सुप्रीम कोर्ट ने भारत के सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों के शिक्षण संस्थानों के लिए आत्महत्या और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ा एक नया आदेश जारी किया है. इस आदेश के मुताबिक हर राज्य और केंद्र-शासित प्रदेश को आठ हफ्तों के अंदर एक डिटेल्ड रिपोर्ट पेश करनी होगी. इस रिपोर्ट में ये बताना होगा कि वे अपने-अपने स्कूलों और यूनिवर्सिटीज में छात्रों में आत्महत्या के बढ़ते मामलों और मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिए जारी की गई गाइडलाइनों का किस तरह पालन कर रहे हैं.
संस्थानों के लिए 15 गाइडलाइन्स जारी
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप रावत की पीठ ने इस आदेश में सभी संस्थानों को एक मानसिक-स्वास्थ्य नीति अपनाने, इसके लिए पर्याप्त काउंसलर नियुक्त करने या रेफरल लिंकेज सुनिश्चित करने और सभी प्राइवेट कोचिंग सेंटर्स के लिए रजिस्ट्रेशन और ग्रीवांस रेड्रेसल सिस्टम अनिवार्य करने समेत 15 गाइडलाइन्स जारी की.
केंद्र सरकार को भी आदेश
इसके अलावा उन्होंने केंद्र सरकार को अपना कंप्लायंस एफिडेविट (compliance affidavit) दाखिल करने के लिए आठ हफ्तों का समय दिया है. इस एफिडेविट में सरकार ने निर्देशों को लागू करने के लिए अब तक क्या कदम उठाए, इसकी डिटेल देनी होगी.
छात्रों के बिगड़ते मानसिक स्वास्थ्य पर टिप्पणी
कोर्ट ने छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के संरक्षण में गंभीर 'लेजिस्लेटिव और रेगुलेटरी वैक्यूम' का उल्लेख करते हुए इस बात पर जोर दिया कि ये गाइडलाइन्स तब तक प्रभावी रहेंगी जब तक अथॉरिटीज उचित कानून या रेगुलेटरी नियम लागू नहीं करतीं.
पीठ ने कहा कि यह कदम स्कूलों, कॉलेजों और कोचिंग सेंटरों में छात्रों की आत्महत्याओं में खतरनाक वृद्धि के बाद उठाया गया है. उन्होंने संस्थानों से इसपर मिली प्रतिक्रियाओं को बहुत कम बताते हुए चिंता व्यक्त की.
कौन है प्रतिवादी?
हाल ही में हुई सुनवाई के दौरान, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को प्रतिवादी बनाया. इस मामले की अगली सुनवाई जनवरी 2026 में होगी.
इससे पहले केंद्र सरकार को जुलाई में हुए फैसले के बाद 90 दिनों के अंदर एफिडेविट सब्मिट करने का आदेश दिया गया था.
कोचिंग सेंटर्स के लिए प्रावधान
100 या उससे ज्यादा छात्रों वाले कोचिंग संस्थानों को कम से कम एक योग्य काउंसलर नियुक्त करना होगा, जबकि इससे छोटे संस्थानों को औपचारिक रेफरल लिंकेज की जरूरत होगी.
स्टाफ की ट्रेनिंग, करियर काउंसलिंग, सेफ्टी इंफ्रास्ट्रक्चर और टेली-मानस जैसे आत्महत्या-हेल्पलाइन नंबरों की जानकारी को सार्वजनिक जगहों पर लगाना अनिवार्य है.
कोटा, जयपुर और हैदराबाद में प्रतियोगी परीक्षाओं के दबाव में छात्रों की आत्महत्या के ज्यादातर मामले सामने आते हैं.
आत्महत्या के लिए कौन जिम्मेदार?
इस मामले में सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप यह दर्शाता है कि छात्रों का मानसिक स्वास्थ्य और आत्महत्या जैसे मुद्दों के लिए शैक्षिक नीति में बदलाव और संस्थानों की जवाबदेही जरूरी है. नियमों के पालन में देरी या ढिलाई होने पर भविष्य में और निर्देश जारी हो सकते हैं.
aajtak.in