'बंटेंगे तो कटेंगे'...'गद्दारों से सावधान', महाराष्ट्र चुनाव में इन नारों के इर्द-गिर्द रहा महायुति और एमवीए का प्रचार

शिंदे और अजित पवार के नेतृत्व वाले गुटों को चुनाव आयोग ने क्रमशः 'असली' शिवसेना और एनसीपी के रूप में मान्यता दी है. एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) के चुनाव अभियान में एकनाथ शिंदे और अजित पवार के 'विश्वासघात' का मुद्दा हावी रहा.

Advertisement
महाराष्ट्र चुनाव में महायुति और महा विकास अघाड़ी के बीच मुकाबला है. (Aajtak Graphic) महाराष्ट्र चुनाव में महायुति और महा विकास अघाड़ी के बीच मुकाबला है. (Aajtak Graphic)

aajtak.in

  • मुंबई/नासिक/पुणे,
  • 17 नवंबर 2024,
  • अपडेटेड 5:42 PM IST

महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों का प्रचार अभियान जन कल्याणकारी योजनाओं और विकास जैसे मुद्दों पर शुरू होकर 'बंटेंगे तो कटेंगे', 'वोट जिहाद', 'धर्म युद्ध', 'संविधान खतरे में है' जैसे नारों के साथ अपने चरम पर पहुंच गया है. राज्य में चुनाव प्रचार 18 नवंबर की शाम समाप्त हो रहा है. एनसीपी (एसपी) प्रमुख शरद पवार और शिव सेना (यूबीटी) प्रमुख उद्धव ठाकरे ने क्रमशः अजित पवार और एकनाथ शिंदे द्वारा 'विश्वासघात' का हवाला देते हुए मतदाताओं के सामने एक भावनात्मक पिच बनाई ​है. 

Advertisement

महायुति सरकार, जिसमें सीएम शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना, बीजेपी और अजित पवार की एनसीपी शामिल है, 20 नवंबर को होने वाले मतदान से पहले लड़की बहिन योजना को प्रचारित कर रहे हैं. बता दें कि उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली एमवीए सरकार ढाई साल तक चली थी. जून 2022 में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में शिवसेना के 40 विधायकों ने बगावत करके सरकार गिरा दी थी. पिछले साल अजित पवार भी एकनाथ शिंदे के नक्शेकदम पर चलते हुए 45 के करीब एनसीपी विधायकों के साथ शरद पवार के खिलाफ बगावत कर दी थी और महायुति सरकार में डिप्टी सीएम बने थे.

यह भी पढ़ें: 'मैं महाराष्ट्र सीएम पद की रेस में नहीं, लेकिन...', आजतक से खास बातचीत में बोले एकनाथ शिंदे

शिंदे और अजित पवार के नेतृत्व वाले गुटों को चुनाव आयोग ने क्रमशः 'असली' शिवसेना और एनसीपी के रूप में मान्यता दी है. एनसीपी (एसपी) और शिवसेना (यूबीटी) के चुनाव अभियान में एकनाथ शिंदे और अजित पवार के 'विश्वासघात' का मुद्दा हावी रहा. उद्धव ठाकरे और शरद पवार ने मतदाताओं से चुनाव में 'गद्दारों' से सावधान रहने और उन्हें हराने का आग्रह किया. शरद पवार (84) भी राज्य के तूफानी दौरे पर हैं और एक समय अपने रहे विश्वासपात्र रहे- छगन भुजबल और दिलीप वाल्से-पाटिल- के गढ़ों में रैलियों को संबोधित कर रहे हैं.

Advertisement

सीनियर पवार के सोमवार को अपने गृह नगर बारामती में एक रैली को संबोधित करने की संभावना है, जहां अजित पवार का मुकाबला अपने भतीजे और राकांपा (एसपी) के युगेंद्र पवार से है. मुंबई के दादर से बीजेपी के कट्टर समर्थक विनोद सालुंखे ने दावा किया, 'बीजेपी द्वारा अजित पवार को सरकार में शामिल करना उन मूल मूल्यों के साथ विश्वासघात है जिनके लिए पार्टी खड़ी है. यह बीजेपी ही थी जिसने अजित पवार को भ्रष्ट कहा था और उनके खिलाफ अभियान चलाया था.'

