विजयवर्गीय ने ममता के दुर्ग में लगाई थी सेंध, अब क्या सत्ता के सिंहासन तक बीजेपी को ले जा सकेंगे भूपेंद्र-बिप्लब?

पीएम मोदी की अगुवाई में बीजेपी तीसरी बार केंद्र की सत्ता पर काबिज है तो कई मुश्किल राज्यों में भी पार्टी सरकार बनाने में कामयाब रही, लेकिन बंगाल में अभी भी उसके लिए चुनौती बना हुआ है. ऐसे में बीजेपी ने बंगाल की कमान अपने दिग्गज नेता भूपेंद्र यादव और बिप्लब देव को सौंपी है.

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बंगाल में भूपेंद्र यादव और बिप्लव देव की जोड़ी क्या होगी हिट (Photo-ITG) बंगाल में भूपेंद्र यादव और बिप्लव देव की जोड़ी क्या होगी हिट (Photo-ITG)

कुबूल अहमद

  • नई दिल्ली ,
  • 29 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 1:20 PM IST

पश्चिम बंगाल में अगले साल विधानसभा चुनाव है, लेकिन भाजपा (बीजेपी) ने अभी से ही सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. भाजपा ने अपने दिग्गज नेता भूपेंद्र यादव को प्रभारी बनाकर बंगाल की कमान सौंपी तो उनके साथ बिप्लब देब को सह-प्रभारी नियुक्त किया है. ऐसे में सवाल उठता है कि कैलाश विजयवर्गीय बंगाल में जो काम 2021 में नहीं कर सके, क्या वो काम 2026 में भूपेंद्र यादव कर पाएंगे?

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कैलाश विजयवर्गीय भाजपा के दिग्गज नेता माने जाते हैं. 2021 के विधानसभा और 2024 के लोकसभा चुनाव की कमान बंगाल में कैलाश विजयवर्गीय संभाल रहे थे. भाजपा को बंगाल में नंबर-दो की पार्टी बनाने में विजयवर्गीय सफ़ल रहे, लेकिन सत्ता के सिंहासन तक नहीं पहुंचा सके. अब बंगाल की ज़िम्मेदारी भूपेंद्र यादव और बिप्लब देब को मिली है.

भूपेंद्र यादव भाजपा के संकट मोचक कहलाते हैं. महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश और गुजरात तक भाजपा को जिताने में अहम रोल अदा कर चुके हैं, लेकिन अब उन्हें बंगाल की कमान सौंपी गई है. बंगाल देश के उन चुनिंदा राज्यों में से एक है, जहां पर भाजपा अभी सत्ता में नहीं आ सकी है. भूपेंद्र यादव के सियासी ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए बंगाल जैसे चुनौती भरे राज्य की ज़िम्मेदारी मिली है.

भाजपा के लिए बंगाल कितना मुश्किल?

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प्रधानमंत्री मोदी की अगुवाई में भाजपा न सिर्फ़ तीन बार केंद्र में सरकार बनाने में कामयाब रही बल्कि कई राज्यों में 'कमल का फूल' भी खिलाया, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के सामने भाजपा टिक नहीं सकी. ममता बनर्जी ने 2011 में बंगाल में 34 साल पुराने लेफ्ट के क़िले को ढहाकर अपना मज़बूत दुर्ग में तब्दील करने में सफ़ल रही.

2014 के लोकसभा चुनाव में पश्चिम बंगाल की दो लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज करने के बाद भाजपा ने ममता बनर्जी को चुनौती दी. 2016 के चुनाव में भाजपा को महज़ तीन सीटें मिलीं, लेकिन उसका वोट शेयर 4 फ़ीसदी से बढ़कर 10 फ़ीसदी पर पहुंच गया. भाजपा को बंगाल में असल क़ामयाबी 2019 के लोकसभा चुनाव में मिली जब वो राज्य की 42 में से 18 सीटों पर जीत दर्ज करने में कामयाब रही थी, जिससे उसे सत्ता में आने की उम्मीद जागी, लेकिन 2021 में ममता बनर्जी ने अपना क़िला बचाए रखा.

हालांकि, लेफ़्ट और कांग्रेस को पछाड़ते हुए भाजपा 77 सीटें जीतकर राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बन गई, लेकिन सत्ता में आने का सपना साकार नहीं हो सका. ऐसे में 2024 के लोकसभा चुनाव में ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में अपनी स्थिति मज़बूत की और 42 में से 29 सीटों पर जीत दर्ज की. भाजपा को 6 सीटों का नुक़सान हुआ और वह 12 सीटों पर सिमट गई. इस तरह 2019 में बना भाजपा का माहौल फीका पड़ा.

