दीवारों में सालों-साल 'मौत' की नींद सोती है ये मछली, फिर ऐसे होता है पुनर्जन्म!

लंगफिश मछली अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कई ऐसे तालाबों में रहती है जो गर्मियों की मार नहीं झेल पाते. लंबी गर्मियों के मौसम में ये सूख जाते हैं. तब यह मछली अपने शरीर से एक खास किस्म का स्राव करती है और 'मौत' की नींद सो जाती है.

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Lungfish (Photo: AP) Lungfish (Photo: AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 18 सितंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:19 AM IST

'मछली जल की रानी है जीवन उसका पानी है', यह कविता आपने जरूरी पढ़ी या सुनी होगी लेकिन आज हम जिस मछली के बारे में बता रहे हैं वह तीन से चार साल तक बिना पानी के रह सकती है. बहुत से लोगों को यह जानकर हैरानी हो सकती है. हम बात कर रहे हैं लंगफिश की, जो दक्षिण अमेरिका, अफ्रीका और ऑस्ट्रेलिया में पाई जाती हैं. लंगफिश (Lungfish) के रहस्यमयी जिंदगी जीवन की कीमत समझाने के लिए काफी है. यह कई साल तक लोगों के घरों की दीवारों में जीवन का इंतजार करती है. जब गर्मी की तपन से तालाब तक दम तोड़ देते हैं उस वक्त भी यह लंगफिश जीने का रास्ता तलाश लेती है.

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दरअसल, यह मछली अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के कई ऐसे तालाबों में रहती है जो गर्मियों की मार नहीं झेल पाते. लंबी गर्मियों के मौसम में ये सूख जाते हैं. जब तालाबों का पानी सूख जाता है और तली दिखाई देने लगती है तब लंगफिश उसमें दिखाई देती हैं. भयानक गर्मी के चलते कीचड़ भी सूखने लगता है और उसमे रहने वाले जीव-जंतु मर जाते हैं या फिर भाग जाते हैं. वे ऐसी जगहों पर चले जाते है, जहां पर उन्हें जीवन की ज्यादा अच्छी संभावना मिल सकती है लेकिन लंगफिश कहीं नहीं जाती.

'मौत' की नींद सोती है यह मछली

जंगल कथा के लेखक और वन्य जीवों के मामले के एक्सपर्ट कबीर संजय कहते हैं. लंगफिश अपने शरीर से एक खास किस्म का स्राव करती है. वह अपने शरीर के इर्द-गिर्द एक खोल तैयार कर लेती है. वो उसी खोल में चुपचाप 'मौत की नींद' सो जाती है. मौत की नींद इसलिए क्योंकि वह उस खोल में तीन से चार साल तक अपने आप को इस तरह छुपा लेती है कि मानो मर गई हो.

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घरों की दीवारों में कैसे पहुंचती है लगंफिश?

अकसर लोग तालाब सूख जाने पर उसकी मिट्टी खोदकर अपने कच्चे घरों की दीवार बना लेती हैं. ऐसा ही अफ्रीका में भी किया जाता है. वहां के लोग तालाब की मिट्टी से बड़ेृ-बड़े डले बनाकर कच्चे घरों का निर्माण करते हैं. इसी मिट्टी के अंदर अपने खोल में छिपी लंगफिश लोगों के घरों की दीवारों में पहुंच जाती है.

लंगफिश का पुनर्जन्म

महीनों बीत जाते हैं, गर्मियां बीतती हैं, बरसात का मौसम अच्छा नहीं रहा, बहुत जोर की बारिश नहीं हुई, फिर जाड़ा आ गया, फिर गर्मियां आईं, फिर बरसात का मौसम अच्छा नहीं रहा, ऐसे करते-करते इन दिनों में सालों-साल बारिश नहीं होती. जब बारिश होती है तो लंगफिश का इंतजार पूरा होता है. बारिश का पानी धरती को तर-बतर कर देता है. सबकुछ भीगने लगता है. मिट्टी की दीवार भी गीली हो जाती है. जिंदगी का इंतजार कर रही मछली तक भी पानी की नमी पहुंचती है, जो कई साल से दीवार के अंदर अपने खोल में सोई हुई है. लंगफिश को एहसास हो जाता है कि बाहर चारों तरफ पानी की बौछार पड़ रही है. अच्छे दिन आ चुके हैं. उसके अंदर के जीवन की संभावना दोबारा पूरी तरह से जाग उठती है.

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पानी से भीगने पर मिट्टी की दीवार भी ढीली पड़ जाती है. लंगफिश चुपचाप अपने खोल से निकलती है और रेंगते हुए बाहर आती है. वो दीवार से नीचे गिर जाती है, फिर बरसात के पानी के साथ बहते हुए चुपचाप उसी तालाब में पहुंच जाती है, जहां पर वो पैदा हुई थी. यहां पर दोबारा उसे ढेर सारा पानी मिलता है. हां, यही तो वो जीवन है, जिसका वो इंतजार कर रही थी. वह फिर से जीती है और अपनी संततियां पैदा करती है.

 

 

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