बेरोज़गारी 50% घटी, 17 करोड़ नई नौकरियां! ऐसे बदल रहा है भारत का लेबर मार्केट

भारत में 2017-18 से 2023-24 तक अलग-अलग क्षेत्रों में लगभग 17 करोड़ नए रोजगार उत्पन्न हुए हैं. बेरोजगारी दर भी 6 प्रतिशत से घटकर 3.2 प्रतिशत हो गई. एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड से कईं लोग जुड़े. सरकारी डेटा के मुताबिक अभी तक 31 करोड़ से ज्यादा गिग वर्कर्स ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर कर चुके हैं.

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सेल्फ एंप्लॉयमेंट छह सालों में 52.2 प्रतिशत से 58.4 प्रतिशत हो गया है. सरकार महिलाओं पर केंद्रित योजनाएं लांच कर रही है. (फोटो-AI Generated) सेल्फ एंप्लॉयमेंट छह सालों में 52.2 प्रतिशत से 58.4 प्रतिशत हो गया है. सरकार महिलाओं पर केंद्रित योजनाएं लांच कर रही है. (फोटो-AI Generated)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 13 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 11:49 AM IST

भारत में छह सालों में लगभग 17 करोड़ नए रोजगार उत्पन्न हुए हैं. श्रम एवं रोजगार मंत्रालय (मिनिस्ट्री ऑफ लेबर एंड एंप्लॉयमेंट) के नए डेटा के मुताबिक देश में कुल रोजगार 2017-18 में 47.5 करोड़ से बढ़कर 2023-24 में 64.33 करोड़ हो गया. अलग-अलग क्षेत्रों में 16.83 करोड़ नए रोजगार जुड़े हैं.

इसके अलावा बेरोजगारी दर में लगभग 50 प्रतिशत की गिरावट आई है. यह 2017-18 में 6 प्रतिशत से घटकर 2023-24 में 3.2 प्रतिशत हो गई. वर्कफोर्स में महिलाओं की संख्या भी काफी बढ़ी है.

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क्या कहते हैं एंप्लॉयमेंट इंडिकेटर्स

देश में प्रमुख रोजगार संकेतक (Employment Indicators) लगातार बेहतर हो रहे हैं. लेबर फोर्स पार्टिसिपेशन रेट (LFPR) और वर्कर-पॉपुलेशन रेश्यो (WPR) में ग्रामीण और शहरी, दोनों क्षेत्रों में वृद्धि दर्ज की गई है.

2017-18 और 2023-24 के बीच, 15 साल और उससे ज्यादा उम्र वालों के लिए LFPR 49.8 प्रतिशत से बढ़कर 60.1 प्रतिशत हो गया, जबकि WPR 46.8 प्रतिशत से बढ़कर 58.2 प्रतिशत हो गया, मतलब ज्यादा से ज्यादा लोग वर्कफोर्स में शामिल हो रहे हैं.

पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे (PLFS) के जून से अगस्त 2025 तक के मासिक डेटा के अनुसार LFPR जून में 54.2 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त में 55 प्रतिशत हो गया. इस दौरान WPR भी 51.2 प्रतिशत से बढ़कर 52.2 प्रतिशत हो गया.

महिलाओं की भागीदारी

महिलाएं भी रोजगार वृद्धि में सहयोग कर रही हैं. आधिकारिक डेटा में उनका LFPR 2017-18 में 23.3 प्रतिशत से बढ़कर 2023-24 में 41.7 प्रतिशत होने की बात सामने आई. इस दौरान महिला WPR 22 प्रतिशत से बढ़कर 40.3 प्रतिशत हो गया.

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PLFS के आंकड़े 2025 में भी सुधार को दर्शाते हैं. इस साल महिला WPR जून में 30.2 प्रतिशत से बढ़कर अगस्त 2025 में 32 प्रतिशत तक पहुंच गया और इसी अवधि में महिला LFPR 32 प्रतिशत से बढ़कर 33.7 प्रतिशत हुई.

