NEET की लड़ाई इतनी बड़ी क्यों है? सीम‍ित सीटें, करोड़ों में फीस... डॉक्टरी की पढ़ाई में छि‍पा है जवाब

नीट परीक्षा में धांधली को लेकर दिन पे दिन सीबीआई की तरफ से खुलासे हो रहे हैं. ऐसे में जिन छात्रों ने नीट की परीक्षा दी है या जो डॉकटर बनने का सपना देख रहे हैं उनको अपना भविष्य अंधकार में नजर आ रहा है. जिन छात्रों के पास करोड़ों रुपये नहीं है उनके पास नीट ही एक मात्र रास्ता था अपने डॉक्टर बनने के सपने को पूरा करने का. आइए जानते हैं देश में एमबीबीएस की पढ़ाई करना कितना मुश्किल है.

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पल्लवी पाठक

  • नई दिल्ली,
  • 28 जून 2024,
  • अपडेटेड 12:08 PM IST

NEET मुद्दे पर आजकल आप जो सड़कों पर उतरे छात्र देख रहे हैं, कोर्ट में अर्ज‍ियां लगाते वकील, नेताओं के बयान सुन रहे हैं. कभी आपने सोचा कि ये मुद्दा आख‍िर इतना बड़ा क्यों है. इतने मेडिकल कॉलेज है, बच्चे कहीं भी एड‍म‍िशन ले सकते हैं फिर रैंक को लेकर इतना बवाल क्यों मचा है. इसे समझने के लिए आपको भारत में मेड‍िकल की पढ़ाई का खर्च, संरचना, कॉलेजों की संख्या और छात्रों की भारी संख्या का पूरा गण‍ित समझना होगा. यहां हम आपको विशेषज्ञ के न‍जर‍िये और आंकड़ों के जरिये आपको समझाने की कोश‍िश कर रहे हैं. 

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भारत में डॉक्टर बनने के लिए किसी मेड‍िकल कॉलेज में दाख‍िला पाना किसी टेढ़ी खीर से कम नहीं. इसके लिए या तो आप सुपर इंटेल‍िजेंट हों या फिर आपके पास पांच साल की फीस वगैरह भरने के लिए करोड़ों रुपये हों. वजह हमारे देश में सरकार मेडिकल कॉलेजों में जितनी सीटें हैं उससे 10 गुना ज्यादा उनके दावेदार कैंडिडेट्स हैं. आप इस साल का ही डेटा लें, जब तकरीबन 23 लाख से ज्यादा कैंडिडेट्स ने नीट की परीक्षा दी है और देश में कुल 706 मेडिकल कॉलेज हैं, इनमें 10 लाख 9 हजार 172 सीटें हैं. इन 706 कॉलेजों में सरकारी कॉलेज सिर्फ 386 हैं बाकी 320 प्राइवेट कॉलेज हैं, 7 सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैं और 51 डीम्ड यूनिवर्सिटी हैं.

अगर आप भारत में किसी प्राइवेट यूनिवर्सिटी में मेडिकल की पढ़ाई करने जाएं तो शायद आप दरवाजे से ही लौट आएं क्योंकि यहां का महंगा फीस स्ट्रक्चर आपके होश उड़ा देगा. इसलिए कई छात्र सरकारी मेडिकल कॉलेज में पढ़ाई करने की इच्छा रखते हैं. एम्स रायपुर सरकारी मेडिकल कॉलेज के फीस स्ट्रक्चर पर नजर डालें तो यहां एक सेमेस्टर की फीस मेरिट से पास हुए छात्रों के लिए मात्र 5 हजार 856 रुपये हैं. वहीं, प्राइवेट कॉलेज या डीम्ड यूनिवर्सिटी में यह लाखों में पहुंच जाती है. इसी तरह देश में जितने भी एम्स हैं, उनकी फीस 5 हजार के आसपास ही है. बता दें कि ऐम्स देश के नंबर वन मेडिकल कॉलेज में गिना जाता है. अधिकतर नीट के छात्र इसी मेडिकल कॉलेज की सीट के लिए फाइट करते हैं.

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  Deemed University Private Medical College Central University Government College
Campus 51 320 7 386
Seats 10250 53265 1180 55,905
Fees (5 Years) 1.22 करोड़ 60 लाख से एक करोड़ 3.65 लाख 3.50 लाख

देश के किस मेडिकल कॉलेजों में कितनी सीटें

देश में 7 सेंट्रल यूनिवर्सिटी हैं, जिनमें सिर्फ 1 हजार 180 सीटें हैं. इन सभी में पूरे 5 साल की मेडिकल पढ़ाई का खर्चा देखा जाए तो वह करीबन 3 लाख 64 हजार आता है. वहीं, भारत में फिलहाल 264 प्राइवेट कॉलेज हैं, जिनमें 42 हजार 515 सीटे हैं. यहां की कुल फीस 78 लाख के आसपास जाती है. वहीं, पब्लिक मेडिकल कॉलेज यानी की सरकारी कॉलेज की बात करें तो देश में कुल 386 सरकारी कॉलेज हैं, जिनमें 55 हजार 905 सीटे हैं और यहां पर मेडिकल की पढ़ाई हर सेमेस्टर औसत 70 हजार से एक लाख रुपये है.

