लाल किला के पास जहां ब्लास्ट हुआ था. वहां से फॉरेंसिंग टीम ने मौके से कई तरह के सबूत इकट्ठा किए हैं. इन सबूतों की लैब में जांच होगी. अब सवाल ये उठता है कि फॉरेंसिक एक्सपर्ट जो ये जांच करते हैं- इसे क्या कहा जाता है और इससे क्या होता है.
अक्सर किसी धमाके या बम ब्लास्ट के बाद फॉरेंसिक एक्सपर्ट स्पॉट से विस्फोट से जुड़े अवशेष को इकट्ठा करते हैं और इन नमूनों की लैंब में एक विशेष जांच होती है. जिसे Explosion Residue Test कहा जाता है. साइंस डायरेक्ट की फॉरेंसिक साइंस इंटरनेशनल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, एक्सपोशन रेसीड्यू टेस्ट या विस्फोट अवशेष परीक्षण एक फोरेंसिक विश्लेषण होता है.
क्या होता है Explosion Residue Test
इसका इस्तेमाल विस्फोट के बाद घटनास्थल पर बिखरे अवशेषों और पीड़ितों के शरीर में मौजूद विस्फोटकों की मात्रा की पहचान और विश्लेषण करने के लिए किया जाता है. इस टेस्ट से ही पता चल पता है कि विस्फोट में किस तरह की सामग्री का इस्तेमाल हुआ था और ये कितना शक्तिशाली था.
इन तकनीकों का होता है इस्तेमाल
ये टेस्ट के लिए अलग-अलग विश्लेषणात्मक तकनीकों का उपयोग किया जाता है. इसमें गैस क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री (जीसी-एमएस), आयन क्रोमैटोग्राफी (आईसी) और फूरियर ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड (FTIR) स्पेक्ट्रोस्कोपी शामिल होते हैं. इसमें विस्फोट स्थल से मलबे, बम के टुकड़ों, यहां तक कि पीड़ितों के कपड़ों और त्वचा के नमूनों की भी जांच की जाती है.
ब्लास्ट रिक्रिएट करने में मिलती है मदद
इसका टेस्ट का मकसद इस्तेमाल किए गए विस्फोटक के प्रकार की पहचान करना है. इससे घटना को रीक्रिएट करने में मदद मिलती है. इस वजह से यह टेस्ट लॉ इन्फोर्समेंट एजेंसियों को जांच में मदद करता है. विस्फोट कैसे हुआ, इसमें क्या इस्तेमाल हुआ था, यह कितना शक्तिशाली था, सबकुछ सामने आ जाता है. इसके बाद इसे अंजाम कैसे दिया गया, इस बात का पता भी आसानी से लगाया जा सकता है. एक तरह से कहा जाए तो इस टेस्ट के जरिए धमाके की पूरी कहानी निकलकर सामने आ जाती है.
इस जांच में इस्तेमाल होने वाले तरीके
गैस क्रोमैटोग्राफी-मास स्पेक्ट्रोमेट्री (जीसी-एमएस): यह तरीका नमूने में कार्बनिक यौगिकों को अलग करने और पहचानने के लिए व्यापक रूप से इस्तेमाल होता है.
आयन क्रोमैटोग्राफी (आईसी): विस्फोटक अवशेषों में अकार्बनिक घटकों की पहचान करने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है.
कैपिलरी इलेक्ट्रोफोरेसिस : यह एक कॉम्प्लीमेंट्री तकनीक है जो विस्फोटक के विश्लेषण के लिए अच्छी संवेदनशीलता और रेजॉल्यूशन प्रदान करती है.
फूरियर ट्रांसफॉर्म इन्फ्रारेड (एफटीआईआर) स्पेक्ट्रोस्कोपी: यह विस्फोट के बाद उच्च विस्फोटक पदार्थों की पहचान करने के लिए एक संवेदनशील प्रक्रिया है.
विस्फोट की पूरी कहानी रख देता है सामने
कुल मिलाकर देखा जाए तो Explosion Residue Test ही वो फॉरेंसिक जांच है, जिससे पता चलता है कि कोई भी विस्फोट कितना शक्तिशाली था. इसमें किन विस्फोटकों का इस्तेमाल हुआ था और इसे कैसे अंजाम दिया गया था. यह जांच किसी भी धमाके की पूरी कहानी को समाने रख देता है.
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