बिहार में वाकई सशक्त हो रही हैं महिलाएं? जानें वोट डालने से लेकर वेतन मिलने की हकीकत

बीते कुछ वर्षों में महिलाएं एक प्रभावशाली वोट बैंक बन चुकी हैं. इसी कड़ी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया है. दरअसल, पिछले एक दशक से बिहार में महिला मतदाता टर्नआउट लगातार पुरुषों से ज्यादा रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.7 था, जबकि पुरुषों का केवल 54.6. यह तीसरा चुनाव था, जिसमें महिलाओं ने बढ़चढ़ कर भागीदारी दिखाई.

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बिहार में कितनी सशक्त हुईं महिलाएं बिहार में कितनी सशक्त हुईं महिलाएं

अंकिता तिवारी

  • नई दिल्ली,
  • 10 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 2:01 AM IST

बिहार में जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, राज्य सरकार का फोकस महिलाओं पर बढ़ गया है. महिलाओं का वोट अब बहुत अहम माना जा रहा है. कारण, बीते कुछ वर्षों में महिलाएं एक प्रभावशाली वोट बैंक बन चुकी हैं. इसी कड़ी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महिलाओं को सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण देने का ऐलान किया है. 

दरअसल, पिछले एक दशक से बिहार में महिला मतदाता टर्नआउट लगातार पुरुषों से ज्यादा रहा है. 2020 के विधानसभा चुनाव में महिलाओं का मतदान प्रतिशत 59.7 था, जबकि पुरुषों का केवल 54.6. यह तीसरा चुनाव था, जिसमें महिलाओं ने बढ़चढ़ कर भागीदारी दिखाई. 

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इसी तरह 2019 के लोकसभा चुनाव में लगभग 59.9 प्रतिशत महिला मतदाताओं ने हिस्सा लिया, जबकि पुरुषों का प्रतिशत 55.3 रहा. हाल ही में 2024 के लोकसभा चुनाव में भी महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोट डाले. महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत 59.45 रहा तो पुरुषों का 53.

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जनसांख्यिकीय स्तर पर देखा जाए तो बिहार ने धीरे-धीरे सुधार किया है. नीति आयोग की मार्च 2025 की रिपोर्ट "Macro and Fiscal Landscape of the State of Bihar" के अनुसार, 2011 की जनगणना के आधार पर राज्य में जन्म के समय लिंगानुपात 933 महिलाएं प्रति 1,000 पुरुष है, जो कि राष्ट्रीय औसत 914 से अधिक है.

कामकाज में महिलाओं की भागीदारी

महिलाओं को आरक्षण देना अच्छी बात है, लेकिन असल सवाल यह है कि बिहार में कितनी महिलाएं काम कर रही हैं?

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Periodic Labour Force Survey के अनुसार, 2017–18 में 15 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं की श्रम भागीदारी दर मात्र 4.1 प्रतिशत थी, जो देश में सबसे कम थी. लेकिन 2022–23 में यह दर बढ़कर 22.4 प्रतिशत हो गई और 2023–24 में यह 30.5 प्रतिशत तक पहुंच गई यानि छह वर्षों में सात गुना बढ़ोतरी.

2017–18 में बिहार की महिला कामगारों का बंटवारा तीन भागों में लगभग बराबर था- स्व-रोजगार, वेतनभोगी नौकरियां और आकस्मिक श्रम. लेकिन 2023–24 में स्थिति बदल गई. अब 83 प्रतिशत महिलाएं स्व-रोजगार में लगी हैं, केवल 4.8 प्रतिशत महिलाएं नियमित वेतनभोगी नौकरियों में हैं और 11.7 प्रतिशत महिलाएं दिहाड़ी मजदूरी करती हैं.

महिलाओं की कमाई अब भी कम क्यों है?

हालांकि महिलाओं की कार्यबल में भागीदारी बढ़ी है, लेकिन उनकी आमदनी अब भी पुरुषों की तुलना में काफी कम है. बिहार आर्थिक सर्वेक्षण 2023–24 के अनुसार, ग्रामीण इलाकों में स्व-रोजगार करने वाली महिलाएं औसतन ₹4,434 प्रति माह कमाती हैं, जबकि पुरुषों की कमाई ₹10,000 से अधिक है. शहरी स्व-रोजगार में यह अंतर और भी बड़ा है. महिलाएं ₹8,342 कमाती हैं, जबकि पुरुष ₹18,583, यानि ₹10,000 से ज्यादा का फर्क.

वहीं शहरी क्षेत्रों में नियमित वेतनभोगी नौकरियों में महिलाएं ₹22,394 प्रति माह कमाती हैं, जबकि पुरुषों की औसत आय ₹23,869 है. हालांकि यह अंतर अपेक्षाकृत कम है, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में वेतनभोगी नौकरी में यह फर्क फिर से बढ़ जाता है- पुरुष ₹18,504 और महिलाएं ₹14,848 कमाती हैं, यानि हर महीने ₹3,656 का अंतर.

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