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बंगाल के सियासी समीकरण ममता बनर्जी की ताक़त हैं, जो भाजपा के लिए चुनौती है. भाजपा के लिए विपक्षी दलों में सबसे बड़ी चुनौती ममता हैं. ममता बनर्जी देश की सबसे ताक़तवर नेताओं में से एक हैं. भाजपा के पास बंगाली अस्मिता का न ही तोड़ है और न ही ममता बनर्जी के क़द का कोई चेहरा, जिसे आगे कर चुनौती दे सके. इतना ही नहीं, 30 फ़ीसदी मुस्लिम वोटरों का एकमुश्त समर्थन ममता बनर्जी के साथ है. इसीलिए 2021 विधानसभा चुनाव में तमाम प्रयासों के बावजूद भाजपा सत्ता हासिल नहीं कर सकी और उस समय राज्य के प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय थे.

बंगाल की कमान भूपेंद्र यादव के पास

कैलाश विजयवर्गीय के नेतृत्व में भाजपा ने विस्तार तो किया, लेकिन ममता लहर रोकने में सफ़लता नहीं मिली. पश्चिम बंगाल की सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा ने भूपेंद्र यादव को राज्य का चुनाव प्रभारी बनाया है. भूपेंद्र यादव की संगठन में गहरी पकड़ और रणनीतिकार की छवि रही है. यादव गुजरात मॉडल से लेकर उत्तर प्रदेश और बिहार तक, कई राज्यों में भाजपा के लिए जीत की इबारत लिख चुके हैं.

भूपेंद्र यादव भाजपा का चुपचाप काम करने वाला रणनीतिकार कहा जाता है. वे मंच पर कम और बैकग्राउंड में ज़्यादा दिखते हैं. यही वजह है कि हर राज्य में उन्हें जीत दिलाने का श्रेय दिया जाता है. वह एक शांत और प्रभावी नेता हैं, जिन्हें संगठन और चुनाव प्रबंधन दोनों में पारंगत माना जाता है. केंद्रीय मंत्री रहते हुए भूपेंद्र यादव संगठनात्मक कामों पर लगातार ध्यान रखते हैं. इसी के दम पर भाजपा को जीत दिलाते हैं.

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यूपी और एमपी तक जीत का ट्रैक रिकॉर्ड

भूपेंद्र यादव का चुनावी रिकॉर्ड शानदार रहा है. साल 2013 में राजस्थान, साल 2017 में गुजरात, साल 2014 में झारखंड और साल 2017 में उत्तर प्रदेश में जीत दिलाने में भाजपा सफ़ल रही. पार्टी ने उन्हें 2024 में महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का प्रभारी भी बनाया था. इस चुनाव में भाजपा को शानदार सफ़लता मिली. 2023 में मध्य प्रदेश की कमान भूपेंद्र यादव ने सँभाली तो भाजपा की हार को जीत में तब्दील कर दिया.

भूपेंद्र यादव को बंगाल का प्रभारी बनाया गया तो बिप्लब देब को सह-प्रभारी नियुक्त किया है. बिप्लब देब को हरियाणा विधानसभा चुनाव का सह-प्रभारी बनाया गया था, जिसमें भी भाजपा को जीत हासिल हुई थी. इससे पहले बिप्लब देब के नेतृत्व में त्रिपुरा में भाजपा ने 25 साल पुराना कम्युनिस्ट/लेफ़्ट शासन का अंत करके जीत हासिल की थी, उस चुनाव में उनका नेतृत्व महत्वपूर्ण माना गया था. भाजपा ने 36 सीटें जीतीं और सरकार बनाई. भाजपा की जीत के बाद बिप्लब देब को राज्य का मुख्यमंत्री बनाया गया था.

भूपेंद्र और बिप्लब की जोड़ी होगी हिट?

पश्चिम बंगाल की कमान भूपेंद्र यादव और बिप्लब देब को सौंपी गई है. अभी तक भाजपा के दोनों ही नेता पार्टी के चुनावी जंग जीतने में सफ़ल रहे हैं, लेकिन असल चुनौती बंगाल में है. बिप्लब और भूपेंद्र यादव को सबसे मुश्किल टास्क बंगाल का मिला है. बिप्लब देब बंगाल में काम कर चुके हैं और पड़ोसी राज्य त्रिपुरा के मुख्यमंत्री रहे हैं, लेकिन भूपेंद्र यादव के लिए यह चुनौती है.

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भूपेंद्र यादव के सामने ममता बनर्जी की मज़बूत पकड़ और टीएमसी का गहरा ज़मीनी नेटवर्क को रोकना बड़ा मक़सद होगा. ममता के सियासी माहौल को तोड़ने की भी चुनौती होगी. बंगाल में भाजपा कार्यकर्ताओं की सुरक्षा और मनोबल बनाए रखना भी एक बड़ी चुनौती होगी. 2024 के लोकसभा चुनाव में घटी सीटों और वोट शेयर को फिर से बढ़ाने ही नहीं बल्कि सत्ता में लाने की चुनौती है.

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