पश्चिम बंगाल में चुनाव प्रचार के दौरान राजनीतिक दलों द्वारा धार्मिक नारों, प्रतीकों, राष्ट्रवाद आदि के मुद्दों का जमकर इस्तेमाल किया जा रहा है. पीएम नरेंद्र मोदी रैली के दौरान जहां एक ओर विकास की बात कर रहे हैं, तो वहीं दूसरी ओर भाषण के अंत में वंदे मातरम का नारा भी लगवा रहे हैं. उधर, सीएम ममता बनर्जी चुनावी रैलियों में मंच से ही चंडी पाठ करते हुए नजर आ रही हैं.
यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ भी बंगाल की चुनावी जनसभाओं में जय श्रीराम का नारा लगा रहे हैं. संदेश साफ है कि बात विकास की होगी तो हिंदुत्व की भी होगी. जय श्रीराम के नारे, मंदिर का जिक्र आदि इस बात की गवाही दे रहे हैं कि पश्चिम बंगाल के चुनावी महासमर में बीजेपी हिंदुत्व को लेकर फ्रंटफुट पर है.
उधर, सीएम ममता बनर्जी इस बार की चुनावी हवा को पूरी तरह भांप चुकी हैं. यही वजह है कि एक ओर जहां वो मंच पर मां दुर्गा के मंत्रों का पाठ कर रही हैं, वहीं दूसरी ओर उन्होंने अपने मेनिफेस्टो पर मुस्लिम तुष्टिकरण की छाया तक नहीं पड़ने दी.
बंगाल चुनाव के मद्देनजर सीएम ममता ने माहिष्य, तिली, तामुल और साहा समुदाय को ओबीसी वर्ग में लाने का भी वादा किया है. जबकि बीजेपी मतुआ समुदाय के लोगों के लिए बड़े ऐलान करने की योजना बना रही है.
बंगाल के चुनाव में बीजेपी की निगाहें मतुआ समुदाय के लोगों पर भी हैं. मतुआ समुदाय दरअसल उन बांग्लादेशी हिंदुओं का है, जो पश्चिम बंगाल में बसे हैं. बीजेपी उन्हें लुभाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही है. गृह मंत्री अमित शाह मतुआ समुदाय के लोगों के साथ भोजन कर चुके हैं. पीएम मोदी भी अपनी जनसभा में इस समुदाय का जिक्र कर चुके हैं.
बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में मतुआ समुदाय ने बीजेपी को जमकर वोट दिया था. लेकिन मतुआ समुदाय को राष्ट्रीयता का प्रमाणपत्र अब तक नहीं मिला है. बीजेपी मतुआ समुदाय को राष्ट्रीयता प्रमाणपत्र देने का ऐलान कर सकती है.
गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में 16 शक्ति पीठ हैं और 15 शक्ति पीठ बांग्लादेश में हैं. बीजेपी इन शक्ति पीठों को तीर्थ सर्किट की बात अपने मेनिफेस्टो में रख सकती है.
(आजतक ब्यूरो)
इंद्रजीत कुंडू / पॉलोमी साहा