करोड़ों में होती प्राइवेट कॉलेज की पढ़ाई

प्राइवेट कॉलेज की बात करें तो उदाहरण के लिए उदयपुर के अमेरिकन इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल को ले लीजिए. यहां की एक साल की फीस 14 लाख के करीब है, तो सोचिए कि 5 साल की फीस कितनी हुई. हॉस्टल फीस को भी मिला लिया जाए को 2 लाख रुपये और जोड़ लीजिए. वहीं, पुणे के डी वाई पाटिल मेडिकल कॉलेज का फीस स्ट्रकचर देखा जाए तो यहां की ट्यूशन फीस 25 लाख है, यूनिवर्सिटी एलिजिबिलिटी फीस 2 लाख है, हॉस्टल फीस 3 लाख और मनी डिपोसिट 50 हजार है. चौंकाने वाली यह है कि यह फीस सिर्फ एक साल की है और मेडिकल की पढ़ाई 5 साल में पूरी होती है. अगर पूरे कोर्स का एस्टीमेट लगाया जाए तो लगभग एक करोड़ 60 लाख का खर्चा निकलकर आ रहा है. आप समझ गए होगे की सेंट्रल, पब्लिक, डीम्ड यूनिवर्सिटी के मुकाबले प्राइवेट कॉलेज की फीस में जमीन आसमान का अंतर है.

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जहां एडमिशन लेने की इच्छा वहां राह आसान नहीं

मेडिकल के क्षेत्र में कॉलेजों की महंगी फीस से बचने के लिए छात्र सरकारी कॉलेज या सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एडमिशन लेने की इच्छा रखते हैं, लेकिन इनमें एडमिशन मिलना आसान काम नहीं है. इसके लिए नीट जैसे टफ एग्जाम में आपको टॉप रैंक लानी होगी, इसके अलावा कॉलेज की हाई कटऑफ भी छात्रों को परेशान करती है. सालों की मेहनत, दिन रात एक करके पढ़ाई करने के बाद भी कई कैंडिडेट्स को अपना मनचाहा कॉलेज नहीं मिल पाता है. अगर आपकी रैंक कम आई है और आप एक मिडिल क्लास या गरीब परिवार से हैं तो डॉक्टर बनने का सपना भूल जाइए लेकिन फिर भी लोग डॉक्टर बनने का सपना लेकर मेडिकल लोन तक लेते हैं.

हर साल सीटों से ज्यादा बच्चे हो जाते हैं पास

इस साल 13 लाख 16 हजार 268 कैंडिडेट्स नीट यूजी में पास हुए हैं और सीट 10 लाख 9 हजार 170 सीटें हैं. ऐसे ही कुछ आंकड़े पिछले कुछ सालों के भी रहे हैं. यानी सीटें कम हैं और परीक्षा में पास होने वाले कैंडिडेट्स की संख्या भी काफी ज्यादा है. इनमें से टॉप कैंडिडेट्स को सीटें मिल जाती हैं. बाकी के स्टूडेंट्स या तो किसी प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन लेते हैं या फिर विदेशी यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए चले जाते हैं. क्योंकि वहां एडमिशन के लिए नीट देने की जरूरत नहीं है और महंगी फीस से भी बचा जा सकता है. अगर किसी स्टूडेंट के 720 में से 500 अंक आए हैं तो वह किसी प्राइवेट कॉलेज में एडमिशन ले सकता है, लेकिन इसके लिए सिर्फ मार्क्स ही नहीं पैसों की जरूरत भी होती है. ऐसे में किसी और कैंडिडेट के भले ही 500 से भी कम नंबर आए हैं लेकिन अगर उसके पास पैसा है तो वह प्राइवेट में एडमिशन ले सकता है.

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अब जो छात्र ना तो सरकारी या सेंट्रल यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए मेरिट में आ पाते हैं और ना ही वह प्राइवेट कॉलेज में करोड़ों की फीस जमा कर सकते हैं, उनके पास ऑप्शन बचता है विदेश की यूनिवर्सिटी से मेडिकल की पढ़ाई करने का. विदेश से पढ़ने वाले छात्रों को भारत में मेडिकल फील्ड में काम या ट्रेनिंग करने के लिए FMCE परीक्षा पास करनी होती है. साल 2023 में 63 हजार 250 कैंडिडेट्स ने यह एग्जाम दिया था. लेकिन इस एग्जाम में भी कुछ ही परसेंट स्टूडेंट्स पास हो पाते हैं. हर साल इस एग्जाम में बस 20 प्रतिशत बच्चे ही पास हो पाते हैं.

(इस खबर में दिया गया डेटा एजुकेशनिस्ट और न्यूज वेबसाइट Careers360 के फाउंडर-अध्यक्ष महेश्वर पेरी के एक वीडियो के आधार दिया गया है.)

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