मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल में 20 जुलाई को जहां एक तरफ लाल परेड ग्राउंड में मेधावी छात्र-छात्राओं को लैपटॉप के लिए 25-25 हज़ार की राशि के चेक दिए जा रहे थे. वहीं, दूसरी तरफ भोपाल के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 83 हजार 326 छात्र-छात्राएं सरकार की तरफ से 600 रुपये लागत में बनने वाली दो जोड़ी यूनिफार्म की जगह रंग बिरंगे कपड़े पहनकर या पुरानी यूनिफार्म पहनकर स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे.
दरअसल भोपाल में 20 जुलाई गुरुवार को लाल परेड ग्राउंड में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार ने मेधावी छात्रों को लेपटाप राशि वितरण योजना के तहत आयोजित कार्यक्रम में 12वीं की परीक्षा में 75% या उससे अधिक अंक लाने वाले विद्यार्थियों को लैपटॉप खरीदने के लिए 25-25 हज़ार की राशि उनके खातों में ट्रांसफर की. इस वर्ष प्रदेश के शासकीय एवं अशासकीय विद्यालयों के 78 हजार 641 विद्यार्थी लाभान्वित हुए हैं. लैपटॉप वितरण में प्रति विद्यार्थी के नाम से 196 करोड़ 60 लाख रुपये से अधिक की राशि ट्रांसफर की गई है.
जिस दौरान सीएम और स्कूल शिक्षा मंत्री इंदर सिंह परमार मेधावी छात्रों के अकाउंट में लेपटाप के पैसे के चेक बांट रहे थे. सीएम मेधावी छात्रों पर पुष्प वर्षा कर रहे थे, उसी दौरान भोपाल जिले के 851 सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले पहली से आठवीं तक के 83 हज़ार 326 बच्चों में से ज़्यादातर या तो पुरानी यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल में पढ़ रहे थे या फिर अपनी रंग बिरंगी ड्रेस पहन कर पढ़ रहे थे क्योंकि उनको पिछले 2 साल से सरकार द्वारा मिलने वाली स्कूल यूनिफार्म नहीं दी गई है. इसकी वजह से या तो वे पुरानी यूनिफॉर्म पहन कर आ रहे हैं या फिर बिना यूनिफार्म के स्कूल आने को मजबूर हैं.
दरअसल, अभी भी प्रदेश में बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल नही जाते हैं. वो शिक्षा से वंचित हो रहे हैं. ऐसे बच्चों को स्कूल से जोड़कर शिक्षा देने के उद्देश्य से स्कूल शिक्षा विभाग द्वारा प्रदेश के सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक के छात्र-छात्राओं को हर वर्ष निशुल्क दो जोड़ी गणवेश (यूनिफॉर्म) दिए जाते हैं. इन छात्रों को हर वर्ष 600 रुपये की राशि दी जाती है जिससे यह दो जोड़ी गणवेश खरीदते हैं. हर साल 15 अगस्त से पहले यह प्रक्रिया पूर्ण कर ली जाती है.
कोरोना काल से पहले छात्रों को नकद राशि दी जाती थी लेकिन उसके बाद से अब स्वयं सहायता समूह से तैयार करवाकर दी जाती है. पिछले दो साल से छात्रों को अपनी यूनिफॉर्म का इंतजार है. इसी वजह से वो या तो अपनी पुरानी यूनिफॉर्म पहन कर आ रहे हैं या फिर बिना यूनिफॉर्म के स्कूल आ रहे हैं. अगर यही हालात रहे तो इस बार भी पिछली बार की तरह 15 अगस्त का महत्वपूर्ण दिन छात्र-छात्राओं को पुरानी यूनिफार्म या यूनिफार्म के बिना रंग बिरंगे कपड़े पहन कर मनानी पड़ेगी.
15 अगस्त बच्चों के लिए एक अलग ही महत्व वाला पर्व होता है. इस दिन वो नई यूनिफॉर्म पहनकर स्कूल जाते हैं लेकिन सरकार की बदनीयती की वजह से बच्चों को उनका यूनिफार्म नहीं मिल पाया है और पिछली बार की तरह ही वो बिना यूनिफार्म के या फिर पुराना यूनिफॉर्म पहनकर 15 अगस्त मनाएंगे.
