34 साल बाद इंसाफ... आगरा के 'पनवारी कांड' में 36 लोग दोषी करार, 15 बरी, खुली अदालत में होगा सजा का ऐलान

उत्तर प्रदेश के आगरा के चर्चित पनवारी कांड में 34 साल बाद आखिरकार कोर्ट का फैसला आ गया. आगरा की एससी-एसटी विशेष अदालत ने इस ऐतिहासिक फैसले में 36 आरोपियों को दोषी करार दिया है, जबकि 15 को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है. तीन आरोपी आज भी फरार हैं. उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किए गए हैं.

Advertisement
(प्रतीकात्मक तस्वीर) (प्रतीकात्मक तस्वीर)

आजतक ब्यूरो

  • ,
  • 28 मई 2025,
  • अपडेटेड 4:59 PM IST

उत्तर प्रदेश के आगरा के चर्चित पनवारी कांड में 34 साल बाद आखिरकार कोर्ट का फैसला आ गया. आगरा की एससी-एसटी विशेष अदालत ने इस ऐतिहासिक फैसले में 36 आरोपियों को दोषी करार दिया है, जबकि 15 को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया गया है. तीन आरोपी आज भी फरार हैं. उनके खिलाफ गैर-जमानती वारंट जारी किए गए हैं. यह केस साल 1990 में हुई भयावह जातीय हिंसा से जुड़ा है.

Advertisement

इस कांड ने पूरे देश को दहला दिया था. कुल 80 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल हुई थी. इनमें 27 की मौत हो चुकी है. 31 लोगों की गवाही के बाद कोर्ट ने 32 दोषियों को जेल भेज दिया है. एक नाबालिग आरोपी का मामला जुवेनाइल कोर्ट में है. इस मामले में भारतीय दंड संहिता की धाराएं 148, 149, 323, 144, 325, 452, 436, 427, 504, 395 और SC/ST एक्ट की धारा 3/2/5 लगाई गई थीं. 

क्या था पनवारी कांड?

21 जून 1990. आगरा के सिकंदरा थाना क्षेत्र के गांव पनवारी में जाटव समाज की एक बेटी की बारात पहुंची थी. लेकिन जातीय तनाव उस वक्त उबल पड़ा जब आरोप है कि जाट समुदाय के लोगों ने बारात को अपने घर के सामने से गुजरने से रोक दिया. विवाद ने तेजी से आग पकड़ी और हिंसा भड़क गई. देखते ही देखते गांव में दंगे जैसे हालात बन गए. कई घरों को आग के हवाले कर दिया गया. 

Advertisement

आगरा पहुंचे थे राजीव गांधी

मारपीट, लूटपाट और उपद्रव पूरे इलाके में फैल गया. हालात इतने बिगड़े कि पूरे आगरा शहर में कर्फ्यू लगाना पड़ा. इस जातीय हिंसा की गूंज दिल्ली तक पहुंची. तत्कालीन विपक्ष के नेता और पूर्व प्रधानमंत्री स्व. राजीव गांधी खुद आगरा पहुंचे और पीड़ितों से मुलाकात की थी. उस समय आगरा से सांसद रहे अजय सिंह, जो केंद्र में मंत्री भी थे, उन्होंने दंगों को शांत कराने के लिए दोनों पक्षों से बात की थी.

कब-कैसे दर्ज हुआ मुकदमा

22 जून 1990 को सिकंदरा थाने में तत्कालीन एसओ ओमवीर सिंह राणा ने एक राहगीर की सूचना पर एफआईआर दर्ज कराई. 6000 अज्ञात लोगों के खिलाफ बलवा, जानलेवा हमला, एससीएसटी एक्ट और कई गंभीर धाराओं में लिखा गया. इसके बावजूद मौके से एक भी गिरफ्तारी नहीं हो सकी. पुलिस ने इस मामले की जांच के बाद कुल 80 आरोपियों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की थी. 

हाई-प्रोफाइल आरोपी और कोर्ट

इस मामले में भाजपा विधायक चौधरी बाबूलाल भी आरोपी थे. लेकिन उन्हें साल 2022 में एमपी-एमएलए कोर्ट से बरी कर दिया गया था. अब कोर्ट ने बाकी आरोपियों के मामले में सुनवाई पूरी कर ली है. कोर्ट ने 35 गवाहों के बयान सुने हैं. सुबूतों की कसौटी पर 36 लोगों को दोषी करार दिया गया है. इनमें से 32 को कोर्ट ने तुरंत जेल भेज दिया, बाकी की सजा 30 मई को खुले अदालत में सुनाई जाएगी.

Advertisement

खुली अदालत में सजा का ऐलान

इस मामले में जिला शासकीय अधिवक्ता (फौजदारी) बसंत गुप्ता ने कहा, "ये घटना 24 से 1990 दोपहर की है. अकोला गांव में लूटपाट और मारपीट की गई थी. यह घटना जाटव समाज के लोगों के साथ हुई थी. इसमे मुकदमा ओमपाल राणा ने लिखाया था. विवेचना के उपरांत 72 लोगों के खिलाफ अदालत में चार्जशीट दाखिल हुई थी. इस दौरान 22 लोगों की डेथ हो गई. एससीएसटी अदालत ने आज 35 लोगों पर दोष सिद्ध कर दिया है. हालांकि, सबूतों के अभाव में 15 लोगों को बरी कर दिया गया है. सजा का ऐला 30 मई को खुली अदालत में होगा."

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement