6 साथियों के साथ सैकड़ों दुश्‍मनों पर भारी पड़े थे बदलू सिंह, पढ़ें विश्‍वयुद्ध के हीरो की कहानी

Badlu Singh: हरियाणा के झज्‍जर जिले के ढाकला गांव में पैदा हुए बदलू सिंह ब्रिटिश भारतीय सेना की रेजिमेंट में रिसालदार थे. पहले विश्‍वयुद्ध के दौरान उन्‍होंने मशीनगन से बरसती गोलियों के बीच 6 साथियों के साथ पूरी टुकड़ी पर हमलो बोल दिया और उन्‍हें घुटने टेकने पर मजबूर भी कर दिया. पढ़ें पूरी कहानी-

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Badlu Singh Badlu Singh

रविराज वर्मा

  • नई दिल्‍ली,
  • 13 जनवरी 2023,
  • अपडेटेड 9:56 AM IST

Badlu Singh: हमारा इतिहास ऐसे योद्धाओं की गाथाओं से भरा पड़ा है, जो अपने शौर्य और अदम्‍य साहस के चलते अमर हो गए. ऐसे ही एक वीर थे रिसालदार बदलू सिंह, जिन्‍होंने बेहद मुश्किल परिस्थितयों में भी गजब की बहादुरी द‍िखाते हुए दुश्‍मनों को घुटने पर ला दिया. हालांकि, इसी जंग के दौरान वह शहीद हो गए मगर उन्‍हें मरणोपरांत विक्‍टोरिया क्रॉस से सम्‍मानित किया गया.

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कौन थे बदलू सिंह
बात पहले विश्‍व युद्ध की है. हरियाणा के झज्‍जर जिले के ढाकला गांव में 13 जनवरी 1876 को पैदा हुए बदलू सिंह ब्रिटिश भारतीय सेना की रेजिमेंट में रिसालदार थे. उन्‍हें जंग के दौरान फिलिस्‍तीन की जार्डन घाटी में तैनात किया गया. तुर्की सेना लगातार हमले कर रही थी जिसे रोकने की जिम्‍मेदारी 12वीं केवलरी को दी गई जिसमें बदलू सिंह तैनात थे. 

तुर्की सेना से लिया लोहा
जंग में तुर्की सेना के पास अत्‍याधुनिक हथियार थे जिसमें मशीनगन भी शामिल थी. इसके अलावा तुर्की सैनिकों की संख्‍या भी काफी ज्‍यादा थी. तुर्की सेना लगातार मशीनगन से इनकी टुकड़ी पर गोलियां बरसा रही थी जिससे काफी सैनिक मारे जा रहे थे. ऐसे में इन्‍हें जॉर्डन नदी के किनारे दुश्‍मन के एक ठिकाने पर हमला करने का आदेश मिला.

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6 सिपाहियों के साथ बरसे बदलू सिंह
अपने लक्ष्‍य की तरफ बढ़ते हुए बदलू सिंह ने पाया कि बांई ओर एक छोटी सी पहाड़ी से तुर्की सैनिक मशीनगन से गोलियां बरसा रहे हैं. उन्‍होंने एक भी पल गंवाए बिना अपने 6 और साथियों के साथ उसी पहाड़ी पर धावा बोल दिया. बरसती गोलियां सीने पर खाकर बदलू सिंह और उनके साथी पहाड़ी पर पहुंचे और अपनी तलवारों से दुश्‍मनों के सिर उड़ाने लगे. उनके इस हमले से दुश्‍मन आत्‍मसमर्पण करने को मजबूर हो गए.

वीरगति को हुए प्राप्‍त
उन्‍होंने अपनी आंखों के सामने दुश्‍मनों को आत्‍मसमर्पण करते देखा. मगर इसके ठीक बाद वह अपने घावों के चलते वीरगति को प्राप्‍त हो गए. उनकी बहादुरी और दूरदर्शिता को देखते हुए उन्‍हें मरणोपरांत विक्‍टोरिया क्रॉस से सम्‍मानित किया गया.

 

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