गौरतलब है कि सरकारी स्कूलों में ज़्यादातर गरीबो के बच्चे ही पढ़ते है. मुख्यमंत्री कई बार कह चुके हैं कि वो सरकारी स्कूलों को प्राइवेट स्कूलों से बेहतर बनाने में जुटे हुए हैं. ऐसे में कैसे सीएम की मंशा पूरी होगी जब बच्चों को यूनिफॉर्म तक नही मिल पा रही है. डीपीसी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार भोपाल के सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 83 हज़ार 326 बच्चों में से कक्षा पांचवी और आठवी तथा सीएम राइज़ स्कूल के बच्चों को छोड़कर शेष बचे 63344 बच्चों में से अभी तक 26892 बच्चों को यूनिफॉर्म बांटा जा चुका हैं. यानी कि अभी भी 36 हज़ार 452 बच्चों को यूनिफार्म मिलना बाकी है.
वहीं पिछले साल की 63,344 बच्चों की यूनिफॉर्म का क्या हुआ यह किसी को नहीं मालूम. ऐसे में वो सभी बच्चे जिन्हें यूनिफार्म नहीं मिली है वो तरसी निगाहों से अपने पड़ोस में यूनिफार्म पहनकर बैठे बच्चों को निहारते रहते हैं. वे उम्मीद लगाए बैठे है कि जल्द ही उन्हें भी उनकी यूनिफॉर्म मिल जाएगी.
कितना होता है खर्च
जिले में हर साल सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले कक्षा पहली से लेकर चौथी और कक्षा छठी से लेकर सातवी के बच्चों को यूनिफार्म बांटने पर सरकार का 3 करोड़ 80 लाख रुपये खर्च होता है. हर साल इन बच्चों में से प्रत्येक को 600 रुपये की लागत से बनने वाली दो जोड़ी यूनिफार्म दी जाती है. मध्य प्रदेश ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत रजिस्टर्ड स्वयं सहायता समूह द्वारा यूनिफार्म को तैयार करके संबंधित स्कूलों के बच्चों को वितरित किया जाता है.
देखें आंकड़े
भोपाल में सरकारी स्कूलों की संख्या-851
पहली से पांचवी तक-456
पहली से आठवीं तक-239
पहली से बारहवीं तक-46
छठी से आठवीं तक-27
छठी से बारहवीं तक-10
पहली से दसवीं तक-34
नौवीं से बारहवीं तक-14
छठी से दसवीं तक-8
नौवीं से दसवीं तक-17
कितनी है छात्रों की संख्या
पहली से चौथी तक-40793
छटी से सातवी तक-21722
पांचवी और आठवी-18339
सीएम राइज़ स्कूल में(कक्षा 1 से 8)-2472
कुल बच्चे-83326
इनमें से कक्षा 5 और 8 वाले बच्चों को यूनिफार्म खरीदने के लिए नकद राशि दी जाती हैं जिनकी संख्या 18339 है. वहीं, सीएम राइज़ स्कूल के बच्चों को भी अलग से यूनिफार्म मिलती है जिनकी संख्या 2472 है. इन दोनों की संख्या कुल बच्चों की संख्या से घटाने पर 63 हज़ार 344 बच्चों को जिला शिक्षा केन्द्र के माध्यम से यूनिफार्म वितरित की जाती है. गणवेश पाने वाले बच्चों में छात्राओं की संख्या लगभग दो हजार ज्यादा है. जिनमें 30819 छात्र और 32515 छात्राएं शामिल हैं.
