अफसानों के उस्ताद थे मंटो, लगे थे अश्लील लेखनी के आरोप

मंटो को हिंद-पाक विभाजन के बाद हिंदी-उर्दू साहित्य के बीच पुल का दर्जा प्राप्त है. एक ऐसा लेखक जिसका लिखा हुआ हमारे दौर का दस्तावेज है. 1912 में आज ही के दिन इनका जन्म हुआ था...

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Manto Manto

विष्णु नारायण

  • नई दिल्ली,
  • 11 मई 2016,
  • अपडेटेड 1:05 PM IST

कहते हैं कि दुनिया में ढेरो कलमनिगार हुए लेकिन सआदत अली हसन मंटो की लेखनी से निकली कहानियों की बात ही जुदा है. उनकी लिखावट बहुतों के लिए आग है तो वहीं कइयों के लिए मलहम. उन्हें पढ़ना खुद को गुनना है. उसे पढ़ते हुए आप एक ही समय में रीतते और भरते जाते हैं.

अफसानागिरी का यह उस्ताद उर्दू साहित्य का कालजयी लेखक माना जाता है. उनकी लेखनी हमारे लिए उस दौर का दस्तावेज है. मंटो साल 1912 में 12 मई को पैदा हुए थे.

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1. 24 साल की उम्र में मंटो का उर्दू में छोटी कहानियों का पहला संस्करण 'आतिश पारे' छपा था.

2. साल 1936 में बनने वाली फिल्में 'किशन कन्हैया' और 1939 में रिलीज होने वाली 'अपनी नगरिया' की पटकथा और डायलॉग भी मंटो ने लिखे थे.

3. बू, खोल दो, ठंडा गोश्त और टोबा टेक सिंह के शीर्षक से लिखी गई कहानियां किसी के भी रोंगटे खड़ी कर सकती हैं.

4. पाकिस्तान ने उन्हें निशान-ए-इम्तियाज से नवाजा और उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया.

5. उन्हें 3 बार हिंदुस्तान और बंटवारे के बाद 3 बार पाकिस्तान में अश्लील साहित्य रचने के आरोप लगे, हालांकि वे दोषी साबित नहीं हुए.

6. मंटो को विभाजित हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच का पुल माना जाता है. वे कहते थे कि एक लेखक तभी अपनी कलम उठाता है जब उसकी संवेदनाओं पर किसी ने चोट की हो.

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