'हमारे सपने टूट रहे हैं, किसी दोस्त के दरवाजा खटखटाने की आवाज से हम सब डर जाते हैं.' यह कहना है अमेरिका की प्रतिष्ठित हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने गए भारतीय छात्र प्रत्युष रावल का. प्रत्युष का कहना है, '22 मई की रात को सोमरविले शहर में एक घर में जमा हुए हार्वर्ड के कुछ विदेशी छात्रों के लिए सामान्य चीजें भी डरावनी बन गईं. एक फायर ट्रक के आने या किसी दोस्त के दरवाजा खटखटाने की आवाज से हम सब डर गए. ट्रंप प्रशासन के फैसले के बाद हमारा कानूनी दर्जा खत्म हो गया था. उस रात हम सभी डर और अनिश्चितता में डूबे थे. इस दौरान अगले 24 घंटों तक ये छात्र “आउट-ऑफ-स्टेटस” रहे, यानी वे अमेरिका में कानूनी रूप से रहने की स्थिति खो चुके थे.'
दरअसल, अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाले इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के लिए हाल के कुछ दिन बेहद तनावपूर्ण रहे हैं. राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड की स्टूडेंट एंड एक्सचेंज विजिटर प्रोग्राम (SEVP) की मान्यता अचानक रद्द कर दी, जिसके कारण करीब 6,800 अंतरराष्ट्रीय छात्रों का कानूनी दर्जा खतरे में पड़ गया. इनमें लगभग 800 भारतीय मूल के छात्र भी शामिल हैं. इस फैसले ने न केवल हार्वर्ड बल्कि पूरे अमेरिका में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों के बीच डर और अनिश्चितता का माहौल पैदा कर दिया है.
विदेशी छात्रों के वीजा पर रोक
ट्रंप प्रशासन ने हाल ही में एक नया आदेश जारी किया, जिसमें राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देकर हार्वर्ड में नए इंटरनेशनल स्टूडेंट्स के वीजा पर रोक लगा दी गई. यह कदम विदेशी छात्रों के लिए हार्वर्ड के दरवाजे बंद करने की दिशा में एक और कोशिश मानी जा रही है. हालांकि हार्वर्ड भी ट्रंप प्रशासन के इस फैसले की टक्कर ले रहा है और कानूनी लड़ाई शुरू कर दी है. यूनिवर्सिटी का कहना है कि वह अपने अंतरराष्ट्रीय छात्रों की सुरक्षा के लिए हरसंभव कदम उठाएगा, विदेशी छात्रों के बिना हार्वर्ड हार्वर्ड नहीं रह जाएगा.
छात्रों की चिंताएं और सपनों पर संकट
हार्वर्ड में पढ़ने वाले कई छात्र अब अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं. कुछ छात्र अपनी डिग्री पूरी करने की संभावना पर सवाल उठा रहे हैं, तो कुछ अन्य विश्वविद्यालयों में ट्रांसफर या नौकरी की तलाश में जुट गए हैं. प्रत्युष रावल ने कहा, “हमारे सपने टूट रहे हैं. कई दोस्त जो हार्वर्ड में दाखिला ले चुके थे, अब यहां आने के फैसले को लेकर फिर से विचार कर रहे हैं.”
वित्तीय संकट और अनुसंधान पर असर
ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड से उसकी भर्ती प्रक्रिया में बदलाव और “विचारधारा विविधता” को शामिल करने की मांग की थी, जिसमें रूढ़िवादी विचारधारा को बढ़ावा देना शामिल था. हार्वर्ड के इनकार करने पर सरकार ने 2.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर की संघीय अनुदान राशि को रोक दिया. इसके अलावा, हेल्थ रिसर्च के लिए 1 बिलियन डॉलर की फंडिंग भी खतरे में है. एक शोधकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हम यहां साइंस के लिए आए थे, लेकिन इन आदेशों ने हमारा ध्यान काम से हटा दिया है. यह अनिश्चितता हमारी रिसर्च और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है.”
सोशल मीडिया पर नजर और बढ़ता डर
छात्रों में यह डर भी है कि उनकी सोशल मीडिया गतिविधियों की निगरानी की जा रही है. एक विदेशी छात्र ने गुमनाम रहते हुए बताया, “अब हमारी सोशल मीडिया पोस्ट की जांच हो सकती है, जिसके आधार पर वीजा देने या न देने का फैसला हो सकता है. पहले हार्वर्ड में ऐसी चिंता कभी नहीं थी.”
बोस्टन समुदाय का समर्थन
बोस्टन में बसे भारतीय मूल के लोग और समुदाय के नेता छात्रों की मदद के लिए आगे आए हैं. सैयद अली रिजवी, एक उद्यमी और समुदाय के प्रभावशाली सदस्य, ने कहा, “हमें छात्रों से मदद के लिए संदेश मिल रहे हैं. हम उन्हें कानूनी विशेषज्ञों से जोड़कर सहायता करने की कोशिश कर रहे हैं.”
हार्वर्ड की कानूनी लड़ाई
हार्वर्ड ने सरकार के फैसले को अवैध बताते हुए संघीय अदालत में 2.2 बिलियन डॉलर की रुकी हुई फंडिंग को जारी करने की मांग की है. विश्वविद्यालय का कहना है कि सरकार के ये कदम उसकी स्वतंत्रता को कमजोर करते हैं. दूसरी ओर, ट्रंप प्रशासन ने हार्वर्ड पर यहूदी-विरोधी भावनाओं को बढ़ावा देने या नजरअंदाज करने का आरोप लगाया है और कई सुधारों की मांग की है.
हार्वर्ड और ट्रंप प्रशासन के इस टकराव का असर न केवल हार्वर्ड बल्कि पूरे अमेरिका में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों पर पड़ रहा है. एक पूर्व प्रोफेसर ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “हार्वर्ड और देश को अलग नहीं देखा जा सकता. सरकार का मकसद बड़ी मछली को निशाना बनाकर बाकियों को काबू में करना है.” जैसे-जैसे यह कानूनी और राजनीतिक लड़ाई जारी है, हार्वर्ड के विदेशी छात्र अपने भविष्य को लेकर अनिश्चितता और डर के साए में जी रहे हैं.
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