यह भी पढ़ें: Exclusive: महाराष्ट्र के CM एकनाथ शिंदे ने राहुल गांधी को दिया चैलेंज, देखिए VIDEO

हालांकि, उन्होंने कहा कि भाजपा का समर्थन करने के अलावा उनके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है. एक कॉर्पोरेट फर्म के वरिष्ठ अधिकारी सालुंखे ने कहा, 'मेरे पास केवल दो विकल्प हैं- या तो घर बैठें या भाजपा का समर्थन करें.' लोकसभा चुनावों में हार के बाद, एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली महायुति सरकार ने मुख्यमंत्री लड़की बहिन योजना सहित कई कल्याणकारी कदम उठाए, जिसके तहत महिलाओं को मासिक सहायता के रूप में 1,500 रुपये दिए जाते हैं. इस योजना से 2.3 करोड़ से अधिक महिलाओं को लाभ हुआ है, जिनमें से कई को पांच महीने में 7,500 रुपये तक मिले हैं.

Advertisement

यह योजना जुलाई में शुरू की गई थी. मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने कहा कि सरकार ने चुनाव की घोषणा के बाद आदर्श आचार संहिता की आशंका को देखते हुए नवंबर की किस्त का भुगतान पहले ही कर दिया था. कल्याणकारी योजनाओं और विकास की पिच के बावजूद,  'बंटेंगे तो कटेंगे', 'एक हैं तो सेफ हैं', 'वोट जिहाद' और 'धर्म युद्ध' जैसे मुद्दे धीरे-धीरे अभियान पर हावी हो गए. पंकजा मुंडे और अशोक चव्हाण जैसे भाजपा नेताओं और प्रमुख सहयोगी अजित पवार ने 'बंटेंगे तो कटेंगे' नारे से असहमति जताई.

यह भी पढ़ें: बारामती में शरद पवार के बैग की तलाशी, महाराष्ट्र में तेज हुई सियासत

देवेंद्र फडणवीस ने तर्क दिया कि 'बंटेंगे तो कटेंगे' पर असहमति जताने वाले नेताओं ने नारे के माध्यम से व्यक्त की जाने वाली एकता के 'मूल संदेश' को नहीं समझा है और दावा किया कि जब भी देश जाति के आधार पर विभाजित हुआ तो विदेशी आक्रमणकारियों ने देश पर शासन किया. देवेंद्र फडणवीस ने हाल ही में कहा- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 'एक हैं तो सेफ हैं' नारे में इसे संक्षेप में कहा है. उन्होंने कहा कि इन नारों ने एकता की वकालत की है. मराठा कोटा एक्टिविस्ट मनोज जारांगे पाटिल, जिन्होंने चुनावी मैदान में नहीं उतरने का फैसला किया है, वह भी राज्य के कुछ हिस्सों का दौरा कर रहे हैं और मतदाताओं से समुदाय के लिए आरक्षण का विरोध करने वालों को हराने का आग्रह कर रहे हैं.

Advertisement

चुनाव प्रचार के शोर में रोजगार सृजन, एफडीआई, किसानों का पलायन, हेल्थकेयर और एजुकेशन जैसे मुद्दे पृष्ठभूमि में चले गए प्रतीत होते हैं. महाराष्ट्र के ग्रामीण हिस्सों में कृषि संकट, सोयाबीन और कपास की कीमतों में गिरावट और कृषि श्रमिकों की अनुपलब्धता जैसे मुद्दे प्रमुख हैं, लेकिन राजनीतिक चर्चा से लगभग गायब हैं. नासिक के मनमाड के एक आरटीआई कार्यकर्ता दीपक जगताप ने कहा, 'प्याज निर्यात प्रतिबंध के मुद्दे ने लोकसभा चुनावों में भाजपा को झटका दिया; विधानसभा चुनाव में सोयाबीन और कपास की कीमतें सत्तारूढ़ पार्टी को परेशान करने वाले मुद्दे हो सकते हैं.'

यह भी पढ़ें: महाराष्ट्र में वोट जिहाद को लेकर BJP का 'हिंदू जागो' वाले गाने से प्रहार, देखें VIDEO

उन्होंने कहा कि लड़की बहिन पहल सत्तारूढ़ गठबंधन के लिए गेम चेंजर हो सकती है क्योंकि हर तबके की महिलाओं को राज्य सरकार से वित्तीय सहायता मिली है. दोनों गठबंधनों महायुति और महा​ विकास अघाड़ी ने देश भर से अपने वरिष्ठ नेताओं को महाराष्ट्र के चुनाव प्रचार में उतारा. पीएम मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, वरिष्ठ कांग्रेस नेता राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, तेलंगाना के सीएम ए रेवंत रेड्डी, कर्नाटक के डिप्टी सीएम डीके शिवकुमार, राजस्थान के पूर्व सीएम अशोक गहलोत शामिल थे, जिन्होंने चुनाव के लिए प्रचार किया. 288 सदस्यीय महाराष्ट्र विधानसभा के लिए 20 नवंबर को होने वाले चुनाव में 9.7 करोड़ लोग वोट डालने के लिए पात्र हैं.
 

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement