4 फरवरी 1670: 350 साल पहले का शौर्य, जब तानाजी ने जीता था कोंढाणा

1670 की शुरुआत के साथ ही तानाजी मालुसरे अपने बेटे के विवाह की तैयारी कर रहे थे. जब वे विवाह का न्यौता शिवाजी को देने पहुंचे तो उन्हें पता चला कि शिवाजी सिंहगढ़ विजय की रणनीति बना रहे हैं. इसी दौरान तय हुआ कि तानाजी मालुसरे अपने पुत्र की शादी बाद में करेंगे पहले सिंहगढ़ जीता जाएगा.

Advertisement
सिंहगढ़ का किला (फाइल फोटो-सौरभ सावंत) सिंहगढ़ का किला (फाइल फोटो-सौरभ सावंत)

पन्ना लाल

  • नई दिल्ली,
  • 04 फरवरी 2020,
  • अपडेटेड 5:28 PM IST

  • 350 साल पहले हुआ था कोंढाणा का युद्ध
  • 4 फरवरी 1670 को हुई भीषण लड़ाई
  • तानाजी मालुसरे की वीरता की कहानी

4 फरवरी 1670 की रात. यानी कि आज से ठीक 350 साल पहले की बात.  4 फरवरी 1670 की रात को ही पुणे के सिंहगढ़ (तब कोंढाणा) किले पर फतह के लिए शिवाजी के विश्वस्त सरदार तानाजी मालुसरे और मुगल बादशाह औरंगजेब के किलेदार उदय भान राठौड़ के बीच युद्ध हुआ था.

Advertisement

पुणे शहर से लगभग 40 किलोमीटर दूर सहयाद्रि पहाड़ियों में बसा ऐतिहासिक सिंहगढ़ किला 2000 साल पुराना है. ये किला समुद्र तट से साढ़े सात सौ मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. कोंढाणा की लड़ाई पर ही हाल में रिलीज हुई चर्चित फिल्म तानाजी मालुसरे ने बॉक्स ऑफिस पर कामयाबी के झंड़े गाड़े.

सिंहगढ़ विजय की प्रस्तावना

साल 1670 में दिल्ली में मुगलिया सल्तनत का परचम बुलंदी से लहरा रहा था. दिल्ली के तख्त पर मुगल बादशाह औरंगजेब का राज था. 1665 में मुगल साम्राज्य और शिवाजी के बीच पुरंदर की संधि के तहत ये किला औरंगजेब को मिला था. इसके साथ ही इसके जैसे 23 दूसरे किले भी मुगलों को मिल गए थे.

पढ़ें: अजय देवगन की तानाजी का जलवा, 200 करोड़ क्लब में एंट्री

ये समझौता शिवाजी को हमेशा से खटक रहा था. वे इस किले को फिर से वापस लेने की लगातार कोशिश कर रहे थे. 1670  में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण इस किले की निगरानी मुगल साम्राज्य के विश्वस्त राजपूत सेनापति उदयभान राठौड़ कर रहे थे. बता दें कि बाद में सिंहगढ़ किला पहले कोंढाणा के नाम से जान जाता था.

Advertisement

350 साल पहले हुई सिंहगढ़ की लड़ाई

ऐतिहासिक स्रोत और किवदंतियों के मुताबिक जनवरी 1670 में तानाजी मालुसरे अपने बेटे के विवाह की तैयारी कर रहे थे. जब वे विवाह का न्यौता शिवाजी को देने पहुंचे तो उन्हें पता चला कि शिवाजी सिंहगढ़ विजय की रणनीति बना रहे हैं. इसी दौरान तय हुआ कि तानाजी मालुसरे अपने पुत्र की शादी बाद में करेंगे पहले सिंहगढ़ जीता जाएगा.

तानाजी मालुसरे अपने भाई सूर्या मालुसरे के साथ सिंहगढ़ विजय के लिए निकले, लेकिन ये युद्ध बेहद कठिन था. सिंहगढ़ किला पहाड़ियों में सीधी चढ़ाई पर स्थित था.  इस चढ़ाई पर मुगल सैनिकों को चकमा देकर चढ़ना और विजय हासिल करना लगभग असंभव था.

रात के वक्त तानाजी मालुसरे अपने सैनिकों के साथ किले पर चढ़ने लगे. कहते हैं कि ताना जी के भाई अपनी सेना के साथ किले के कल्याण द्वार पर पहुंच गए और दरवाजा खुलने का इंतजार करने लगे. उदयभान राठौड़ को जैसे ही इस हमले की जानकारी मिली भयंकर लड़ाई छिड़ गई.

पढ़ें: सिंहगढ़ किले को जाने वाली सड़क पर हादसा, बड़ी अनहोनी टली

इस दौरान मौका पाकर तानाजी के कुछ सैनिकों ने अंदर कल्याण दरवाजो खोल दिया. फिर मराठा सैनिक अंदर आ गए और भीषण युद्ध छिड़ गया.

तानाजी और उदयभान के बीच घमासान युद्ध हुआ. संख्या में कम होने के बाद भी तानाजी के सैनिक बहादुरी से लड़े. कई बार मुगल सैनिक उन पर भारी पड़े. तानाजी उदयभान से लड़ते लड़ते चोटिल हो गए और गिर पड़े. उन्हें वीरगति प्राप्त हुई. इस बीच सूर्या जी ने पूरी ताकत झोंक दी और आखिरकार किले को जीत लिया.

Advertisement

शिवाजी को जब इस जीत के बारे में पता चला तो उन्होंने कहा कि 'गढ़ आला, पन सिंह गेला' यानी किला तो जीत लिया लेकिन अपना शेर खो दिया.

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement