देश में कोरोना की दूसरी लहर से लोग परेशान हैं. बड़ी संख्या में लोग ऑक्सीजन की किल्लत से जूझ रहे हैं. इस किल्लत से बचने के लिए रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) ने अगले तीन महीने में 500 ऑक्सीजन प्लांट्स बनाने का फैसला किया है. क्या आप जानते हें कि DRDO क्या है और क्यों ये संस्थान ऑक्सीजन प्लांट्स बना रहे हैं. क्या है इनकी जिम्मेदारी...
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय में रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के अधीन एक एजेंसी है. सेना के अनुसंधान और विकास का मुख्यालय दिल्ली, भारत में है. इसका गठन 1958 में तकनीकी विकास प्रतिष्ठान के विलय और रक्षा विज्ञान संगठन के साथ भारतीय आयुध कारखानों के तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय द्वारा किया गया था.
डीआरडीओ अपनी 52 प्रयोगशालाओं के एक नेटवर्क के साथ विभिन्न क्षेत्रों को कवर करने वाली रक्षा प्रौद्योगिकियों को विकसित करने का काम कर रहा है. डीआरडीओ एयरोनॉटिक्स, आर्मामेंट्स, इलेक्ट्रॉनिक्स, जीवन विज्ञान, मिसाइल और नौसेना प्रणाली पर काम कर रहा है. डीआरडीओ भारत का सबसे बड़ा और सबसे विविध अनुसंधान संगठन है. संगठन में रक्षा अनुसंधान एवं विकास सेवा (DRDO) से जुड़े लगभग 5,000 वैज्ञानिक और लगभग 25,000 अन्य वैज्ञानिक, तकनीकी और सहायक कर्मी शामिल हैं.
रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) 1958 में तकनीकी विकास प्रतिष्ठान और रक्षा विज्ञान संगठन के साथ तकनीकी विकास और उत्पादन निदेशालय के विलय से अस्तित्व में आया. डीआरडीएस का गठन 1979 में किया गया था, और 1980 में रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग का एक अलग विभाग बनाया गया था, जिसने बाद में डीआरडीओ और इसके 52 प्रयोगशालाओं / प्रतिष्ठानों का संचालन किया. DRDS के वरिष्ठ वैज्ञानिक को DRDO के महानिदेशक, रक्षा मंत्री (भारत के रक्षा मंत्री) और रक्षा अनुसंधान और विकास विभाग के पदेन सचिव के रूप में नियुक्त किया गया.
बता दें कि कोरोना के इन हालातों में DRDO ने भारत के पहले हल्के लड़ाकू विमान तेजस (Fighter Jet Tejas) में उड़ते हुए ऑक्सीजन बनाने की तकनीक से ऑक्सीजन उपलब्ध कराने का इंतजाम किया है. इस तकनीक से जैसे तेजस में उड़ते हुए विमान में ही ऑक्सीजन बना ली जाती है, अब ऑक्सीजन बनाने की वही तकनीक सबको उपलब्ध कराई जा रही है.
देश में जिस तरह ऑक्सीजन की कमी हो रही है, इसी को देखते हुए डीआरडीओ ने एक और उपाय उपलब्ध कराया है. DRDO ने ऊंचाई पर तैनात सैनिकों को सांस लेने में सहूलियत देने के लिए एक खास ऑक्सीजन डिलीवरी सिस्टम बनाया है. इसे भी कोरोना मरीजों के लिए उपलब्ध कराया जाएगा.
ऑक्सीजन के इस सिस्टम को DRDO के डिफेंस बायो-इंजीनियरिंग एंड इलेक्ट्रो मेडिकल लेबोरेटरी (DEBEL) बेंगलुरु ने बनाया है. यह SpO2 (ब्लड ऑक्सीजन सेचुरेशन) लेवल को बनाए रखता है. यही नहीं ये ऑक्सीजन न मिलने से उत्पन्न हुई हाइकॉक्सिया की स्थिति से बचा लेता है.
DRDO ने अब 500 मेडिकल ऑक्सीजन प्लांट्स (MOP) की तकनीक विकसित की है. इसी तकनीक से स्वदेशी हल्के मल्टीरोल कॉम्बैट फाइटर जेट में ऑक्सीजन की सप्लाई की जाती है. यानी अब जिस तकनीक से लड़ाकू विमान तेजस के अंदर बैठे पायलट्स को ऑक्सीजन मिलती है, उसी तकनीक से कोरोना मरीजों को ऑक्सीजन बनाकर दी जाएगी. एक प्लांट के जरिए प्रति मिनट 1000 लीटर ऑक्सीजन बनाया जा सकता है. यह सिस्टम एक बार में 190 मरीजों को ऑक्सीजन दे सकता है.