मुंबई का सांताक्रूज. रात के करीब बारह बजे... जब समुंद्र की लहरों से टकराकर आती ठंडी हवाओं ने मौसम में मीठी सी चुभन पैदा कर दी थी। नुक्कड़ पर बड़े एक बंगले जिसका नाम था शक्ति समानता बग्ला, वहां से एक कार निकली और मैरीलैंड के पास एक बंगले के बाहर आकर रूकी। खटाक की आवाज़ से गाड़ी के दरवाज़े खुले और कुर्ता-पैजामा पहने, आंखों पर चश्मा लगाए एक 54 साल का शख्स गाड़ी से उतरा। बड़ी अदा से सिक्योरीटी गार्ड को 50 रूपए थमाए और बोला- गाड़ी पार्क कर देना। लोहे के बड़े से गेट से होता हुआ वो शख्स बंग्ले में दाखिल हुआ और घुमावदार सीढ़ियों से होता हुआ अपने कमरे में पहुंचा। तब तक 12.30 हो गए थे। पास में दीवार पर जनवरी 1994 का कैलेंडर टंगा हुआ था. कपड़े बदलकर उस व्यक्ति ने टीवी ऑन किया और समाचार सुनने लगा. दो घंटा गुज़र गया. घड़ी की सुई रात के 2.30 बजा रही थी। तभी समाचार देख रहे शख्स के माथे पर पसीना आने लगा, उसे घबराहट होने लगी.. उसने कांपते हुए हाथों से घंटी बजाई. आवाज़ सुनते हुए उसका केयरटेकर सुदम कमरे में आया। अपने मालिक की बिगड़ी तबीयत देख वो भी हड़बड़ा गया. उन्हें हार्ट अटैक आया था. ड्राइवर रमेश भी कमरे में था. उसने तुरंत एम्बुलेंस को फोन किया. रात के सन्नाटे में एम्बुलेंस की आवाज़ ने सबको जगा दिया. हर कोई अपने घर की खिड़की पर खड़ा होकर तमाशा देख रहा था. स्ट्रेचर पर लेटे उस शख्स को लेकर सब फौरन अस्पताल रवाना हुए. रास्ते भर डॉक्टर उसे कार्डिएक मसाज दिए जा रहे थे. लेकिन जैसे ही एम्बुलेंस अस्पताल के बाहर आकर रुकी.. डॉक्टर ने घबराई हुई नज़रों से पास बैठे लोगों को देखा, सिर हिलाया और कहा- पंचम दा नहीं रहे.
बंबई शहर. शहर जहां लोग हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में नाम कमाने का ख़्वाब लेकर आते रहे हैं. दशक भर पहले कलकत्ता के संगीतकार सचिन देव बर्मन भी यही ख्वाब लेकर बम्बई आए थे. ये 1944 का साल था. धीरे-धीरे इंडस्ट्री में उनकी पकड़ मज़बूत होने लगी और हिंदी म्यूज़िक इंडस्ट्री में उन्हें हिट मशीन कहा जाने लगा.
1950 के दशक में एसडी बर्मन ने अपने बेटे आरडी बर्मन को भी बंबई बुला लिया और वो उनके असिस्टेंट बन गए. उन्हीं दिनों 1958 में राज खोसला देवानंद और वहीदा रहमान स्टार्र फिल्म बना रहे थे.. सोलहवां साल. म्यूज़िक का काम एसडी बर्मन के हिस्से आया. खोसला साहब फिल्म में एक ऐसा गीत चाहते थे जहां देवानंद वहीदा के सामने अपने प्यार का इज़ाहर करें, लेकिन वो गाना स्लो न हो बल्कि फास्ट हो. एसडी बर्मन साहब के लिए ये एक चुनौती थी क्योंकि 1050 के दशक में सारे रोमांटिक गाने स्लो ही हुआ करते थे. ये बात उन्होंने अपने 19 साल के बेटे को बताई. बेटे आर डी बर्मन ने थोड़ी देर सोचा और हारमोनिका बजाने लगे... वो सुनते ही एसडी बर्मन के दिमाग में धुन आयी. हार्मोनियम लेकर वो बैठे और बजाने लगे.
