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प्रीह विहियर मंदिर की देखें Photos, जिसे लेकर कंबोडिया-थाईलैंड में छिड़ गया WAR

aajtak.in
  • नई दिल्ली,
  • 25 जुलाई 2025,
  • अपडेटेड 1:44 PM IST
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कंबोडिया और थाईलैंड के बीच एक शिव मंदिर को लेकर विवाद चल रहा है. इसी वजह से दोनों देशों के बीच जंग जैसे हालात बन गए हैं. इस मंदिर का नाम प्रीह विहियर है. इस मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में हुआ था. इस पर कंबोडिया और थाईलैंड दोनों ही देश अपना दावा ठोकते हैं. प्रीह विहियर मंदिर का निर्माण खमेर साम्राज्य के राजाों ने करवाया था. कंबोडियाई लोग आज भी खुद को खमेर लोगों का वंशज बताते हैं. (Photo - AFP)
 

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इस मंदिर को लेकर थाईलैंड और कंबोडिया के विवाद को समझने के लिए हमें 500 से 600 साल पीछे जाना होगा. जब थाईलैंड और कंबोडिया सहित आसपास का पूरे इलाके पर खमेर साम्राज्य का शासन था. थाईलैंड जिसे पहले सियाम के नाम से जाना जाता था, उसके अधिकांश हिस्से खामेर साम्राज्य के तहत थे. खमेर राजाओं ने दक्षिण पूर्व एशिया में अपने शासन के तहत कई मंदिर परिसरों का निर्माण कराया. इसी में अंगकोर वाट का मंदिर और प्रीह विहियर मंदिर भी शामिल है. इन पर हिंदू धर्म का प्रभाव है. क्योंकि खमेर राजाओं का प्रमुख धर्म हिंदू था. (Photo - AFP)
 

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अपने खमेर मूल के बावजूद, प्रीह विहियर हमेशा से कम्बोडियाई नियंत्रण में नहीं रहा. SPICE की रिपोर्ट के अनुसार, 1431 में, जब खमेर साम्राज्य का पतन शुरू हुआ, पड़ोसी सियाम की सेनाओं ने कम्बोडिया की राजधानी अंगकोर थॉम पर हमला किया. हार के बाद खमेर राजा को दक्षिण की ओर बढ़ना पड़ा और अपनी शक्ति को नोम पेन्ह के करीब मजबूत करना पड़ा. अगली चार शताब्दियों में, सियाम ने धीरे-धीरे कम्बोडियाई क्षेत्र पर प्रभुत्व कायम कर लिया. 1794 तक, एक बेहद कमज़ोर खमेर सम्राट ने आधुनिक सिसोफ़ोन और बटदाम्बैंग के आसपास के उत्तर-पश्चिमी प्रांतों पर सियाम को नियंत्रण सौंप दिया. इस तरह प्रीह विहियर भी थाईलैंड के नियंत्रण में चला गया. (Photo - AFP)

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1863 में कम्बोडियाई राजा नोरोडोम ने फ्रांसीसी संरक्षित राज्य का दर्जा मांगा. ऐसा उसने मुख्यतः सियामी प्रभुत्व से बचने के लिए किया. चार साल बाद, सियाम के राजा ने खमेर साम्राज्य के उत्तरी और पश्चिमी हिस्सों में, जिसमें प्रीह विहिहर के आसपास का क्षेत्र भी शामिल था. बड़े क्षेत्रीय रियायतों के बदले में कंबोडिया पर आधिपत्य का अपना दावा त्याग दिया. 1907 में, फ़्रांसीसी अधिकारियों ने एक सर्वेक्षण किया और एक  मानचित्र तैयार किया, जिसमें जल-विभाजक रेखा से हटकर एक सीमा दिखाई गई और प्रीह विहियर का पूरा क्षेत्र कंबोडिया के पक्ष में आ गया.(Photo - AFP)
 

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1941 में, थाईलैंड ने जापान के साथ युद्धकालीन गठबंधन के तहत प्रीह विहियर और अन्य क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लिया.  कंबोडिया ने विरोध किया और पांच साल बाद अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) में मुकदमा दायर किया.अंतरराष्ट्रीय न्यायालय ने पाया कि थाई लोग लगभग आधी सदी तक फ्रांसीसी सीमा निर्धारण को चुपचाप स्वीकार करते रहे और 1962 में कंबोडिया के पक्ष में 9-3 के बहुमत से फैसला सुनाया. थाईलैंड ने आईसीजे के इस फैसले पर कूटनीतिक रूप से जोरदार प्रतिक्रिया व्यक्त की, लेकिन अपने सैनिकों को वापस बुला लिया. (Photo - AP)
 

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जब कम्बोडियाई राजकुमार सिहानोक ने 1963 में मंदिर को अपने कब्जे में लेने के लिए एक समारोह आयोजित किया, तो उन्होंने दोनों देशों के बौद्धों के लिए इस स्थल के महत्व पर जोर दिया. उन्होंने यह भी घोषणा की कि थाई लोग बिना वीजा के मंदिर में जा सकते हैं. 1963 के हस्तांतरण के बाद कई वर्षों तक, प्रीह विहियर प्रभावी रूप से प्रतिबंधित क्षेत्र था. क्योंकि खमेर रूज गुरिल्ला और अन्य सेनाएं नियंत्रण के लिए लड़ रही थीं और उन्होंने इस क्षेत्र में भारी मात्रा में बारूदी सुरंगें बिछाई थीं. (Photo - AP)
 

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1990 के दशक के अंत में खमेर रूज संगठन के बिखरने के बाद ही यह स्थल पर्यटकों के लिए सुलभ हो पाया. हालांकि, 2008 में स्वामित्व को लेकर ऐतिहासिक विवाद फिर से उभर आया जब कंबोडिया ने प्रीह विहियर को यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल के रूप में पंजीकृत करने की मांग की और इसके लिए यूनेस्को को आवेदन दिया. इसको लेकर थाई सरकार ने इस आधार पर आपत्ति जताई कि आवेदन में मंदिर के आसपास की भूमि का उल्लेख था जो थाईलैंड की है. (Photo -AP)
 

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यूनेस्को ने जब प्रीह विहियर को संरक्षित सूची में शामिल किया तो थाईलैंड ने इसका विरोध शुरू कर दिया.  इसके बाद 2008 से 2011 तक दोनों देशों के बीच इस बात को लेकर कई बार झड़प हुई. थाई सेना ने मंदिर के आसपास के जमीन पर दावा करते हुए उस पर कब्जा कर लिया है और कई बंकर भी बना लिए हैं. कंबोडिया और थाईलैंड इस मंदिर और इसके आसपास की जमीन को लेकर एक अनसुलझे विवाद में फंसा हुआ है.  (Photo - AP)
 

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