2024-25 के दौरान, एंप्लॉयी प्रोविडेंट फंड ऑर्गेनाइजेशन (EPFO) में 26.9 लाख महिलाएं जुड़ी, इसमें से लगभग 2.80 लाख केवल जुलाई 2025 में शामिल हुईं. कुल वेतन में भी लगभग 4.42 लाख रुपए की बढ़ोतरी हुई.

प्रोविडेंट फंड की बढ़ती लोकप्रियता

रोजगार अब तेजी से औपचारिक होने लगे हैं. सितंबर 2017 में पेरोल ट्रैकिंग की शुरुआत के बाद से, 7.73 करोड़ से ज़्यादा लोगों ने ईपीएफओ ज्वाइन किया है. कुल सब्सक्राइबर 2018-19 में 61.12 लाख से बढ़कर 2024-25 में 1.29 करोड़ से ज्यादा हो चुके हैं. केवल जुलाई 2025 में, 9.79 लाख नए समेत कुल 21.04 लाख सब्सक्राइबर जुड़े. इनमें 60 प्रतिशत की उम्र 18 से 25 साल के बीच थी.

इसी अवधि में मजदूरी (wages) भी बढ़ीं. पब्लिक वर्क्स को छोड़कर आकस्मिक मजदूरों (casual labourers) की औसत दैनिक मजदूरी जुलाई-सितंबर 2017 में 294 रुपये से बढ़कर अप्रैल-जून 2024 में 433 रुपये हो गई. इस अवधि में नियमित वेतन वाले कर्मचारियों की औसत मासिक आय 16,538 रुपये से बढ़कर 21,103 रुपये हुई.

कम होती बेरोजगारी दर

भारत में बेरोजगारी दर लगातार घट रही है. यह 2017-18 में 6 प्रतिशत थी, जो 2023-24 में 3.2 प्रतिशत रह गई. इस दौरान युवा बेरोजगारी भी सात प्रतिशत की गिरावट के साथ 17.8 प्रतिशत से 10.2 प्रतिशत हो गई. जबकि साल 2024 के इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइजेशन (ILO) के आंकड़ों के मुताबिक वैश्विक औसत बेरोजगारी दर 13.3 प्रतिशत है.

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अप्रैल 2025 के मुकाबले अगस्त में, 15 साल से ज्यादा उम्र के पुरुषों में बेरोजगारी दर और भी कम हुई है. शहरों में पुरुष बेरोजगारी जुलाई 2025 में 6.6 प्रतिशत से घटकर अगस्त में 5.9 प्रतिशत पर दर्ज हुई, जबकि इस दौरान ग्रामीण पुरुषों के बेरोजगारी दर में कम गिरावट आई. हालांकि कुल ग्रामीण बेरोजगारी तीन महीनों से लगातार कम हो रही है. यह मई में 5.1प्रतिशत थी और अगस्त में 4.3 प्रतिशत हो गई.

रोजगार का बदलता स्वरूप और क्षेत्रीय बदलाव

सेल्फ एंप्लॉयमेंट में इन छह सालों में वृद्धि दर्ज की गयी है. यह 2017-18 में 52.2 प्रतिशत से 2023-24 में 58.4 प्रतिशत हो गया है. हालांकि कैजुअल लेबर 24.9 प्रतिशत से घटकर 19.8 प्रतिशत रह गया. यह एंटरप्रेन्योरशिप और आत्मनिर्भरता के ट्रेंड को दर्शाता है.

अप्रैल-जून 2025 के क्षेत्र-आधारित आंकड़े बताते हैं कि गांव में आज भी 44.6 प्रतिशत पुरुष और 70.9 प्रतिशत महिलाएं एग्रीकल्चर सेक्टर में ही कार्यरत हैं. वहीं शहरी क्षेत्रों में टर्शियरी सेक्टर सबसे ज्यादा नौकरियां दिलाता है. इसमें 60.6 प्रतिशत पुरुष और 64.9 प्रतिशत महिलाएं काम करती हैं.

इस अवधि में 15 साल या उससे ज्यादा उम्र के (39.7 करोड़ पुरुष और 16.7 करोड़ महिलाओं समेत) कुल 56.4 करोड़ लोग काम कर रहे थे.

