भारतीय सेना ने सीमा पर निगरानी को और मजबूत करने के लिए 20 टैक्टिकल रिमोटली पाइलटेड एयरक्राफ्ट (RPAs यानी ड्रोन) खरीदने की योजना बनाई है. रक्षा मंत्रालय ने इसके लिए भारतीय कंपनियों से जानकारी मांगी है (RFI जारी किया है). इनमें से 10 ड्रोन मैदानी इलाकों के लिए और 10 ऊंचाई वाले क्षेत्रों (हाई एल्टीट्यूड) के लिए होंगे. इससे साफ है कि सेना पाकिस्तान के साथ नियंत्रण रेखा (LoC) और चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) दोनों पर ड्रोन से निगरानी बढ़ाना चाहती है.
ऑपरेशन सिंदूर के बाद सेना ने ड्रोन का इस्तेमाल बहुत बढ़ा दिया है. उस ऑपरेशन में ड्रोन से रियल-टाइम निगरानी, इलाके पर कब्जा बनाए रखना और खतरे की जानकारी लेने में बहुत काम आया. अब मुश्किल इलाकों और विवादित जगहों पर ड्रोन सेना के लिए सबसे महत्वपूर्ण हथियार बन गए हैं. क्योंकि वहां इंसान वाले विमान या हेलीकॉप्टर भेजना जोखिम भरा और मुश्किल होता है.
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अधिकारियों का कहना है कि हाल के ऑपरेशनों से मिले सबक, बदलते युद्ध के तरीके और सीमा पार से ड्रोन गतिविधियों की बढ़ती चिंता के कारण यह कदम उठाया जा रहा है. सेना अब अस्थायी खरीदारी पर निर्भर नहीं रहना चाहती, बल्कि अपने पास मजबूत स्वदेशी टैक्टिकल ड्रोन फ्लीट चाहती है.
यह खरीदारी DAP-2020 नियमों के तहत हो रही है, जिसमें मेक इन इंडिया पर पूरा ध्यान है. सेना भारतीय कंपनियों से ऐसे ड्रोन चाहती है जो ग्राउंड कंट्रोल सिस्टम और सपोर्ट सिस्टम के साथ आएं. RFI का मकसद यह पता लगाना है कि कौन-सी भारतीय कंपनियां यह काम कर सकती हैं. इसके बाद जरूरतें तय की जाएंगी और खरीदारी का रास्ता चुना जाएगा.
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सेना अब ड्रोन को अपनी भविष्य की लड़ाई की रणनीति का मुख्य हिस्सा बनाना चाहती है. इससे सीमा पर लगातार खुफिया जानकारी (Intelligence, Surveillance and Reconnaissance - ISR) मिलती रहेगी. जवानों की सुरक्षा भी बढ़ेगी. यह कदम बताता है कि भारतीय सेना आधुनिक युद्ध के लिए पूरी तरह तैयार हो रही है, जहां ड्रोन अब सबसे अहम भूमिका निभा रहे हैं.
शिवानी शर्मा