गौरा-बौराम में ऐसा क्या हुआ? फ्रेंडली फाइट हुई टाइट तो मुकेश सहनी ने अपने भाई को करा लिया एग्जिट

दरभंगा के गौरा-बौराम विधानसभा सीट पर गुरुवार को मतदान है. वोटिंग से पहले वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी ने इस सीट से चुनाव लड़ रहे अपने भाई संतोष सहनी को हटा लिया है और आरजेडी प्रत्याशी अफजल अली खान को समर्थन का ऐलान कर दिया है. मुकेश सहनी ने ऐसे ही कदम पीछे नहीं खींचे हैं?

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आरजेडी के लिए मुकेश सहनी ने अपने भाई को चुनाव से हटाया (Photo-PTI) आरजेडी के लिए मुकेश सहनी ने अपने भाई को चुनाव से हटाया (Photo-PTI)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 05 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:40 PM IST

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की वोटिंग से ठीक पहले दरभंगा की गौरा-बौराम सीट पर सियासी गेम पूरी तरह से बदल गया. वीआईपी के अध्यक्ष मुकेश सहनी ने अपने ही भाई संतोष सहनी को चुनावी मैदान से हटा लिया और आरजेडी उम्मीदवार अफजाल अली खान को समर्थन करने का ऐलान कर दिया है. इस तरह गौरा-बौराम सीट पर महागठबंधन की फ्रेंडली फाइट खत्म हो गई है, लेकिन क्या जीत भी दर्ज कर पाएगी.

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दरभंगा की गौरा-बौराम विधानसभा सीट को लेकर महागठबंधन में शुरू से ही खींचतान बनी हुई थी. लालू प्रसाद यादव ने अफजल अली खान को आरजेडी से टिकट दे दिया था, जिसके बाद उन्होंने अपना नामांकन दाखिल कर दिया था. सीट शेयरिंग में यह सीट अंतिम समय में मुकेश सहनी के खाते में चली गई, जिसके बाद उन्होंने अपने भाई संतोष सहनी को वीआईपी (के टिकट पर उतार दिया था.

वीआईपी के प्रमुख मुकेश सहनी जातीय वोटरों के आधार पर यह सीट अपने लिए सुरक्षित मानकर चल रहे थे। इसी के चलते गौरा-बौराम सीट को सहनी ने लिया, लेकिन आरजेडी के उम्मीदवार अफजाल अली खान ने 'फ्रेंडली फाइट' को टाइट बना दिया. ऐसे में मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी की चुनावी राह काफी मुश्किलों भरी नजर आ रही थी, जिसके चलते वोटिंग से पहले चुनावी मैदान से हटना पड़ा. 

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गौरा-बौराम सीट पर  'फ्रेंडली फाइट'

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महागठबंधन में गौरा-बौराम विधानसभा सीट पर शुरू से ही आरजेडी और वीआईपी दोनों अपनी-अपनी दावेदारी कर रहे थे. सीट शेयरिंग के ऐलान से पहले ही लालू यादव ने अफजल अली खान को टिकट दे दिया था, जिसके चलते उन्होंने अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया. यहां के जातीय समीकरण के चलते मुकेश सहनी अपनी दावेदारी कर रहे थे. ऐसे में तेजस्वी यादव ने आखिरकार गौरा-बौराम सीट वीआईपी को देने का ऐलान कर दिया.

मुकेश सहनी को जब तक ये सीट मिली तब तक आरजेडी के अफजल अली खान ने अपना नामांकन आरजेडी से कर दिया था. इसके बाद तमाम कोशिशों के बाद भी अफजल अली खान ने नामांकन वापस नहीं लिया. ऐसे में लालू यादव ने चुनाव आयोग को पत्र लिख कर कहा कि इस सीट पर अब महागठबंधन के अधिकृत प्रत्याशी संतोष सहनी हैं. अफजाल खान ने आरजेडी के सिंबल पर अपना नामांकन दाखिल कर रखा था, जिसके चलते वो आरजेडी के प्रत्याशी के तौर पर बैलेट पेपर पर नाम दर्ज कर रखे थे. 

लालू यादव के पत्र लिखे जाने के बाद वीआईपी उम्मीदवार संतोष सहनी ने चुनाव आयोग से अफजल अली खान के नामांकन को रद्द करने की भी मांग की, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसके चलते गौरा-बौराम सीट पर महागठबंधन की फ्रेंडली फाइट वाली स्थिति बन गई. तेजस्वी यादव ने अफजाल को पार्टी से निष्कासित भी कर दिया, लेकिन उन्होंने जमीनी स्तर पर मेहनत करके सियासी माहौल को रोचक बना दिया.

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फ्रेंडली फाइट जब बन गई टाइट

आरजेडी की तमाम कोशिशों के बाद भी अफजाल अली खान ने अपने सियासी कदम पीछे नहीं खींचे और गौरा-बौराम विधानसभा सीट पर बने हुए हैं. अफजाल अली खुद को महागठबंधन का असली उम्मीदवार बताकर अपने क्षेत्र के मुस्लिम वोटों को अपने पक्ष में लामबंद कर रहे थे. यही नहीं मुस्लिम समुदाय के लोगों में इस बात की भी नाराजगी बन गई थी कि जब आरजेडी के उम्मीदवार ने नामांकन कर दिया था, तो संतोष सहनी को वीआईपी (VIP) से नॉमिनेशन क्यों कराया गया.

