ताशकंद में शास्त्री जी की मौत या हत्या, आखिर क्यों उठते रहे हैं सवाल?

ताशकंद में उस रात ऐसा क्या हुआ था कि अचानक शास्त्री की मौत हो गई. ये आज भी हिंदुस्तान में चर्चा का विषय बना रहता है. उस दिन के बाद देश में कई सरकारें बदल चुकी हैं लेकिन किसी ने भी इस रहस्य से पर्दा नहीं उठाया.

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ताशकंद में 11 जनवरी को हुई लाल बहादुर शास्त्री की मौत ताशकंद में 11 जनवरी को हुई लाल बहादुर शास्त्री की मौत

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2021,
  • अपडेटेड 7:28 AM IST
  • 11 जनवरी, 1966 को ताशकंद में हुई थी शास्त्री की मौत
  • भारत-पाक लड़ाई के बाद ताशकंद में समझौता हो रहा था
  • समझौते के 12 घंटे बाद अचानक शास्त्री की मौत हो गई

यूं तो देश के तमाम राजनेताओं की मौत सवालों के घेरे में आती रही है लेकिन भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की मौत का रहस्य 55 साल बाद भी जस का तस बना हुआ है. बता दें कि 11 जनवरी, 1966 को लाल बहादुर शास्त्री की मौत ताशकंद में हुई थी.

ताशकंद में उस रात ऐसा क्या हुआ था कि अचानक शास्त्री की मौत हो गई. ये आज भी हिंदुस्तान में चर्चा का विषय बना रहता है. उस दिन के बाद देश में कई सरकारें बदल चुकी हैं लेकिन किसी ने भी इस रहस्य से पर्दा नहीं उठाया. हालांकि विपक्ष के लोग अक्सर मांग करते रहे कि इस मौत के ऊपर से रहस्य का पर्दा हटाया जाए.

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बता दें कि साल 1965 की भारत-पाक लड़ाई के बाद ताशकंद में समझौता हो रहा था. 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद 11 जनवरी के तड़के उनकी अचानक उनकी मौत हो गई थी.

आधिकारिक तौर पर कहा जाता है कि उनकी मौत दिल का दौरा पड़ने से हुई. शास्त्री को दिल से जुड़ी बीमारी पहले से ही थी और 1959 में उन्हें एक हार्ट अटैक भी आया था. इसके बाद उनके परिजन और दोस्त उन्हें कम काम करने की सलाह देते थे. लेकिन 9 जून, 1964 को देश का प्रधानमंत्री बनने के बाद उन पर काम का दबाव बढ़ता ही चला गया.

ताशकंद में हो रहा था समझौता

बता दें कि 1965 में भारत-पाकिस्तान के बीच अप्रैल से 23 सितंबर के बीच 6 महीने तक युद्ध चला था. युद्ध खत्म होने के 4 महीने बाद जनवरी, 1966 में भारत-पाकिस्तान के शीर्ष नेता तब के रूसी क्षेत्र में आने वाले ताशकंद में शांति समझौते के लिए इकट्ठा हुए थे. पाकिस्तान की ओर से राष्ट्रपति अयूब खान वहां गए थे. जबकि भारत की तरफ से तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री पहुंचे थे. 10 जनवरी को दोनों देशों के बीच शांति समझौता हो गया था.

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ताशकंद में भारत-पाकिस्तान समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद शास्त्री पर भारी दबाव था. पाकिस्तान को हाजी पीर और ठिथवाल वापस देने के कारण शास्त्री की भारत में काफी आलोचना हो रही थी. यही नहीं उनकी पत्नी भी इस फैसले को लेकर गुस्से में थीं.

शास्त्री के फैसले से नाराज थीं पत्नी

लाल बहादुर शास्त्री के साथ उनके सूचना अधिकारी कुलदीप नैय्यर भी ताशकंद गए थे. नैय्यर ने बीबीसी को दिए इंटरव्यू में बताया था, "उस रात लाल बहादुर शास्त्री ने घर पर फोन मिलाया था. जैसे ही फोन उठा, उन्होंने कहा अम्मा को फोन दो. उनकी बड़ी बेटी फोन पर आई और बोलीं अम्मा फोन पर नहीं आएंगी. उन्होंने पूछा क्यों? जवाब आया इसलिए क्योंकि आपने हाजी पीर और ठिथवाल पाकिस्तान को दे दिया. वो बहुत नाराज हैं. शास्त्री को इससे बहुत धक्का लगा. कहते हैं इसके बाद वो कमरे का चक्कर लगाते रहे. फिर उन्होंने अपने सचिव वैंकटरमन को फोन कर भारत से आ रही प्रतिक्रियाएं जाननी चाहीं. वैंकटरमन ने उन्हें बताया कि तब तक दो बयान आए थे, एक अटल बिहारी वाजपेई का था और दूसरा कृष्ण मेनन का और दोनों ने ही उनके इस फैसले की आलोचना की थी."

