अंतरिम कुलपतियों की नियुक्ति को लेकर बंगाल के राज्यपाल बनाम बंगाल सरकार में नया मोड़ आ गया है. शिक्षाविद् फोरम, प्रोफेसरों और पूर्व कुलपतियों के एक संगठन ने राज्यपाल द्वारा बिना किसी परामर्श के उनकी नियुक्तियों पर निशाना साधा है. उनका सवाल है कि एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश और एक पूर्व आईपीएस अधिकारी को राज्य संचालित विश्वविद्यालयों का कुलपति क्यों बनाया जा रहा है.
नॉर्थ बंगाल यूनिवर्सिटी के पूर्व वीसी प्रोफेसर ओम प्रकाश मिश्रा ने कहा कि राज्यपाल ने राज्य की विधान सभा द्वारा पारित विधेयक पर हस्ताक्षर करने से इंकार किया है या फिर हस्ताक्षर न करने का फैसला लिया है. यह कदम बंगाल के राज्यपाल, जो राज्य संचालित और सहायता प्राप्त विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति हैं, के कुलपतियों की नियुक्ति के एक दिन बाद आया है. प्रोफेसर मिश्रा ने इंडिया टुडे से कहा कि वो 31 विश्वविद्यालयों के विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन करने वाले अध्यादेश को मंजूरी देते हैं.
सुप्रीम कोर्ट में है मामला
पश्चिम बंगाल राज्य ने तदर्थ तरीके को रोकने के लिए भारत के सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक विशेष अनुमति याचिका दायर की थी, जिसमें कुलाधिपति राज्यपाल की पसंद के विभिन्न व्यक्तियों को सत्ता का उपयोग करने और कुलपति के कर्तव्यों का पालन करने के लिए अधिकृत कर रहे हैं. प्रोफेसर मिश्रा ने कहा कि कुलाधिपति विभिन्न विश्वविद्यालयों में अपनी नियुक्तियों को अधिकृत/हटाने/प्रतिस्थापित करके विश्वविद्यालयों के संबंध में अपने अवैध कार्यों को जारी रखे हुए हैं, जबकि पूरा मामला अब सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष निर्णय और आदेश के लिए लंबित है.
2014 से पहले, खोज-चयन समितियों में 3 सदस्य कुलाधिपति (राज्य के राज्यपाल) का एक नामित व्यक्ति, संबंधित विश्वविद्यालय का एक नामित व्यक्ति और यूजीसी का एक नामित व्यक्ति होते थे. 2014 में पश्चिम बंगाल विधान सभा द्वारा विश्वविद्यालय कानूनों में संशोधन के बाद, कुलपतियों के लिए खोज/चयन की संरचना कुलाधिपति द्वारा नामित, विश्वविद्यालय द्वारा नामित व्यक्ति और राज्य सरकार द्वारा नामित व्यक्ति के आधार पर निर्धारित की गई थी.
दूसरे राज्यों से नियुक्ति क्यों?
मंच ने अपने बयान में कहा कि 2022 में पश्चिम बंगाल विधान सभा ने राज्य के मुख्यमंत्री को विश्वविद्यालयों का कुलाधिपति बनाते हुए विभिन्न विश्वविद्यालयों के अधिनियमों में संशोधन पारित किया था. विधेयक एक वर्ष से अधिक समय पहले पारित हो चुका है लेकिन राज्यपाल ने न तो विधेयक पर हस्ताक्षर किए हैं और न ही इसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 200 में दिए गए प्रावधान के अनुसार जल्द से जल्द लौटाया है.
प्रोफेसर मिश्रा ने इंडिया टुडे से कहा कि हम यह भी सवाल करते हैं कि वो अपनी सनक और इच्छा के अनुसार लोगों को कैसे नियुक्त कर रहे हैं. सवाल ये भी है कि वो दूसरे राज्यों के सेवानिवृत्त न्यायाधीशों और आईपीएस अधिकारियों को विश्वविद्यालयों में कुलपति के रूप में क्यों नियुक्त कर रहे हैं.
सूर्याग्नि रॉय