क्यों नॉर्मलाइजेशन सिस्टम पर अलग-अलग राज्यों में बवाल हो रहे हैं? समझ‍िए इसके फायदे-नुकसान

नॉर्मेलाइजेशन व्यवस्था का यूपी बिहार के अभ्यर्थी विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि आयोग की परीक्षाओं में कई बार सवाल ही गलत पूछ लिए जाते हैं. अगर किसी एक पाली की तुलना में दूसरी पाली की परीक्षा में ज्यादा सवाल गलत हुए तो उनको कैसे पता चलेगा कि कितना अंक मिला. इसके अलावा परसेंटाइल निकालने का फॉर्मूला किसी एक पाली में परीक्षा में शामिल हुए छात्रों की संख्या के आधार पर निर्भर है.

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Candidates Protest for BPSC 70th Exam (Representational Image) Candidates Protest for BPSC 70th Exam (Representational Image)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 09 दिसंबर 2024,
  • अपडेटेड 1:25 PM IST

UPPSC के बाद BPSC के अभ्यर्थी परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन का विरोध कर रहे हैं. बीपीएससी 70वीं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन लागू करने के खिलाफ अभ्यर्थियों ने बिहार की राजधानी पटना में बीपीएससी ऑफिस के पास प्रदर्शन किया. हाल ही में UP PCS और RO/ARO भर्ती परीक्षा के अभ्यर्थियों ने नॉर्मलाइजेशन मेथड लागू करने का विरोध किया था. हालांकि विरोध प्रदर्शन के बाद यूपीपीएससी ने इस फैसले को वापस ले लिया था. ऐसे में आइए जानते हैं कि अगर परीक्षा में नॉर्मलाइजेशन हो जाता है तो इससे फायदे और नुकसान क्या है.

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क्या है नॉर्मलाइजेशन प्रक्रिया?

सबसे पहले तो यह जानिए कि नॉर्मलाइजेशन क्या है. नॉर्मलाइजेशन फॉर्मेट के तहत किसी परीक्षा में मिले अंकों को सामान्य यानी नॉर्मलाइज किया जाता है. इसका इस्तेमाल विभिन्न सेटों में प्राप्त अंकों को एक ही पैमाने पर लाने के लिए किया जाता है. बीपीएससी परीक्षा में, विभिन्न एक से अधिक शिफ्ट में होने वाले पेपरों के अंकों का मूल्यांकन इसी मेथड से होना है, जिसका अभ्यर्थी विरोध कर रहे हैं. यह दर्शाता है कि उस शिफ्ट में अन्य सभी उम्मीदवारों ने इस टॉप स्कोरर के बराबर या उससे कम स्कोर किया है. फाइनल मेरिट लिस्ट और रैंकिंग असल स्कोर से प्राप्त पर्सेंटाइल स्कोर द्वारा निर्धारित की जाएगी. 

नॉर्मलाइजेशन लागू क्यों किया जाता है?

दरअसल, अगर परीक्षा में कैंडिडेट्स की संख्या ज्यादा हो तो अलग-अलग दिन या अलग-अलग पालियों में परीक्षा आयोजित करने का निर्णय लिया जाता है. ताकि रिजल्ट समान और निष्पक्ष हों. जब किसी पाली में अभ्यर्थियों ने कम अंक प्राप्त किए या उन्होंने कम सवालों के जवाब दिए, तो उस पाली के प्रश्न पत्र को कठिन माना जाएगा. इसके विपरीत, अगर दूसरी पाली में अभ्यर्थियों ने अधिक अंक प्राप्त किए और ज्यादा सवालों के जवाब दिए, तो उस पाली के प्रश्न पत्र को आसान माना जाएगा. इसके तहत, आसान पाली में अच्छे अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों के परिणाम को लेकर कुछ समायोजन किया जाता है, ताकि कठिन पाली में कम अंक प्राप्त करने वाले अभ्यर्थियों के परिणाम भी समान स्तर पर आ सकें.

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नॉर्मलाइजेशन का नुकसान क्या है?

इसी नॉर्मेलाइजेशन व्यवस्था का अभ्यर्थी विरोध कर रहे हैं. उनका कहना है कि आयोग की परीक्षाओं में कई बार सवाल ही गलत पूछ लिए जाते हैं. अगर किसी एक पाली की तुलना में दूसरी पाली की परीक्षा में ज्यादा सवाल गलत हुए तो उनको कैसे पता चलेगा कि कितना अंक मिला. इसके अलावा परसेंटाइल निकालने का फॉर्मूला किसी एक पाली में परीक्षा में शामिल हुए छात्रों की संख्या के आधार पर निर्भर है. अगर किसी पाली में कम अभ्यर्थी शामिल हुए और उनके अंक भी कम आए तो स्वत: उस पाली की परीक्षा के प्रश्न पत्र को कठिन मान लिया जाएगा और उनके अंक बढ़ा दिए जाएंगे.

ऐसे ही किसी पाली में अधिक अभ्यर्थी आए और प्रश्न पत्र कठिन होने के बावजूद अच्छे अंक आए तो भी उनको कोई लाभ नहीं मिलेगा. उनका एक तर्क यह भी है कि हो सकता है कि किसी पाली का प्रश्न पत्र कठिन हो पर उसमें शामिल किसी अभ्यर्थी को जवाब आते हैं, तो उसे अंक मिलेंगे ही. यही वजह है कि यूपी और बिहार में अभ्यर्थी नॉर्मलाइजेशन का सख्त विरोध कर रहे हैं. इसे लेकर पटना में अभ्यर्थी आंदोलनरत हैं.

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