छोटी-छोटी मुश्किलों से घबराकर रास्ता बदलने वाले जरा एक बार सोचें. जिस घर में आठ भाई-बहन हों, पिता की शराब पीने की लत हो, घर का गुजारा करने के लिए अखबार बेचना पड़े. ऐसे घर में आईएफएस अफसर बनने का सपना देख पाना कितना मुमकिन होगा. लेकिन पी बालमुरुगन जैसे लोग ऐसा कर दिखाते हैं. आईएफएस अफसर पी बालमुरुगन के बारे में आप भी जानिए, आपके सोचने का नजरिया बदल जाएगा.
UPSC की अपनी जर्नी के बारे में पी बालमुरुगन ने aajtak.in से बातचीत में अपने जीवन के सभी पड़ावों के बारे में बताया. चेन्नई के कीलकट्टलाई में जन्मे बालमुरुगन ने कभी अपनी पढ़ाई के लिए अखबार बेचा. फिर एक नामी कंपनी की नौकरी छोड़कर यूपीएससी के जरिये भारतीय वन सेवा (IFS) में दाखिल हुए. वर्तमान में वो राजस्थान के डूंगरपुर वन प्रभाग में एक परिवीक्षाधीन अधिकारी के रूप में प्रशिक्षण ले रहे हैं.
बालमुरुगन बताते हैं कि साल 1994 के आसपास उनके पिता घर छोड़कर चले गए थे. घर में मेरे अलावा सात भाई बहन और थे, जिनके पालन पोषण की जिम्मेदारी मेरी मां पलानीमल पर आ गई थी. सिर्फ 10वीं कक्षा तक पढ़ी मेरी मां के पास कोई विकल्प भी नहीं था. तभी वो चाहती थीं कि कम से कम हम लोग अपने पैरों पर खड़े हों. बालमुरुगन बताते हैं कि एक वो वक्त था जब मैंने न्यूजपेपर वेंडर से तमिल न्यूजपेपर पढ़ने को कहा. उसने मुझसे मंथली 90 रुपये में सदस्यता लेने को कहा, मैंने उसे बताया कि मेरे पास पैसे नहीं हैं तो उसने मुझे 300 रुपये की जॉब ऑफर कर दी जो शायद मेरे लिए अच्छा ऑफर था.
ऐसे कठिन हालात में उनके मामा ने भी परिवार की काफी मदद की. उनकी मां ने अपने गहने बेचकर चेन्नई में एक छोटी सी जगह ली. जहां फूस की छत के नीचे पूरा परिवार रहने लगा. ये उनके संघर्ष का वो दौर था जब बालमुरुगन हालातों से सीखकर आगे बढ़ने की सोच रहे थे. इस पूरे सफर में उनकी मां उनकी असली ताकत बनीं जिन्होंने अपने बच्चों की पढ़ाई के लिए उस खरीदी गई जमीन का भी एक हिस्सा बेच दिया.
बालमुरुगन बताते हैं कि उन्होंने नौ साल की उम्र में अखबार बेचकर अपनी फीस के लिए कुछ पैसा जुटाना शुरू किया था. उसी दौरान उन्हें पढ़ने की लत लगी. ये लत ही उन्हें कहीं न कहीं यूपीएससी की तैयारी में काम आई. वो बताते हैं कि कैसे उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की. उन्होंने मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी चेन्नई से इलेक्ट्रॉनिक्स और कम्यूनिकेशन ब्रांच से ग्रेजुएशन पूरा किया.
अब वो वक्त आ गया था जब उन्हें इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करके अच्छी नौकरी के जरिये परिवार की स्थिति संभालनी थी. और ऐसा हुआ भी. ग्रेजुएशन के ठीक बाद कैंपस प्लेसमेंट के जरिए उन्होंने टीसीएस ज्वाइन किया. यहां उनका पैकेज लाखों में था. उन्होंने वो नौकरी ज्वाइन कर ली. लेकिन एक ऐसा वाकया हुआ जब एक आईएएस अफसर और प्रशासनिक कार्यों ने उन्हें बहुत प्रभावित किया और उनके मन में कहीं सिविल सर्विस का एग्जाम लिखने का सपना जन्म ले चुका था.
वो बताते हैं कि ये निर्णय मेरे लिए काफी कठिन था कि मैं ये नौकरी छोड़कर फिर से जमीन पर आ जाऊं और पढ़ाई में जुटूं. मेरे सामने एक तरफ इंजीनियरिंग का करियर था तो दूसरी तरफ यूपीएससी क्लीयर करने का सपना. इस जंग में मैंने अपने सपने को तरजीह दी और मैंने नौकरी छोड़कर तैयारी करने का फैसला लिया जिसमें मेरे परिवार ने मेरा साथ दिया. मैंने यूपीएससी की तैयारी के लिए लाखों के पैकेज की नौकरी छोड़कर चेन्नई में शंकर IAS एकेडमी में एडमिशन लिया और तैयारी में जुट गया. हालांकि तब तक उनके घर की स्थिति काफी सुधर चुकी थी क्योंकि उनकी बड़ी बहन ने भी कमाना शुरू कर दिया था.
बालमुरुगन कहते हैं कि जीवन के मूल्यों से मैंने यही सीखा है कि अगर कुछ पाने की चाहत है तो उसे पूरे मन से करो. भले ही आप भूखे सो जाएं लेकिन बिना पढ़े कभी नहीं सोना. अक्सर बड़े लक्ष्यों के लिए बहुत सारे बलिदान देने होते हैं. अपनी सुख सुविधाओं से लेकर अपने कंफर्ट जोन का त्याग करना पड़ता है.