धुन तो तैयार हो गई, मगर आर डी बर्मन इस गाने में हारमोनिका का भी हिस्सा चाहते थे, जो गाने का हुक हो. ये बात उन्होंने पिता के सामने रखी. एसडी साहब सोच में पड़ गए. तभी आर डी बर्मन ने हारमोनिका बजाते हुए एक सुझाव पेश किया. एस डी वो धुन सुनते ही राजी हो गए. 1958 में फिल्म परदे पर आई और है अपना दिल तो आवारा गाने में इस्तेमाल हुआ हारमोनिका जिसे आर डी बर्मन ने बजाया था, आज 60 साल बाद भी लोगों के जेहन में ताज़ा है..
आर डी बर्मन पर बनी डॉक्यूमेंट्री... पंचम अनमिक्सड में गीतकार आशा भोसले ने बताया था कि ऐसे कई गाने रहे जिसे पंचम दा ने कंपोज किया लेकिन वो फिल्मों में एसडी बर्मन के नाम से गए. ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
आर डी बर्मन, एसडी बर्मन को दस साल से असिस्ट कर रहे थे. आर डी अब अपना स्टाइल क्रिएट करना चाहते थे. उनके पिता को भी लगने लगा कि अब पंचम को खुद के पैर पर छोड़ने का वक्त आ गया है. उन्हीं दिनों 1966 में नासिर हुसैन ने कहानी लिखी. फिल्म में देवानंद को साइन कर लिया गया. म्यूज़िक के लिए वो एस डी बर्मन साहब का साथ चाहते थे लेकिन ख़राब सेहत की वज़ह से एस डी साहब ने मना कर दिया. नासिर हुसैन निराश हो गए. लेकिन तभी उनके एसोसिएट मजरूह सुल्तानपुरी ने उनके सामने आर डी बर्मन के नाम का सुझाव रखा. नासिर साहब ने अपनी पिछली तीनों फिल्मों में म्यूज़िक पर एक्सपेरिमेंट किया था और उन्हें आगे भी ऐसा करने में कोई परेशानी नहीं थी. वो पंचम के नाम पर मान तो गए लेकिन तभी एक विपत्ती आन पड़ी. गाइड फिल्म की शूटिंग में उलझे देवानंद नारिस साहब की फिल्म के लिए टाइम नहीं दे पा रहे थे. नतीजतन प्रोडक्शन हाउस ने देवानंद के साथ फिल्म के कॉन्ट्रैक्ट को रद्द कर दिया और फिल्म टल गई. नासिर साहब अब वक्त बर्बाद करने के मूड में नहीं थे. वो फिल्म की शूटिंग जल्द से जल्द शुरू करना चाहते थे. एक दिन अचानक उन्होंने गाड़ी निकाली और शम्मी कपूर के घर पहुंच गए. वहां वो अपने दोस्तों के साथ बैठे ताश खेल रहे थे. नासिर हुसैन ने उन्हें खेल के बीच से उठाया और अपने घर लेकर आ गए. बोले- शम्मी बाबू... मैं एक नई फिल्म बना रहा हूँ... तीसरी मंजिल. देवानंद जी गाइड फिल्म की शूटिंग में व्यस्त हैं और अब मेरी दूसरी पसंद फिल्म के लिए आप हैं. शम्मी कपूर ने स्क्रिप्ट पढ़ी और राजी हो गए, लेकिन उनका अगला सवाल था. गाने में म्यूजिक कौन दे रहा है.
शम्मी कपूर उन दिनों, कश्मीर की कली, जानवर, राजकुमार जैसी हिट फिल्में दे चुके थे. फिल्म के गाने सुपरहिट रहे जिसने दर्शकों के बीच शम्मी कपूर की एक अलग आशिक की इमेज बना दी थी. उनकी ज्यादातर फिल्मों में शंकर जयकिशन या ओपी नय्यर म्यूजिक दिया करते इसलिए तीसरी मंजील में भी वो उन्हें मौका देना चाह रहे थे, लेकिन नासिर साहब ने कहा- इस फिल्म के लिए हमने एस डी बर्मन जी के बेटे आर डी बर्मन को साइन किया है.