समझौते के 12 घंटे के भीतर उनकी अचानक मौत हो गई. क्या उनकी मौत सामान्य थी या फिर उनकी हत्या की गई थी. कहा जाता है कि समझौते के बाद कई लोगों ने शास्त्री को अपने कमरे में परेशान हालत में टहलते देखा था.

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कुलदीप नैय्यर ने अपनी किताब में 'बियोंड द लाइन' में लिखा है, "उस रात मैं सो रहा था, अचानक एक रूसी महिला ने दरवाजा खटखटाया. उसने बताया कि आपके प्रधानमंत्री मर रहे हैं. मैं जल्दी से उनके कमरे में पहुंचा. मैंने देखा कि रूसी प्रधानमंत्री एलेक्सी कोस्गेन बरामदे में खड़े हैं, उन्होंने इशारे से बताया कि शास्त्री नहीं रहे."

उन्होंने देखा कि उनका चप्पल कॉरपेट पर रखा हुआ है और उसका प्रयोग उन्होंने नहीं किया था. पास में ही एक ड्रेसिंग टेबल था जिस पर थर्मस फ्लास्क गिरा हुआ था जिससे लग रहा था कि उन्होंने इसे खोलने की कोशिश की थी. कमरे में कोई घंटी भी नहीं थी.

शास्त्री के साथ भारतीय डेलिगेशन के रूप में गए लोगों का भी मानना था कि उस रात वो बेहद असहज दिख रहे थे. कुलदीप को शास्त्री के पर्सनल सेक्रेटरी जगन्नाथ सहाय ने बताया था कि रात को शास्त्री ने जगन के दरवाजे पर नॉक किया और पानी मांगा. पर दोनों के कमरे के बीच की दूरी अच्छी-खासी थी. इतना चलने और दरवाजा खोलने, नॉक करने की वजह से शास्त्री का हार्ट अटैक ज्यादा खतरनाक हो गया था.

तो क्या शास्त्री के खाने में था जहर!

कुछ लोग दावा करते हैं कि जिस रात शास्त्री की मौत हुई, उस रात खाना उनके निजी सहायक रामनाथ ने नहीं, बल्कि सोवियत रूस में भारतीय राजदूत टीएन कौल के कुक जान मोहम्मद ने पकाया था. खाना खाकर शास्त्री सोने चले गए थे. उनकी मौत के बाद शरीर के नीला पड़ने पर लोगों ने आशंका जताई थी कि शायद उनके खाने में जहर मिला दिया गया था.

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शास्त्री के पार्थिव शरीर को भारत भेजा गया. शव देखने के बाद उनकी पत्नी ललिता शास्त्री ने दावा कि उनकी मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई है. अगर दिल का दौरा पड़ा तो उनका शरीर नीला क्यों पड़ गया था और सफेद चकत्ते कैसे पड़ गए. शास्त्री का परिवार उनकी मौत पर लगातार सवाल खड़ा करता रहा. 2 अक्टूबर, 1970 को शास्त्री के जन्मदिन के अवसर पर ललिता शास्त्री ने उनके निधन के जांच की मांग की थी.

इन दो मौतों ने बढ़ा दिया था संशय

इस मामले में एक और चौंकाने वाली बात थी. सरकार द्वारा शास्त्री की मौत पर जांच के लिए एक जांच समिति का गठन करने के बाद उनके निजी डॉक्टर आरएन सिंह और निजी सहायक रामनाथ की मौत अलग-अलग हादसों में हो गई. खास बात यह थी कि ये दोनों लोग शास्त्री के साथ ताशकंद के दौरे पर गए थे. उस समय माना गया था कि इन दोनों की हादसों में मौत से केस काफी कमजोर हो गया था.

इस बात पर भी उठते रहे हैं सवाल

लाल बहादुर शास्त्री के शव का पोस्टमार्टम भी नहीं कराया गया था. कहा जाता है कि अगर उस समय पोस्टमार्टम कराया जाता तो उनकी मौत की असली वजह सामने आ सकती थी. एक प्रधानमंत्री की अचानक मृत्यु हो जाने के बाद भी उनके शव का पोस्टमार्टम नहीं कराया जाना हमेशा ही संदेह के दायरे में रहा है.

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बेहद सामान्य घर से देश के शीर्ष नेता तक का सफर करने वाले स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहुादुर शास्त्री की मौत पर रूसी कनेक्शन, उनके शव का रंग बदलना और शव का पोस्टमार्टम न किया जाना, ऐसे कई सवाल हैं जो उनकी मौत पर सवाल खड़े करते रहे हैं.

 

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