हमारे स्कूल में बच्चों को नहीं मिली यूनिफॉर्म
सुभाष सक्सेना,हेड मास्टर,शासकीय सूरज नगर मिडिल स्कूल भोपाल व प्रांत अध्यक्ष मप्र शिक्षक कांग्रेस का कहना है कि सरकार के द्वारा जो सरकारी स्कूल में पढ़ने वाले पहली से आठवीं कक्षा के बच्चों को विगत दो वर्षों से यूनिफॉर्म नहीं दिया गया है. बिना गणवेश के क्लासेज में बच्चे अच्छे नहीं लगते हैं. उन्हें गणवेश देना चाहिए जबकि इस बारे में ज्ञात हुआ है कि शासन द्वारा इसके लिए बहुत दिन पहले आरएसके(राज्य शिक्षा केंद्र) को बजट आवंटित किया जा चुका है. लेकिन आरएसके द्वारा अभी तक बच्चों को यूनिफॉर्म नहीं पहुंचाई गई है. मैं खुद सूरज नगर के शासकीय स्कूल में प्रधानाध्यापक हूं. मेरे स्कूल में भी विगत 2 वर्षों से यूनिफॉर्म प्राप्त नहीं हुई है. इसके कारण बच्चों को काफी असुविधा हो रही है. मेरे स्कूल में 200 बच्चे हैं. हम इसको लेकर जिला अधिकारियों और शासन से मांग कर चुके हैं. हमारे यहां ही नहीं पूरे भोपाल में स्कूलों में यूनिफॉर्म नहीं आई है. पूरे भोपाल में लगभग 80000 बच्चे हैं.
क्या कहते हैं जिम्मेदार?
आरके यादव, डीपीसी भोपाल का कहना है कि इस साल 63 हज़ार 344 बच्चों को यूनिफॉर्म पहुंचाने का लक्ष्य था. इसके अलावा शेष (5वीं और 8वीं कक्षा के बच्चे) के खातों में पैसा जाता है. इसमें से 26892 को यह यूनिफॉर्म बांटा जा चुका है. अभी तक कि यह प्रोग्रेस है. जब उनसे पूछा गया कि जो बाकी बच्चे रह गए हैं उनका क्या होगा ? इस पर उन्होंने कहा कि बाकी की कार्यवाही चल रही है. कुछ समस्या समूह की तरफ से आ रही है. उनका तर्क है कि उन्हें नाप ढंग से नहीं दिया गया. ये जो समस्या आ रही है, इसी के कारण यूनिफॉर्म नहीं मिली. जैसे ही समूह वाले यूनिफॉर्म बदलकर देंगे शेष बच्चों को मिल जाएगा.
जब उनसे पिछले साल बंटने वाली यूनिफार्म नहीं बंटने का सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि पिछले साल का क्या मामला रहा मुझे नहीं मालूम क्योंकि मुझे अभी यहां आए हुए एक महीना हुआ है. पिछले साल की जानकारी मुझे नहीं है. जब उनसे सरकारी स्कूल में पड़ने वाले बच्चों को मिलने वाली यूनिफार्म में उनकी क्या भूमिका रहती है? सवाल किया गया तो उन्होंने कहा कि हम जिला पंचायत और नगर निगम को हितग्राही बच्चों का डाटा उपलब्ध कराते हैं. इसमें जिन बच्चों को गणवेश मिलना होता है उनका नाप क्या होगा, डिज़ाइन क्या होगा. ये सब डेटा हम आजीविका मिशन के पोर्टल पर अपलोड करवाकर जानकारी वहां पर देते हैं. बाकी का प्रोसेस जिला पंचायत और नगर निगम के माध्यम से होता है. स्वयं सहायता समूह वाले यूनिफॉर्म सिलते हैं और डिस्ट्रीब्यूशन का काम भी वही करते हैं.
चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए...
दावा किया किया जा रहा है कि प्रदेश के सरकारी स्कूलों को प्राइवेट से बेहतर बनाएंगे लेकिन हकीकत यह है कि इनमे पढ़ने वाले बच्चों को 2 साल से यूनिफॉर्म ही नहीं दे पाए हैं. दूरदराज के जिले तो छोड़िए राजधानी भोपाल में ही हजारों बच्चे यूनिफॉर्म से महरूम हैं. आरोप-प्रत्यारोप का दौर लगातार जारी है और जिम्मेदारों द्वारा अपनी जिम्मेदारियों से बचा जा रहा है. ऐसे में दुष्यंत कुमार की वो पंक्तियां याद आती है जिसमें उन्होंने कहा था कि कहां तो तय था चरागां हरेक घर के लिए, कहां चराग मयस्सर नहीं शहर के लिए....
इज़हार हसन खान