रेना जमील वर्तमान में छत्तीसगढ़ के जिले सक्ति में एसडीएम के तौर पर पोस्टेड हैं. हाल ही में छत्तीसगढ़ के जांजगीर चांपा में राहुल नाम के बच्चे के बोरवेल से बचाने वाली रेस्क्यू टीम का हिस्सा भी थीं. वो इस दौरान 100 से ज्यादा घंटों तक कड़ी धूप या रात की उमस को झेलते हुए वहीं तैनात रहीं. इस पूरे अभियान को लेकर उनकी जिले में खूब तारीफ हो रही है. 2019 बैच की आईएएस अधिकारी रेना जमील से aajtak.in ने बातचीत करके उनके बारे में कई खास बातें जानीं, जो कि वाकई सबको प्रेरित करने वाली हैं.
रेना के परिवार में माता पिता के अलावा वो चार भाई बहन हैं. एक भाई उनसे बड़े हैं वहीं बाकी एक भाई और एक बहन छोटी है. रेना के परिवार ने शिक्षा से अपना सामाजिक और आर्थिक स्तर पूरी तरह बदला है. उनके बड़े भाई जहां आईआरएस अधिकारी हैं, वहीं छोटे भाई प्रसार भारती में इंजीनियर हैं. छोटी बहन भी परास्नातक की पढ़ाई के बाद बीएड कर रही हैं. वहीं रेना ने आईएएस बनकर पूरे परिवार का मान और बढ़ाया है.
रेना बताती हैं कि मैंने आठवीं तक उर्दू मीडियम के स्कूल से पढ़ाई की. उसी स्कूल से मेरी मां नसीम आरा ने भी आठवीं तक पढ़ाई की थी. उसके बाद भी दसवीं तक सरकारी स्कूल से पढ़ी. वो बताती हैं कि दसवीं 12वीं तक वो एक एवरेज स्टूडेंट थीं, लेकिन ग्रेजुएशन के बाद मास्टर्स में उन्होंने कॉलेज टॉप किया. जूलॉजी ऑनर्स से मास्टर्स करते वक्त रेना अपना करियर फॉरेस्ट सर्विस में बनाना चाहती थीं. इसके लिए तैयारी के दौरान उनके बड़े भाई ने कहा कि वो यूपीएससी के जरिये भी अपना करियर इस फील्ड में बना सकती हैं.
अब उनके मन में आईएएस बनने का ख्वाब पलने लगा था. रेना ने 2014 में यूपीएससी की तैयारी शुरू कर दी. फिर दूसरे अटेंप्ट में 2016 में 882वीं रैंक मिली. इसके बाद उनका इंडियन इंफॉर्मेशन सर्विस में चयन हो गया था और उन्होंने आईआईएस सेवा को ज्वाइन कर लिया. इसके साथ ही उन्होंने अपना सपना पूरा करने के लिए 2017 में फिर सिविल सेवा परीक्षा दी, लेकिन प्रीलिम्स में ही फेल हो गईं.
उन्होंने अपने इस फेलियर से सीखा और अपनी कमियों को पहचानकर दोबारा 2018 में फिर कुछ दिन छुट्टी लेकर तैयारी की और सिविल सेवा परीक्षा दी. इस बार उनकी 380वीं रैंक और उन्हें आईएएस रैंक मिली. साल 2019 में ही उन्हें ट्रेनी के तौर पर पहली पोस्टिंग छत्तीसगढ़ के बस्तर जिले में मिली. यहां वो असिस्टेंट कलेक्टर बनीं. इसके बाद उन्हें अगली पोस्टिंग सक्ति में एसडीएम के तौर पर मिली.
ऐसे रेयाज से मिलीं और बनीं जीवनसाथी
रेना बताती हैं कि मेरे पति रेयाज अहमद भी आईएएस हैं. हम लोग एक ही बैच के हैं. रेयाज से उनकी मुलाकात जामिया मिलिया की आरसीए कोचिंग में हुई. वो बताती हैं कि हम तीन लोग क्लोज थें, हमारी दोस्त इनाबत कश्मीर से थी, रियाज महाराष्ट्र से थे. हमारी बॉन्डिंग बहुत अच्छी थी, हमने एक दूसरे को जीवनसाथी बनाने का फैसला लिया और फिर आईएएस बनने के बाद घर परिवार की मर्जी से रेयाज से शादी कर ली.
मां का रहा खास रोल
रेना कहती हैं कि मेरी मां नसीम आरा भले ही आठवीं तक पढ़ी थीं, लेकिन सोच के मामले में उनका कोई मुकाबला नहीं. वो हमेशा हमसे कहती थीं कि भले ही मैं कुछ नहीं कर पाई लेकिन तुम्हें करना चाहिए. शादी से पहले तुम्हें पैरों पर खड़ा होना चाहिए. वो हम दोनों बहनों को अपने पैरों पर खड़ा करने का ख्वाब देखती थीं, इसके लिए वो कड़ी मेहनत करतीं और हमें घर में हमेशा पढ़ाई का माहौल दिया जाता.
मां को याद करके पार करती हूं हर चुनौती
रेना कहती हैं कि मेरी मां मेरे लिए एक आदर्श हैं. हर चुनौतीपूर्ण समय में मैं उनका जज्बा याद कर लेती हूं. हाल ही में नेशनल मीडिया में छाया बच्चे राहुल का बोरवेल से निकालने के मिशन में भी मैंने 100 से ज्यादा घंटे बिना ब्रश किए, बिना नहाए और बिना कहीं गए फील्ड में ही बिताए. मेरी मां भी हमें परवरिश देने के लिए ऐसे ही कई रातों तक जागी हैं.
राहुल के रेस्क्यू में निभाया रोल
रेना बताती हैं कि जहां राहुल का प्रकरण हुआ वो मेरे सबडिविजन के अंडर में आता है. जिस दिन ये घटना हुई, मैं रेस्क्यू टीम से जुड़कर स्पॉट पर भागी. वहां देखा कि आठ इंच का एक बोर है, जिसमें एक मेंटली चैलेंज बच्चा गिर गया है. पहले शुरू में उसका रोना सुनाई पड़ रहा था, जोकि बाद में न सुनाई देने पर हम सब डर गए.
अब हमारे लिए चैलेंज ये था कि बच्चा उस बोरवेल में सीधे नहीं गिरा था, वो जहां फंसा था, वहां से निकालना मुश्किल था. यही नहीं बच्चे को फूड पहुंचाना तक मुश्किल था क्योंकि वो बोतल तक नहीं खोल पा रहा था. उसे जूस देने की सोची, लेकिन वहां गांव में जूस नहीं मिला, फिर से ओआरएस या फ्रूटी और केला देने लगे. रेस्क्यू टीम में ऑपरेशन को लीड कर रहे कलेक्टर और एडीएम समेत चार लोग शामिल थे. फिर लगभग पांच दिनों तक ऑपरेशन चला, वहां इतने दिनों तक ब्रेश भी नहीं किया, नहाया भी नहीं. 46 डिग्री टेंप्रेचर और पूरी मशीनें भी वहां थीं. बहुत रिस्क था कि चालीस घंटे फूड नहीं पहुंचा पा रहे थे, पूरी नेशनल मीडिया वहीं थी, ब्रीफिंग भी करनी थी. मेरे लिए ये बहुत बड़ा चैलेंज था. जिसे आखिरकार हमने पूरा कर लिया.
(All Images Courtsey: Rena Jamil)