शम्मी कपूर अब असमंजस में पड़ गए. उन्होंने तुरंत आर डी बर्मन को बुलावा भेजा और उनसे मिलने को कहा. शम्मी कपूर का संदेश मिलते ही आर डी बर्मन झट उनसे मिलने पहुंचे. शम्मी कपूर ने पंचम दा को देखा और कहा- तो आप म्यूजिक दे रहे हैं मेरी नई फिल्म में. मैं आपकी बनाई कोई धुन सुनना चाहता हूँ.
आर डी साहब के लिए ये कड़ी परीक्षा होने वाली थी, क्योंकि शम्मी कपूर को म्यूजिक पंसद नहीं आई तो उन्हें फिल्म से बाहर कर दिया जाता. डरते डरते आर डी बर्मन ने हारमोनियम खोला और धुन बजाने लगे. शम्मी कपूर आंख बंद कर सुन रहे थे. और बीच में ही बोले- नहीं मजा नहीं आ रहा. कुछ और सुनाओ.
इतना सुनते ही पंचम दा ने शम्मी कपूर और नासिर साहब से इजाजत ली और कमरे के बाहर आ गए. थोड़ी देर बाद वो अंदर गए और धुन बजाने लगे..
आर डी बर्मन अभी धुन पूरा बजाते ही कि तभी शम्मी कपूर ने बीच में टोका और बोले- तुम टेस्ट पास कर गए. तुम ही मेरे म्यूज़िक डायरेक्टर होगे.
तीसरी मंजिल, आर डी बर्मन के लिए सबसे बड़ा ब्रेक था जिसने देखते ही देखते इंडस्ट्री में उन्हें हिट म्यूजिक डायरेक्टर का खिताब दे दिया..
तीसरी मंजिल के बाद शम्मी कपूर को अपनी फिल्मों को लिए शंकर-जय किशन और ओ पी नय्यर का ऑप्शन मिल चुका था.. आर डी बर्मन. आर डी बर्मन और शम्मी कपूर की जोड़ी ने इसके बाद कई फिल्मों में हिट्स पर हिट्स दिए. ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
लक्ष्मीकांत- प्यारेलाल, शंकर-जयकिशन जैसे duo म्यूज़िक डायरेक्टर के बीच आर डी बर्मन अकेले दम पर लगातार हिट्स पर हिट्स दिए जा रहे थे. इसी कड़ी में उनके हाथ एक और फिल्म लगी... सुनील दत्त, महमूद, किशोर कुमार और वहीदा रहमान स्टारर.. पड़ोसन. फिल्म में एक सीन था जहां महमूद और सुनील दत्त के बीच सुरों की प्रतिस्पर्धा होनी थी. डायरेक्टर ज्योति स्वरूप चाहते थे कि आर डी साहब एक ऐसा गाना बनाए जो आजतक न बनाया जा सका हो. अब पंचम दा असमंजस में पड़ गए. फिर उन्होंने कुछ सोचा और अशोक कुमार का गाना सुनने लगे..
ये गाना खत्म हुआ तो लता मंगेशकर का गाना, चंदा से जा रे जा सुनना शुरू किया. देखते ही देखते 10-12 कसेट्स प्ले कर डाले और फिर हारमोनियम लेकर बैठे. कुछ दिनों बाद गाना बन गया.
गाने को किशोर कुमार और मन्ना डे गाने वाले थे. स्क्रिप्ट की मांग थी कि किशोर कुमार से मन्ना डे को गाने में हार जाना है. मन्ना डे क्लासिक ट्रेंड सिंगर, वो अड़ गए कि मैं गाने में हारने वाला पार्ट नहीं करूंगा. किशोर क्लासिक ट्रेंड नहीं है, हारना उसे चाहिए. बहुत मान मनौव्वल के बाद मन्ना डे मान गए. रिकॉर्डिंग वाले रोज़ 9 घंटे तक प्रैक्टिस चली और अब बारी लाइव रिकार्डिंग की थी. किशोर कुमार और मन्ना डे ने गाना शुरू किया. गाना अपने चरम पर था कि उसी दौरान किशोर कुमार ने अपनी तरफ से गाने को इंप्रोवाइज करना शुरू कर दिया..
