आंखों पर पट्टी बांधकर फायरिंग, 47 फुट दीवार पर चढ़ाई... ऐसे तैयार किए जाते हैं दिल्ली पुलिस के स्मार्ट कॉप!

दिल्ली पुलिस के नए रंगरूट जब एकेडमी में कदम रखते हैं तो उन्हें अंदाजा भी नहीं होता कि अगले महीनों में उनका शरीर, दिमाग और हौसले किस स्तर पर तपने वाले हैं. आंखों पर पट्टी बांधकर फायरिंग से लेकर 47 फुट दीवार पर चढ़ने तक हर अभ्यास उन्हें असली मुकाबले के लिए गढ़ता है.

Advertisement
दिल्ली पुलिस के 291 रंगरूटों को ट्रेनिंग के दौरान मुश्किलों से गुजरना पड़ा. (Photo: ITG) दिल्ली पुलिस के 291 रंगरूटों को ट्रेनिंग के दौरान मुश्किलों से गुजरना पड़ा. (Photo: ITG)

आजतक ब्यूरो

  • नई दिल्ली,
  • 01 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 7:57 AM IST

दिल्ली पुलिस के 291 नए रंगरूट इन दिनों ट्रेनिंग के दौर से गुजर रहे हैं. देश की राजधानी की सुरक्षा संभालने से पहले इन्हें जिस फिजिकल और मेंटल ग्राइंड से गुजरना पड़ता है, वो दिल्ली पुलिस को देश की सबसे अनुशासित और सबसे स्मार्ट फोर्स बनाने की रीढ़ है. यहां हर दिन एक युद्ध जैसा है और हर अभ्यास किसी असली ऑपरेशन की तैयारी है.

Advertisement

ट्रेनिंग की सबसे कठिन कड़ी वह सेशन है जिसमें जवानों की आंखों पर पट्टी बांध दी जाती है. कुछ भी देखे बिना हथियार लोड करना, पोजिशन लेना और टारगेट की दिशा का अंदाजा लगाकर फायर करना. इस अभ्यास का मकसद जवानों को उस स्थिति के लिए तैयार करना है जब अंधेरा हो, धुआं हो या दुश्मन सामने न दिख रहा हो. 

उसी के बाद उन्हें FATS यानी फायर आर्म्स ट्रेनिंग सिम्युलेटर में ले जाया जाता है, जहां लेजर-बेस्ड टारगेट्स पर सैकड़ों वर्चुअल शॉट फायर करवाए जाते हैं. असली हथियार हाथ में आने से पहले उनकी उंगलियां मशीन की तरह काम करने लगती हैं. इसके आगे जो दीवार सामने आती है, वह किसी भी आम इंसान के लिए नामुमकिन है. 

47 फुट ऊंची यानी तीन मंजिला इमारत जितनी. लेकिन दिल्ली पुलिस के ये रंगरूट इसे कुछ ही सेकंड में पार कर जाते हैं. चढ़ना ही नहीं, रस्सी के सहारे उसी स्पीड में नीचे उतरने का अभ्यास भी किया जाता है. किसी भी ऑपरेशन में बिल्डिंग की ऊपर या नीचे से एंट्री इन्हें चंद सेकंड में लेनी होती है. ट्रेनिंग ग्राउंड में सबसे मुश्किल ऑब्स्टिकल कोर्स है.

Advertisement

यहां धूप, थकान और मौसम की कोई इजाज़त नहीं है. दीवारें, गड्ढे, बैलेंस बीम, खंभे, ऊंची सीढ़ियां. तापमान 45 डिग्गी तक पहुंच जाए तो भी इनके कदम धीमे नहीं पड़ते. सुबह 6 बजे शुरू हुई ट्रेनिंग कई बार दोपहर 1 बजे तक चलती है. यहां सिर्फ एक नियम है, मिशन पहले, मौसम बाद में. दोपहर में मेस खुलते ही रंगरूट लाइन में लग जाते हैं. 

भोजन यहां ऊर्जा है, आराम नहीं. थोड़ी देर की राहत के बाद दोबारा फायरिंग रेंज में रिपोर्ट करना होता है. पहली बार जब MP-5 हथियार इनके हाथों में आता है तो ये इसे ताकत से ज्यादा जिम्मेदारी के तौर पर पकड़ते हैं. आदेश के मिलते ही पोजिशन लेते हैं, हथियार लोड करते हैं और टारगेट को अचूक निशाने से खत्म कर देते हैं. 

लॉन्ग, मिड और शॉर्ट रेंज, हर दूरी पर इनका फोकस एक जैसा रहता है. शाम ढलते ही ट्रेनिंग खत्म नहीं होती. शाम 5 बजे से फिर शुरू होती है बॉडी-टोनिंग, एंड्योरेंस और स्ट्रेंथ की परीक्षा. शरीर दिनभर में टूट चुका होता है, लेकिन दिमाग जानता है कि पुलिस की ड्यूटी 9 से 5 नहीं होती. यहां हर दिन, हर सेकंड अप्रत्याशित होता है.

ये 291 रंगरूट सिर्फ पुलिसकर्मी नहीं, दिल्ली पुलिस के भविष्य के चेहरे हैं. इनमें महिला पुलिस भी शामिल हैं जो बराबर की मेहनत और फायरिंग करती हैं. इनका पासिंग-आउट सिर्फ एक समारोह नहीं बल्कि 2.5 करोड़ लोगों से किया गया सुरक्षा वादा है. नजफगढ़ की विशाल 242 एकड़ की दिल्ली पुलिस एकेडमी सिर्फ फिजिकल ट्रेनिंग का मैदान नहीं है. 

Advertisement

यहां IPC, CrPC, साक्ष्य कानून, साइबर फ्रॉड, केस स्टडीज़ सब पढ़ाया जाता है. क्लासरूम हैं, लाइब्रेरी है और मेंटल हेल्थ ट्रेनिंग भी. इसी वजह से इसे पुलिस स्कूल से पुलिस कॉलेज और अब एकेडमी का दर्जा मिला है. जिन ड्रिल इंस्ट्रक्टर्स के हाथों में इन जवानों को सौंपा जाता है, वे खुद BSF, CRPF, NSG जैसी फोर्सेज से ट्रेनिंग प्राप्त कर चुके होते हैं. 

वही सख्ती, वही अनुशासन वे इन रंगरूटों में उतारते हैं और हर दिन उन्हें ऐसा बनाते हैं कि वे किसी भी कठिन परिस्थिति में टिक सकें. ट्रेनिंग की आखिरी रात जवान थके हुए बिस्तर पर जाते हैं, लेकिन जानते हैं कि अगले दिन उन्हें उस मैदान में उतरना है जहां भीड़ भी होगी, आंसू गैस भी, साइबर क्राइम भी और कभी गोली भी चलानी पड़ सकती है. 

दिल्ली पुलिस की यूनिफॉर्म पहनने के साथ ही वे राजधानी के हर नागरिक की सुरक्षा की जिम्मेदारी अपने कंधों पर उठा लेते हैं.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement