Origin of Species लिखने वाले चार्ल्स डार्विन क्यों कहलाते हैं मानव इतिहास के सबसे बड़े वैज्ञानिक

The Origin of Species: चार्ल्‍स डार्विन ने आज ही के दिन यानी 24 नवंबर वर्ष 1859 में अपनी पुस्‍तक 'ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़' प्रकाशित की थी. शताब्‍दियों तक जीव विज्ञान में हुई खोजें उनके सिद्धांत को सही साबित करती हैं.

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Charles Darwin Charles Darwin

aajtak.in

  • नई दिल्‍ली,
  • 24 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 7:47 AM IST

जीव विज्ञान की दुनिया में चार्ल्स रॉबर्ट डार्विन का नाम सबसे महान वैज्ञानिकों की लिस्‍ट में सबसे ऊपर आता है. हम सभी ने स्‍कूल में जीव विज्ञान पढ़ते समय डार्विन के जैव विकास के सिद्धांत  जरूर पढ़े हैं. उनके द्वारा दिया गया प्राकृतिक चयन द्वारा विकास (Evolution by Natural Selection) का वैज्ञानिक सिद्धांत आधुनिक विकासवादी अध्ययनों की नींव है. उन्‍होंने जब पहली बार कहा कि जानवर और मनुष्‍य एक ही वंश की संतानें हैं, तो धार्मिक विक्टोरियन समाज हैरानी में पड़ गया. उनकी दी गई थ्‍योरी पूरे पृथ्‍वी के जन्‍म और विकास से जुड़े सवालों के जवाब देती है.

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चार्ल्स डार्विन की बीगल यात्रा
चार्ल्‍स डार्विन का जन्‍म 12 फरवरी 1809 को इंग्‍लैंड में एक संपन्‍न परिवार में हुआ था. उनके माता-पिता उन्‍हें डॉक्‍टर बनाना चाहते थे, जबकि चार्ल्‍स का दिल पशु-पक्षियों और प्रकृति में लगता था. वर्ष 1831 में 22 साल की उम्र में उन्‍हें बीगल जहाज़ पर दुनिया की सैर का मौका मिला जिसने उनकी जिंदगी बदलकर रख दी.

डार्विन ने बीगल पर 5 साल बिताए. इस दौरान जहाज जहां जहां रुका, उन्‍होंने वहां मौजूद जीव-जंतुओं, पेड़-पौधों और कीट-पतंगों का अध्‍ययन किया. अपने अध्‍ययन के आधार पर उन्‍होंने आखिरकार यह निष्‍कर्ष निकाला कि पृथ्‍वी पर मौजूद सभी प्रजातियां मूलत: एक ही प्रजाति की उत्‍पत्ति हैं. परिस्थितियों के अनुसार खुद को ढालने की प्रवृत्ति ही जैव-विविधता को जन्‍म देती है.

1859 में प्रकाशित की किताब
बीगल पर दुनिया भर की यात्रा से लौटने के बाद, उन्होंने 'ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशीज़' (The Origin of Species) किताब 1859 में प्रकाशित की. इस किताब ने आधुनिक पश्चिमी समाज और उसके विचार को गहराई से प्रभावित किया.

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क्‍यों कहलाए महानतम वैज्ञानिक?
डार्विन का सिद्धांत था तो एकदम सरल, मगर यह हर कसौटी पर सही उतरता चला गया. वर्षों बाद तक जैव विविधता पर किए गए अध्‍ययनों में डार्विन के सिद्धांत की पुष्टि ही होती रही. वर्ष 1953 में जेम्‍स वॉटसन और फ्रांसिस क्रिक ने DNA की संरचना की खोज की, जिसने शताब्‍दी पुराने डार्विन के सिद्धांत की पुष्टि की. 

जेनेटिक कोडधारी डीएनए की संरचना ऐंठी हुई सीढ़ी जैसे होती है, जिसके अध्‍ययन से पता चला कि एक ही प्रजाति से सभी प्रजातियों की उत्‍पत्ति का सिद्धांत एकदम सही है. वॉटसन और क्रिक को अपनी खोज के लिए 1962 में चिकित्‍सा विज्ञान का नोबेल भी मिला. जेम्‍स वॉटसन ने कहा था, 'मेरे लिए तो चार्ल्स डार्विन इस धरती पर जी चुका सबसे महत्वपूर्ण व्यक्ति है.'

इसके बाद आए जीव विज्ञानी जैसे ग्रेगॉर जॉन मेंडल, एरन्‍स्‍ट फिशर, एडवर्ड विल्‍सन की खोजें भी डार्विन के सिद्धांत को सही साबित करती गईं. विल्‍सन का कहना था, 'हर युग का अपना एक मील का पत्थर होता है. पिछले 200 वर्षों के आधुनिक जीवविज्ञान का मेरी दृष्टि में मील का पत्थर है 1859, जब जैविक प्रजातियों की उत्पत्ति के बारे में डार्विन की पुस्तक प्रकाशित हुई थी. दूसरा मील का पत्थर है 1953, जब DNA की बनावट के बारे में वॉटसन और क्रिक की खोज प्रकाशित हुई."

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एनजाइना से पीड़ित डार्विन को मार्च 1882 में दिल का दौरा पड़ा और 19 अप्रैल को इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. हालांकि, जीवों के जन्‍म और उनके विकास से जुड़ी डार्विन की शिक्षाएं शताब्दियों से अमिट हैं.

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