महिलाओं के लिए खास योजनाएं

महिलाओं के लिए केंद्र सरकार नमो ड्रोन दीदी, लखपति दीदी और मिशन शक्ति जैसी योजनाएं शुरू की हैं. ग्रामीण महिलाओं को एग्रीकल्चर, इंश्योरेंस, फाइनेंस और पशु प्रबंधन जैसे क्षेत्रों में सशक्त बनाने के लिए कृषि सखी, बीमा सखी, बैंक सखी और पशु सखी जैसी स्कीमों के तहत रोजगार दिए गए.

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महिला एंटरप्रेन्योर्स का साथ देने के लिए सरकार ने आसानी से लोन दिलाने, मार्केट का समर्थन देने और उनके लिए स्किल डेवलपमेंट और मार्गदर्शन देने की कई योजनाएं शुरू की हैं. इनमें पीएम एंप्लॉयमेंट गारंटी प्रोग्राम, संकल्प (SANKALP), पीएम माइक्रो फूड-प्रोसेसिंग स्कीम, आदिवासी महिला सशक्तिकरण योजना, स्वयं शक्ति सहकार योजना और DAY-NRLM आदि शामिल हैं.

इसके अलावा विमन इन साइंस एंड इंजीनियरिंग (WISE-KIRAN) और SERB-POWER जैसे प्रोग्रामों के जरिए साइंस, रिसर्च, टेक्नोलॉजी और इनोवेशन जैसे क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी पर जोर दिया जा रहा है.

स्टार्टअप्स और जीसीसी की बड़ी भूमिका

स्टार्टअप्स, गिग इकोनॉमी और ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर (जीसीसी) भारत के लेबर मार्केट में उभरते वर्कफोर्स के भविष्य को आकार दे रहे हैं. आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2025 तक 1.9 लाख DPIIT-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स के साथ भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा स्टार्टअप इकोसिस्टम है. इन स्टार्टअप्स ने डिजिटल, वित्तीय और तकनीकी क्षेत्रों में 17 लाख से ज्यादा नौकरियां उत्पन्न की हैं और 118 यूनिकॉर्न तैयार किए हैं.

गिग वर्कफोर्स भी 2024-25 में 1 करोड़ से बढ़कर 2029-30 तक 2.35 करोड़ हो सकता है. गिग वर्कर्स वो लोग हैं जो कॉन्ट्रैक्ट पर काम करते हैं, गिग इकोनॉमी ऐसे लोगों को ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए ग्राहकों या कंपनियों से जोड़ती है. फ्रीलांसर भी इसी कैटेगरी में आते हैं. सरकार ने इनके लिए 2020 में कोड ऑन सोशल सिक्योरिटी और ई-श्रम पोर्टल लांच किए है. 30 सितंबर 2025 तक 31.20 करोड़ से ज्यादा गिग वर्कर्स ई-श्रम पोर्टल पर रजिस्टर कर चुके हैं.

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भारत में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ब्लॉकचेन और साइबर सिक्योरिटी जैसी एडवांस तकनीकों को अपनाने वाले जीसीसी शुरू हो रहे हैं. यहां वर्तमान में 1,700 जीसीसी 20 लाख लोगों को नौकरी दे रहे हैं.

रोजगारों का डिजिटल और सस्टेनेबल विकास

भारतीय रोजगार में तीन प्राथमिकताओं पर ध्यान दिया जा रहा है- डिजिटली कुशल वर्कफोर्स का विकास, मार्केट में सभी की सहभागिता और सिस्टम को सस्टेनेबल बनाना. इसके लिए पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप, टार्गेटेड सरकारी स्कीमें और स्किल डेवलपमेंट में निवेश की योजनाएं चल रही हैं.

रिन्यूएबल एनर्जी, डिजिटल सेवाओं और रिसर्च एंड डेवलपमेंट जैसे क्षेत्रों पर लगातार ध्यान दिया जा रहा है. इससे भारत का वर्कफोर्स रोजगार की घरेलू जरूरतों और वैश्विक ट्रेंड्स, दोनों को पूरा कर पाएगा.

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