गिरते भारतीय रुपये का असर विदेश में पढ़ाई करने वाले अभ्यर्थियों पर भी दिखाई देने लगा है. डगमगाते रुपये के कारण फीस और उससे जुड़े शिक्षा लोन में भी बढ़त हो रही है. ऐसे में अमेरिका, कनाडा और ब्रिटेन में रहने वाले छात्रों के परिवारों को डॉलर पर अधिक खर्च करना पड़ रहा है.
अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रुपया 90 के लेवल से नीचे गिरकर अपने ऑल टाइल लो स्तर पर पहुंच गया है. कमजोर रुपये के कारण कच्चे तेल से लेकर इलेक्ट्रॉनिक्स तक की चीजें महंगी हो गई हैं.
बता दें कि रुपया 2025 के अब तक के सबसे खराब दौर से गुजर रहा है. इतना ही नहीं, साल 2025 की सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्राओं में भी ये शामिल हो गया है.
इसका प्रभाव अमेरिका, ब्रिटेन, इटली, जर्मनी और सिंगापुर में पढ़ाई कर रहे भारतीयों पर साफ दिखाई दे रहा है. इस दौरान विदेश में पढ़ रहे बच्चों ने इंडिया टुडे डिजिटल को बताया कि कैसे गिरता रुपया,बढ़ती फीस का कारण बन रहा है.
लाखों में पहुंच सकती है फीस
रुपये में गिरावट की वजह से रहने का खर्च और सालाना ट्यूशन फीस लाखों रुपये पर पहुंच सकता है. इसके साथ ही एजुकेशन लोन भी काफी हद तक बढ़ सकता है. Indian Ministry of Education Bureau of Immigration के आंकड़ों के अनुसार, साल 2024 तक 7.6 लाख से ज्यादा भारतीय छात्र हायर एजुकेशन के लिए विदेश जाने का फैसला किया. हाल के सालों में कोविड साल यानी 2020 को छोड़कर ये संख्या 2.6 लाख के करीब थी. इसका मतलब है कि विदेश में पढ़ने वाले भारतीयों की संख्या में बढ़त हुई है. वहीं, साल 2023 में ये आंकड़ा 8.95 लाख पर पहुंच गया था.
इन सहारों के साथ जाते हैं विदेश
हालांकि, इस बात का कोई आधिकारिक सोर्स नहीं है कि कितने फीसदी छात्र मिडिल क्लास से विदेश में पढ़ाई करने के लिए जाते हैं. लेकिन उद्योग रिपोर्ट और सर्वेक्षणों से पता चलता है कि विदेश जा रहे छात्रों में एक बड़ा हिस्सा मीडिल क्लास फैमली से आता है, जिन्हें छात्रवृत्ति या एजुकेशन लोन के सहारे विदेश पढ़ने के लिए भेजा जाता है.
विदेशों में क्यों महंगी हो रही है शिक्षा
आपने ये अक्सर सुना होगा कि विदेशों में भारतीयों के लिए शिक्षा दिन पर दिन महंगी होती जा रही है. ऐसा इसलिए क्योंकि लगातार भारतीय रुपये में गिरावट दर्ज की जा रही है. पिछले 8 महीनों में डॉलर के मुकाबले रुपया 84 रुपये से गिरकर 90.12 रुपये पर आ गया है.
अभ्यर्थी ने बयां किया दर्द
न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में मीडिया के क्षेत्र में मास्टर्स कर रही संजना एम कुमार ने बताया कि रुपये में गिरावट के कारण रोज की चीजों का बजट प्रभावित हो गया है. उन्होंने आगे बताया कि मेरे माता-पिता मुझे हर महीने 1,500 डॉलर भेजते हैं, जिसमें मेरी बेसिक जरूरतें पूरी हो जाती हैं. पिछले साल एक डॉलर की कीमत करीब 83.5 रुपये थी.
विदेशों में इस तरह गुजारा कर रहे हैं बच्चे
इंडिया टुडे डिजिटल से बात करते हुए संजना बताती हैं कि पहले मैं कभी कभार अपने दोस्तों के साथ कैफे चली जाती थी, लेकिन गिरते रुपये के कारण मैंने ये सारी चीजें बंद कर दीं. वहीं, कभी-कभी मैं टैक्सी का भी यूज कर लेती थी, लेकिन अब टैक्सी लेने से पहले कुछ ब्लॉक पैदल चलती हूं, जिससे मेरे कुछ डॉलर बच जाते हैं.
(रिपोर्ट- आनंद सिंह)
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