बिहार की सियासत में महागठबंधन के भीतर पहले से ही कई सीटों पर आपसी टकराव और उम्मीदवारों के आमने-सामने उतरने से घमासान मचा हुआ है. इसी बीच वीआईपी प्रमुख मुकेश सहनी के एक बयान ने सियासी माहौल और गरमा दिया है.
दरअसल, मुकेश सहनी ने कहा कि कांग्रेस के बाद समाज ने लालू प्रसाद यादव पर भरोसा किया, उन्हें मसीहा माना और गरीबों की आवाज समझकर लंबे समय तक साथ दिया. लेकिन, सहनी के अनुसार, बाद में ऐसी परिस्थिति बनी कि समाज के साथ नाइंसाफी होने लगी.
बीजेपी ने सहनी के बयान को बनाया हथियार
सहनी ने कहा, “फिर हम नीतीश जी और बीजेपी के साथ भी गए. आज पूरे बिहार में निषाद समाज ने मुझे अपना भाई, बेटा और नेता माना है. हम बड़े लेवल पर लड़ाई लड़ रहे हैं और लोगों के जख्मों को भरने का काम कर रहे हैं.”
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सहनी का यह बयान सामने आते ही भाजपा ने इसे राजनीतिक हथियार बना लिया. पार्टी के आईटी सेल प्रमुख अमित मालवीय ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स (पूर्व ट्विटर) पर वीडियो साझा करते हुए लिखा, “मुकेश सहनी ने खुद स्वीकार किया है कि लालू प्रसाद के शासनकाल में निषाद समाज पर अत्याचार हुए थे. क्या अब निषाद समाज फिर से उसी ओर आकर्षित होगा?”
इसके बाद एनडीए के नेता लगातार आरजेडी पर हमलावर हो गए हैं. उनका कहना है कि लालू यादव के शासनकाल में गैर-यादव ओबीसी वर्गों के साथ भेदभाव हुआ था और अब वही पुरानी राजनीति दोहराई जा रही है.
मुकेश सहनी ने पेश की सफाई
वहीं विवाद बढ़ने पर मुकेश सहनी ने सफाई दी कि उनकी बातों को तोड़-मरोड़ कर पेश किया गया है. उन्होंने कहा कि उनका उद्देश्य किसी समुदाय या दल पर आरोप लगाना नहीं था, बल्कि समाज की पिछली यात्रा का जिक्र करना था.
लेकिन मामला यहीं नहीं रुका. भाजपा की स्टार प्रचारक स्मृति ईरानी ने भी मोर्चा संभालते हुए मुकेश सहनी पर तंज कसा. उन्होंने कहा यह सवाल तो मुकेश सहनी से होना चाहिए कि जब लालू राज में निषादों पर अत्याचार होते थे, तो अब वे किस दबाव या प्रलोभन में उन्हीं लोगों के साथ खड़े हैं?
बयान से महागठबंधन की बढ़ेगी मुश्किलें?
राजनीतिक हलकों में यह बयानबाजी महागठबंधन के लिए असहज स्थिति पैदा कर रही है. पहले से सीटों के तालमेल पर विवाद झेल रहे गठबंधन के भीतर अब यह बयान नई फूट का कारण बन सकता है. वहीं एनडीए इसे सामाजिक न्याय बनाम जातीय पक्षपात की बहस में बदलने की कोशिश में है. राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि चुनावी मौसम में यह मुद्दा निषाद और अन्य पिछड़े वर्गों के मतदाताओं पर असर डाल सकता है और यही बात महागठबंधन की सबसे बड़ी चिंता है.
हिमांशु मिश्रा