World Mental Health Day: स्ट्रेस समझकर न करें अनदेखा, ऐसे करें एंग्‍जाइटी डिसऑर्डर की पहचान और इलाज

How to Deal with Anxiety: आज के दौर में हर व्यक्ति किसी ना किसी रूप में स्ट्रेस महसूस करता है. जबकि कुछ लोग एंग्जाइटी डिसऑर्डर के शिकार हो जाते हैं. स्ट्रेस एक निश्चित स्थित के बाद दूर हो जाता है जबकि एंग्जाइटी इतनी खतरनाक हो सकती है कि व्यक्ति को पैनिक अटैक भी आ सकता है. आइए जानते हैं स्ट्रेस और एंग्जाइटी डिसऑर्डर में क्या फर्क है और इसे कैसे दूर कर सकते हैं.

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How do deal with anxiety (Symbolic Image- Freepik.com) How do deal with anxiety (Symbolic Image- Freepik.com)

हर्षि‍ता पाण्डेय

  • नई दिल्ली,
  • 10 अक्टूबर 2022,
  • अपडेटेड 2:58 PM IST

किसी भी परेशानी या समस्या का हल तब निकलता है, जब उसके बारे में बात करते हैं. जब हम शारीरिक रूप से फिट फील नहीं करते तो हम खुलकर उसके बारे में बात कर पाते हैं. लेकिन जब हम मानसिक रूप से फिट फील नहीं करते तो चुप्पी साध लेते हैं. मेंटल हेल्थ के बारे में बात करने में आज भी कई लोग हिचकिचाते हैं. बहुत से लोग मेंटल हेल्थ की बात को मजाक में लेते हैं तो कुछ लोग इसे बकवास बताते हैं. यही वजह है कि हमारे आस-पास अगर कोई व्यक्ति किसी मेंटल हेल्थ की समस्या से जूझता है तो उसके बारे में बात नहीं करता. क्योंकि उसे डर होता है कि लोग उसे जज करेंगे या उसका मजाक उड़ाएंगे. लेकिन मेंटल हेल्थ के बारे में लोगों को जागरुक करने के लिए हर साल पूरी दुनिया में 10 अक्टूबर को मेंटल हेल्थ डे मनाया जाता है. 

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WHO द्वारा मेंटल हेल्थ डे मनाने के पीछे एक वजह ये भी है कि लोग मानसिक स्वास्थ के बारे में जागरुक हो सकें. एक अच्छा जीवन जीने के लिए जितना हमारा शारीरिक स्वास्थ्य जरूरी होता है, उतना ही ध्यान हमें अपने मानसिक स्वास्थ्य पर भी देना चाहिए. आज के समय में बहुत से लोग एंग्जाइटी और एंग्जाइटी डिसऑर्डर से गुजर कर रहे हैं. लेकिन इसके बारे में ज्यादा जानकारी न होने के चलते वो कभी इस समस्या पर बात ही नहीं करते. 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, जब विश्व में कोरोना महामारी नहीं आई थी तब आठ में से एक व्यक्ति किसी न किसी तरह के मेंटल डिसऑर्डर को झेल रहा था. वहीं, WHO की मानें तो कोरोना महामारी के पहले साल में दुनियाभर में एंग्जाइटी और डिप्रेशन के मामले 25 प्रतिशत तक बढ़ गए थे. WHO के मुताबिक, कोरोना में एंग्जाइटी बढ़ने के पीछे एक सबसे बड़ी वजह थी कोरोना के चलते लोगों का एक दूसरे से अलगाव. इसके अलावा अकेलापन, संक्रमण का डर, प्रियजनों की मृत्यु का शोक और वित्तीय चिंताओं के चलते भी एंग्जाइटी और डिप्रेशन के मामलों में वृद्धि हुई थी. मेंटल हेल्थ समस्या कई तरह की हो सकती हैं. उसमें से एक है एंग्जाइटी और एंग्जाइटी डिसऑर्डर. आइए जानते हैं कैसे एंग्जाइटी और एंग्जाइटी डिसऑर्डर हमारी लाइफ को प्रभावित करते हैं. 

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क्या है स्ट्रेस और एंग्जाइटी डिसऑर्डर में फर्क?
आज जिस वक्त में हम रह रहे हैं, उसमें लगभग हर व्यक्ति स्ट्रेस जरूर महसूस करता है. लेकिन स्ट्रेस एंग्जाइटी डिसऑर्डर से काफी अलग है. स्ट्रेस आपको किसी भी वजह से हो सकता है, जैसे कि स्टेज पर परफॉर्म करने में, किसी टेस्ट को लेकर और जैसे ही आप उस स्थिति से बाहर आएंगे आप स्ट्रेस फ्री हो जाते हैं. वहीं, एंग्जाइटी की स्थिति में आपको लगातार किसी न किसी चीज को लेकर डर लगा रहता है. कभी-कभी बिना किसी स्ट्रेस की स्थिति में भी एंग्जाइटी हो सकती है. अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के मुताबिक, एंग्जाइटी इस कदर खतरनाक हो सकती है कि आपको पैनिक अटैक भी झेलने पड़ सकते हैं. वहीं, एंग्जाइटी डिसऑर्डर किसी भी व्यक्ति की रोजमर्रा की जिंदगी पर भी असर डालने लगता है. 

जिन लोगों को एंग्जाइटी डिसऑर्डर होता है, उन्हें तमाम तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है. अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन की मानें तो एंग्जाइटी डिसऑर्डर मेंटल हेल्थ में सबसे आम समस्या है. लगभग 30 प्रतिशत व्यस्क इस डिसऑर्डर से गुजरते हैं. लेकिन आपको बता दें कि आप इस समस्या का उपचार कर सकते हैं और इससे निजात पा सकते हैं. 

एंग्जाइटी डिसऑर्डर भी तमाम तरह के होते हैं. जैसे कि जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर, पैनिक डिसऑर्डर, सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर और सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर. 

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जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर और इसके लक्षण
अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन के मुताबिक, जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर में लगातार और अत्यधिक चिंता शामिल होती है, जो आपकी रोजमर्रा की गतिविधियों में खलल डालती है. जनरलाइज्ड एंग्जाइटी डिसऑर्डर शारीरिक लक्षणों के साथ हो सकती है. इसके चलते आपको बेचैनी, सोने में समस्या, फोकस करने में समस्या, थकान और मांसपेशियों में तनाव जैसी चीजें महसूस हो सकती हैं. इस डिसऑर्डर में अक्सर चिंताएँ रोज़मर्रा की चीज़ों जैसे नौकरी की ज़िम्मेदारियों, पारिवारिक स्वास्थ्य या मामूली मामलों जैसे काम, कार की मरम्मत से जुड़ी होती हैं. 

पैनिक डिसऑर्डर और इसके लक्षण
पैनिक डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्तियों को लगातार खौफ महसूस होता है. इस डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति इतना घबरा जाते हैं कि उसे हर वक्त ऐसा महसूस होता है जैसे वो किसी बड़ी बीमारी या किसी बड़ी परेशानी में है. जब भी इन व्यक्तियों को पैनिक अटैक आता है, ये लोग इतना घबरा जाते हैं कि उन्हें हार्ट अटैक या कोई मेडिकल समस्या हो रही है. अमेरिकन साइकियाट्रिक एसोसिएशन की मानें तो पैनिक डिसऑर्डर की शुरुआत की औसत आयु 20-24 है. डिप्रेशन या PTSD जैसे अन्य मानसिक विकारों के साथ पैनिक अटैक की समस्या उत्पन्न हो जाती है. 

जिन लोगों को पैनिक डिसऑर्डर होता है, उन्हें पैनिक अटैक के समय घबराहट महसूस हो सकती है, उनका हार्ट रेट काफी बढ़ जाता है. उन्हें ऐसा महसूस होने लगता है कि वो सांस नहीं ले पा रहे, सीने में दर्द की शिकायत होती है. 

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सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर और इसके लक्षण
नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ के मुताबिक, सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर एक बहुत कॉमन एंग्जाइटी डिसऑर्डर है. सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति को उन स्थितियों में चिंता या भय के लक्षण महसूस होते हैं, जहां उन्हें लगता है कि लोग उन्हें जज करेंगे. पब्लिक मीटिंग्स, पब्लिक स्पीकिंग, डेंटिग, नौकरी के लिए इंटरव्यू सोशल एंग्जाइटी वाले व्यक्तियों के लिए बड़ी समस्या होती है. इस डिसऑर्डर से पीड़ित लोगों को भीड़ में बाहर निकलने, नए लोगों से मिलने का डर होता है.

नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ की मानें तो सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर मर्दों के मुकाबले महिलाओं में ज्यादा पाया जाता है. अगर सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर का ट्रीटमेंट समय से न कराया जाए तो ये बहुत सालों तक किसी भी व्यक्ति में रह सकता है. सोशल एंग्जाइटी डिसऑर्डर से पीड़ित लोग जब किसी भीड़ के बीच होते हैं या नए लोगों के बीच होते हैं उन्हें काफी पसीना आने लगता है, वो घबराहट महसूस करते हैं. उनके दिल की धड़कन बढ़ जाती है. वो किसी से बात करते वक्त अपनी नजरें मिलाकर बात नहीं करते.

सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर और इसके लक्षण
सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर से पीड़ित व्यक्ति को उन लोगों से अलग होने का भय सताता रहता है, जिनसे वो जुड़ाव महसूस करते हैं. उन्हें लगातार ये डर सताता रहता है कि वो उन लोगों से अलग हो जाएंगे, जिनके साथ उनका करीब का रिश्ता है. इस डर की वजह से सेपरेशन एंग्जायटी डिसऑर्डर वाले व्यक्ति को कोई भी काम करने का दिल नहीं करता और न ही वो कहीं फोकस कर पाते हैं. इस समस्या के लक्षण ज्यादादर बचपन में ही दिखने लगते हैं और कई बार तक व्यस्कता तक रहते हैं. इसका एक जो सबसे ज्यादा कॉमन लक्षण है, वो ये है कि जिन लोगों को ये एंग्जाइटी डिसऑर्डर होता है, वो अक्सर उन लोगों के बिना कहीं बाहर नहीं जाते जिनसे वो सबसे ज्यादा प्यार करते हैं. अक्सर वो हरपल उन लोगों के साथ रहने की जिद्द करते हैं, जिनके वो करीब होते हैं. 

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एंग्जाइटी डिसऑर्डर से कैसे निपटें?
अगर इनमें से आप कोई भी लक्षण से जूझ रहे हैं तो सबसे पहले तो अपनी लाइफस्टाइल में बदलाव लाने की कोशिश करें. क्योंकि कई बार हमारी लाइफस्टाइल भी हमारी एंग्जाइटी का कारण होती है. एक्सपर्ट्स का मानना है कि किसी भी एंग्जाइटी डिसऑर्डर से निपटने के लिए आपको अपना खान-पान अच्छा रखना चाहिए. साथ ही, आपको अपना एक स्लीपिंग रुटीन बनाना चाहिए और उसे फॉलो करना चाहिए. आपको अपनी लाइफस्टाइल में एक्सरसाइज भी जोड़नी चाहिए. आपको उन लोगों से बात करनी चाहिए, जिनपर आप भरोसा करते हैं और जो आपकी बातों को सकारात्मकता से सुनेकर आपको बेहतर सुझाव दे सकें.

एक्सपर्ट्स ये भी बताते हैं कि अगर आप किसी भी तरह के एंग्जाइटी डिसऑर्डर से जूझ रहे हैं तो आपको कैफीन नहीं लेना चाहिए. आपको ऐसी कोई भी चीज नहीं खानी या पीनी चाहिए जिसमें कैफीन हो. कैफीन आपकी एंग्जाइटी को ट्रिगर करता है. 

पहचानिए कब आपको डॉक्टर की मदद लेनी है?
अगर आप अपनी लाइफस्टाइल में ऊपर दिए गए बदलावों को शामिल करते हैं और उसके बाद भी आपको काफी दिनों तक अपनी स्थिति में सुधार नहीं लगता है तो आपको मेडिकल हेल्प लेनी चाहिए.  मेडिकल प्रोफेशनल टॉक थेरेपी और दवाइयों के जरिए आपकी एंग्जाइटी को क्योर करते हैं. टॉक थेरेपी और दवाइयों, दोनों की मदद से आप एंग्जाइटी डिसऑर्डर से छुटकारा पा सकते हैं.

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