इस हरकत ने मन्ना डे को अचरज में डाल दिया, वो भी ओ अय्यो कर के इम्प्रोवाइज करने लगे. आर डी बर्मन ने म्यूजिक बजाते रहने का इशारा किया और इसी गुत्थम गुत्थी में गाना तैयार हुआ.. एक चतुर नार करके सिंगार, ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
करीब डेढ़ दशक से म्यूज़िक इंडस्ट्री पर राज कर रहे आ डी बर्मन का बुरा दौर भी आया, उनकी लगातार 20 से ज्यादा फिल्में फ्लॉप हो गईं. नतीजतन सारे डॉयरेक्टर्स उनसे कन्नी काटने लगे. गीतकार और लेखक जावेद अख़्तर ने एक इंटरव्यू में कहा था कि एक समय जहां आर डी बर्मन के घर डॉयरेक्टर्स की लाइन लगी होती थी, 1980 दशक के शुरुआत से वो जगह सुनसान होने लगी. कोई डायरेक्टर अगर पंचम दा के पास फिल्म लेकर जाता तो दूसरा डायरेक्टर कहता कि पंचम को फिल्म में लेकर क्यों फिल्म की दुर्गति करवाना चाहते हो. तीसरी मंजिल से आर बर्मन को बड़ा ब्रेक देने वाले नासिर हुसैन भी अपनी नई फिल्म कयामत से कयामत तक में आर डी बर्मन को लेने के लिए तैयार नहीं थे. राम लखन फिल्म बना रहे सुभाष घई ने भी आर डी बर्मन से वादा कर म्यूज़िक का काम लक्ष्मीकांत प्यारे लाल को दे दिया था. ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
जिस मौके का इंतज़ार आर डी बर्मन कर रहे थे, वो मौका उन्हें मिला. विधू विनोद चोपड़ा, अनिल कपूर और मनीषा कोइराला स्टारर 1942 लव स्टोरी फिल्म बना रहे थे. सबके मना करने के बावजूद उन्होंने आर डी बर्मन को अपनी फिल्म में साइन किया और साथ में बैठ कर उनका गाना सुनने लगे..
आर डी बर्मन अपनी वापसी के लिए जी जान से जुटे हुए थे, लेकिन विधू को पंचम दा की धून सुन कर मज़ा नहीं आ रहा था. वो बार बार उनकी बनाई धून रिजेक्ट कर रहे थे. ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
फिल्म के गाने बन कर तैयार हो गए. 1994 अप्रैल में फिल्म रिलीज होनी थी. जल्द ही मार्केट में गाने भी आने वाले थे लेकिन उससे पहले ही 4 जनवरी 1994 को आर डी बर्मन का हार्ट अटैक से देहांत हो गया. वो अपना कम बैक न देख सके, वो उस प्यार को न देख सके जो 1942 लव स्टोरी के गाने को लोगों से मिला और जो आज भी उनके जुबान पर चढ़ा रहता है. ‘नामी गिरामी’ में सुनने के लिए क्लिक करें.
1942 लव स्टोरी मूवी के लिए आर डी बर्मन को बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का फिल्म फेयर अवार्ड मिला. लेकिन अफसोस कि वो इसे लेने के लिए हमारे बीच मौजूद नहीं थे. आर डी बर्मन को किंग को म्यूज़िक कहा जाता है. उनकी बनाई धुन पर म्युजिक पढ़ाने वाली यूनिवर्सिटी रिसर्च करती हैं और दावा करती हैं कि पंचम दा अपने वक्त से बहुत आगे थे और उसी सोच ने उन्हें हिंदी सिनेमा का सबसे प्रसिद्ध म्यूजिक डायरेक्टर बनाया.
सूरज कुमार