सुप्रीम कोर्ट के मौजूदा मुख्य न्यायाधीश भूषण आर गवई ने अगले सीजेआई के तौर पर न्यायमूर्ति सूर्यकांत के नाम का प्रस्ताव भेजा है. सीजेआई गवई ने अगले सीजेआई के लिए जस्टिस सूर्यकांत के नाम का प्रस्ताव एक दिन पहले ही (27 अक्टूबर को) भेज दिया है. CJI गवई ने उनके नाम की सिफारिश करते हुए कहा है कि जस्टिस सूर्यकांत सुप्रीम कोर्ट की कमान संभालने के लिए पूरी तरह योग्य और सक्षम हैं.
चीफ जस्टिस CJI की नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू हो गई है. परंपरा के अनुसार, मौजूदा चीफ जस्टिस अपने उत्तराधिकारी का नाम तभी सजेस्ट करते हैं जब कानून मंत्रालय उनसे ऐसा करने को कहता है. ऐसे में जस्टिस सूर्यकांत का अगला सीजेआई बनना तय माना जा रहा है. वह देश के 53वें चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) होंगे.
CJI गवई ने बताया योग्य और सक्षम
जस्टिस सूर्यकांत हरियाणा से पहले व्यक्ति होंगे जो देश के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) बनेंगे. जस्टिस सूर्यकांत के सामने सीजेआई के तौर पर आने वाले समय में कई बड़े मामले जस्टिस सूर्यकांत की बेंच के सामने होंगे. इनमें वक्फ बिल जैसे केस भी शामिल हैं.
हिसार के छोटे से गांव से है नाता
जस्टिस सूर्यकांत का जन्म हरियाणा के हिसार जिले के पेटवाड़ गांव में हुआ. उनके पिता एक शिक्षक थे. उनकी 8वीं तक की पढ़ाई गांव के स्कूल से हुई थी, उस स्कूल में एक बेंच तक नहीं थीं. जब उनके पास कोई काम नहीं होता तब वे खेतों में परिवार की मदद करते थे. उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय, रोहतक से 1984 में कानून की पढ़ाई पूरी की और हिसार जिला अदालत से वकालत शुरू की.
साल 1985 में वे पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने लगे, जहां उन्होंने संवैधानिक, सेवा और दीवानी मामलों में विशेषज्ञता हासिल की. उनकी मेहनत और समझदारी ने उन्हें जल्दी ही पहचान दिलाई. कुछ ही वर्षों में वे राज्य सरकार और कई प्रमुख संस्थानों- जैसे विश्वविद्यालयों और बैंकों के वकील बन गए.
सबसे युवा महाधिवक्ता बने
साल 2000 में, सिर्फ 38 साल की उम्र में, वे हरियाणा के सबसे युवा महाधिवक्ता (Advocate General) बने. इस उपलब्धि के बाद, उन्हें सीनियर एडवोकेट का दर्जा दिया गया. 2000 से 2004 तक उन्होंने इस पद पर रहते हुए राज्य सरकार के कई अहम मामलों में पैरवी की.
फरवरी 2027 तक रहेंगे सीजेआई
सीजेआई बीआर गवई का कार्यकाल 23 नवंबर को खत्म होगा और जस्टिस सूर्यकांत इसके अगले दिन यानी 24 नवंबर को पद ग्रहण करेंगे. वे 9 फरवरी 2027 तक इस पद पर रहेंगे. सीजेआई के रूप में जस्टिस सूर्यकांत का कार्यकाल करीब 14 महीने का होगा. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट के जज 65 साल की उम्र में रिटायर होते हैं.
न्यायिक करियर और सुप्रीम कोर्ट तक की यात्रा
9 जनवरी 2004 को उन्हें पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट का न्यायाधीश नियुक्त किया गया. उन्होंने वहां 14 साल से ज्यादा समय तक सेवा दी और कई महत्वपूर्ण फैसलों में भाग लिया. अक्टूबर 2018 में, उन्हें हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाया गया.
इसके बाद मई 2019 में, उन्हें सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन मिला. सुप्रीम कोर्ट में रहते हुए, न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कई संविधान पीठों का हिस्सा बनकर ऐतिहासिक फैसले दिए — जिनमें अनुच्छेद 370 को हटाने से जुड़ा 2023 का फैसला भी शामिल है. वे अब तक 1,000 से ज्यादा मामलों में फैसले दे चुके हैं, जिनमें संविधान, मानवाधिकार और प्रशासनिक कानून जैसे विषय प्रमुख रहे हैं.
महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां और योगदान
न्यायमूर्ति सूर्यकांत सुप्रीम कोर्ट लीगल सर्विस कमेटी के अध्यक्ष (नवंबर 2024 से) हैं. वे राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, रांची के कुलाधिपति भी हैं और दो बार राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) के सदस्य रह चुके हैं. इसके अलावा, वे कई राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय कानूनी संगठनों से भी जुड़े हुए हैं.
हरियाणा के पहले मुख्य न्यायाधीश
न्यायमूर्ति सूर्यकांत के पदभार संभालने के साथ ही, हरियाणा के किसी व्यक्ति के लिए यह पहला मौका होगा जब वह देश के सर्वोच्च न्यायिक पद तक पहुंचेगा. उनकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठता आधारित प्रणाली की परंपरा को भी बनाए रखेगी.
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने दिए ये प्रमुख फैसले
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस सूर्यकांत देश के कई बड़े और ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा रहे हैं.
1. आर्टिकल 370 का मामला (2023): जस्टिस सूर्यकांत उस बेंच में शामिल थे जिसने जम्मू-कश्मीर से आर्टिकल 370 हटाने के फैसले को बरकरार रखा.
2. डेरा सच्चा सौदा हिंसा केस (2017): वे पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट की उस बेंच में थे जिसने डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम को लेकर जेल में हुई हिंसा के बाद, डेरा सच्चा सौदा को खाली कराने का आदेश दिया था.
3. महिलाओं के लिए आरक्षण: जस्टिस सूर्यकांत ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन समेत देश की सभी बार एसोसिएशनों में एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का आदेश दिया.
5. अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (AMU) केस: वे 7 जजों की उस बेंच में थे जिसने 1967 के पुराने फैसले को रद्द कर दिया, जिससे AMU को फिर से अल्पसंख्यक दर्जे पर पुनर्विचार का मौका मिला.
6. पेगासस जासूसी मामला: वे उस बेंच में भी शामिल थे जिसने पेगासस स्पाईवेयर जासूसी मामले की जांच के लिए साइबर विशेषज्ञों की एक कमेटी बनाई. उन्होंने कहा था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर सरकार को असीमित अधिकार नहीं दिए जा सकते.
7. बिहार मतदाता सूची मामला (SIR केस): बिहार में वोटर लिस्ट से जुड़े एक केस में, उन्होंने चुनाव आयोग को आदेश दिया कि ड्राफ्ट वोटर लिस्ट से हटाए गए 65 लाख नामों की जानकारी सार्वजनिक करे, ताकि चुनाव प्रक्रिया में पारदर्शिता बनी रहे.
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