हरियाणा के स्कूलों में अपनाई जा रही है ये विदेशी टेक्निक, बच्चों को रखेगी मेंटली फिट

देश में मेंटल हेल्थ एक बड़ी चिंता बन गई है. बड़ों से लेकर स्कूली बच्चे कई मानसिक बीमारियों से झूझ रहे हैं. स्कूल, होमवर्क, ट्यूशन, स्क्रीन टाइम, पेरेंट्स की उम्मीदें और ऊपर से सोशल मीडिया का दबाव. इन सबका असर उनके दिमाग पर पड़ रहा है. जिसका असर उनके स्वभाव पर पड़ रहा है. इससे निपटने के लिए हरियाणा के सरकारी स्कूलों में मेंटल हेल्थ सुधारने के लिए प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं.

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सांकेतिक तस्वीर सांकेतिक तस्वीर

देशराज सिंह चौहान

  • रेवाड़ी,
  • 17 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 6:09 PM IST

स्कूली बच्चों की घटती एकाग्रता और किशोरावस्था में हो रहे मानसिक-शारीरिक बदलावों को ध्यान में रखते हुए हरियाणा के सरकारी स्कूलों अच्छी पहल शुरू की गई है. स्कूलों में बच्चों की मेंटल हेल्थ सुधारने के लिए कई तरह के प्रोग्राम शुरू किए जा रहे हैं. बच्चों को खेल-खेल में मानसिक रूप से स्वस्थ बनाने का प्रयास किया जा रहा है.

दरअसल, देश में मेंटल हेल्थ एक बड़ी चिंता बन गई है. बड़ों से लेकर स्कूली बच्चे कई मानसिक बीमारियों से झूझ रहे हैं. स्कूल, होमवर्क, ट्यूशन, स्क्रीन टाइम, पेरेंट्स की उम्मीदें और ऊपर से सोशल मीडिया का दबाव. इन सबका असर उनके दिमाग पर पड़ रहा है. जिसका असर उनके स्वभाव पर पड़ रहा है. इससे निपटने के लिए हरियाणा के सरकारी स्कूलों में मेंटल हेल्थ सुधारने के लिए प्रोग्राम चलाए जा रहे हैं.

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सेंट्रल यूनिवर्सिटी ऑफ हरियाणा के साइकॉलजी विभाग के छात्रों ने महेंद्रगढ़, नारनोल के कुछ मिडिल और प्राइमरी स्कूल का दौरा किया और बच्चों की मेंटल हेल्थ को लेकर जागरूक अभियान चलाया. यूनिवर्सिटी के छात्र और छात्राओं ने बच्चों के कुछ टेस्ट किए और उन्हें काफी एक्टिविटी कराई. जिसमें डांस, म्यूजिक और कई तरह की आउटडोर एक्टिविटी शामिल थी. 

स्कूली बच्चों ने इस एक्टिविटी में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया. इस मौके पर प्रोफेसर डॉक्टर मनप्रीत ओला ने कहा कि समय रहते बच्चों की मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की जरूरत है. सभी के लिए यह एक बड़ा चैलेंज बन चुका है. इस पर गंभीरता से विचार और काम करने की जरूरत है.

बता दें, ‘एस’ फॉर Social, Emotional and Ethical Learning यानी एक ऐसा तरीका जिसमें बच्चे कहानी, आर्ट, एक्टिंग और गेम्स के जरिए खुद को एक्सप्रेस करना सीखते हैं. इसे इस तरह डिजाइन किया गया है कि बच्चा खेल-खेल में ये समझ सके कि उसके अंदर क्या चल रहा है. उसे गुस्सा क्यों आता है, अकेलापन क्यों लगता है, और उसे कैसे संभाला जाए. इस टेक्निक को स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी और एटलस संस्था ने मिलकर डेवलप किया है और अब इसे भारत के स्कूलों में लाने की तैयारी हो रही है. ये प्रोग्राम पहले मेघालय के 150 स्कूलों में चार महीने तक चलाया गया. करीब 3000 बच्चों ने इसमें हिस्सा लिया और नतीजे चौंकाने वाले थे.

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