अफजाल अली खान गौरा-बौराम क्षेत्र में रहते हैं जबकि संतोष सहनी मुंबई में रहते हैं। दस साल से क्षेत्र में अफजाल अली सक्रिय हैं और 2020 के चुनाव में सिर्फ 7 हजार वोटों से हार गए थे। इस लिहाज से उनकी स्थिति इस बार बेहतर मानी जा रही है. मुस्लिमों का झुकाव अफजाल खान के पक्ष में होने से संतोष सहनी की चिंता बढ़ गई. संतोष सहनी सिर्फ मल्लाह वोटों से गौरा-बौराम सीट नहीं जीत सकते थे। अफजाल और संतोष के फ्रेंडली फाइट से गौरा-बौराम सीट का मुकाबला टाइट हो गया था.

गौरा-बौराम सीट पर त्रिकोणीय लड़ाई

दरभंगा की गौरा-बौराम विधानसभा सीट पर आरजेडी से अफजल अली खान, वीआईपी से संतोष सहनी, बीजेपी से सुजीत कुमार सिंह और एआईएमआईएम के अख्तर शहंशाह चुनावी मैदान में है. 2020 में एनडीए गठबंधन में रहते हुए वीआईपी ने यह सीट जीती थी, लेकिन इस बार का चुनावी सीन अलग है. 

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महागठबंधन की तरफ से आरजेडी और वीआईपी (VIP) के उम्मीदवार होने से बीजेपी के सुजीत कुमार सिंह की राह आसान बनती जा रही थी.  सुजीत कुमार आईआरएस (IRS) अधिकारी रहे हैं. 2020 में उनकी पत्नी स्वर्णा सिंह वीआईपी  के टिकट पर विधायक बनी थीं, लेकिन बाद में बीजेपी का दामन थाम लिया थाय.

इस बार गौरा-बौराम सीट को मुकेश सहनी ने अपनी प्रतिष्ठा का सवाल बना लिया है, जिसके लिए अपने भाई को उतारा था, लेकिन अफजल खान के उतरने से मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी के लिए टेंशन का सबब बन गई थी. अफजल अली खान और संतोष सहनी के मैदान में होने से महागठबंधन के वोटों में बिखराव से बीजेपी के जीत की संभावना बन रही थी, जिसे देखते हुए मुकेश सहनी ने बड़ा दांव चला.

मुकेश सहनी की प्रतिष्ठा का सवाल

गौरा-बौराम सीट से मुकेश सहनी के भाई संतोष सहनी अगर चुनाव हार गए तो उनके राजनीतिक भविष्य पर सवाल खड़ा हो जाएगा. सहनी खुद को निषाद समुदाय का बड़ा नेता मानते हैं, जिसके दम पर महागठबंधन में डिप्टी सीएम का चेहरा बने हैं. गौरा-बौराम सीट पर मल्लाह वोटर भी बड़ी संख्या में हैं. मुकेश सहनी आज तक कोई भी चुनाव नहीं जीत सके हैं. एक बार लोकसभा और एक बार वो विधानसभा का चुनाव हार चुके हैं.

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मुकेश सहनी इस बार खुद चुनावी मैदान में नहीं उतरे थे बल्कि अपने भाई को चुनावी मैदान में उतारा था. मुकेश के भाई संतोष सहनी भी सीट पर फंसे हुए थे. ऐसे में वोटों के बंटवारे की आशंका को देखते हुए मुकेश सहनी ने वोटिंग से ठीक पहले अपने भाई संतोष को मैदान से हटने का ऐलान कर दिया.

संतोष सहनी ने चुनाव से खींचा कदम

मुकेश सहनी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हम गठबंधन की एकता और बड़ी जीत के लिए पीछे हट रहे हैं और आरजेडी  प्रत्याशी अफजल अली खान को समर्थन देने की घोषणा की. सहनी ने कहा कि आरजेडी प्रत्याशी को काफी समझाने का प्रयास किया गया, लेकिन वे नहीं माने. ऐसे में वीआईपी  के प्रत्याशी संतोष सहनी ने बड़ा दिल दिखाते हुए आरजेडी उम्मीदवार को समर्थन करने का फैसला किया है.

उन्होंने कहा कि अगर दोनों चुनाव मैदान में रहते तो इसका लाभ एनडीए को मिलता. उन्होंने कहा कि यह लड़ाई बड़ी लड़ाई है. यह किसी एक विधायक को विजयी बनाने की नहीं, महागठबंधन की सरकार बनाने की लड़ाई है. उन्होंने कहा कि आरजेडी  प्रत्याशी विजयी होंगे तो सरकार महागठबंधन की ही बननी है. ऐसे में अब देखना है कि अफजल खान क्या जीत का स्वाद चख पाते हैं कि नहीं?

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