Advertisement

इतिहास

World Water Day 2022: हजार साल से भी पुरानी दिल्‍ली की ये बावली, ग्राउंड-रेन वाटर हारवेस्टिंग के हैं शानदार नमूने

वरुण सिन्हा
  • नई दिल्ली,
  • 22 मार्च 2022,
  • अपडेटेड 3:22 PM IST
  • 1/9

दिल्‍ली में ऐसी कई बावलियां देखी जा सकती हैं जो वाटर हारवेस्टिंग का शानदार उदाहरण हैं. बावलियों को देखो तो लंबी-लंबी सीढ़ियां, गहराई में पानी के जमाव की वो जगह नजर आती है, जो बताती है कि 1000 साल से भी पुरानी इन बावलियां में ज्‍यादा कुछ बदला नहीं है.

  • 2/9

कहते हैं कि एक जमाने मे यमुना का जल पीने लायक नहीं था. शाहजहां ने कोशिश तो बहुत की कि यमुना के पानी को नहर के माध्यम से पीने लायक पानी मे बदला जाए, पर ऐसा हो नहीं पाया.

  • 3/9

फिरोज शाह तुगलक के समय से चली आ रही बावलियां का जीणोद्धार कराया गया. साथ ही माना जाता है कि करीब 200 साल पहले तक दिल्ली शहर में 135 से ज्यादा बावलियां थी पर समय के साथ सब खत्म होती चली गई हैं.

Advertisement
  • 4/9

आज के दौर के हिसाब से सोचा जाए तो बावलियों से सबसे बड़ा फायदा ग्राउंड वाटर की जरूरत को पूरा करना ही था. इनका रेन वाटर के स्टोरेज के रूप में भी प्रयोग किया गया है.

  • 5/9

इतिहासकार सुहेल हाशमी कहते है कि ये बावलियां उस समय के सिस्टम में महत्वपूर्ण रोल अदा करती थीं. जहां कुआं होता था वहीं बावली का निर्माण भी देखा गया है.

  • 6/9

बावलियों के प्रयोग की बात करें तो पिछले 800 से 1000 साल में हर किसी ने पानी को स्टोर करने की इस टेक्निक पर काम किया है.

Advertisement
  • 7/9

फिलहाल अब भी कई बावलियां ऐसी हैं, जिनमे प्राकृतिक स्त्रोत के जरिये अंडर ग्राउंड वाटर देखा जा सकता है. वहीं दिल्ली में कई इलाके ऐसे हैं, जहां ग्राउंड वाटर बहुत नीचे जा चुका है.

  • 8/9

दिल्ली सरकार ने पिछले 3 साल में दिल्ली में 18 से ज्यादा बावलियों के रख रखाव का प्रयास किया, जिसकी तस्वीर ये है कि अब कई जगह पानी बावली में देखा जा सकता है.
 

  • 9/9

दिल्‍ली में न जानें कितनी ऐसी बावली हैं जो केवल नाम की ही रह गयी हैं. अब जो भी बावली बाकी हैं, उनके जरिये ही ग्राउंड वॉटर सिस्टम को ठीक करने का प्रयास सफलतापूर्वक किया जाए तो यह पहल सही मानी जायेगी.

Advertisement
Advertisement
Advertisement