कौन था मोहम्मद रज़ा पहलवी, जिसे ईरान से बचाता रहा अमेरिका?

बारूद का ढेर बन गया है खाड़ी इलाका. खाड़ी में हथियारों का ज़खीरा इकट्ठा किया गया. इसी वजह से ईरान-अमेरिका के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. आखिर अमेरिका और ईरान के बीच से टसल क्यों हैं.

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अमेरिका और ईरान के बीच कई समय से तनाव के हालात है अमेरिका और ईरान के बीच कई समय से तनाव के हालात है

परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 14 अगस्त 2019,
  • अपडेटेड 5:07 PM IST

ये कहानी जहां पर खत्म हुई. दरअसल वहीं से शुरू होती है. साल 1979 में ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति के बाद सबसे पहला शिकार राजधानी तेहरान में अमेरिकी दूतावास ही बना था. हज़ारों लाखों छात्रों की भीड़ ने अमेरिकी दूतावास पर चढ़ाई कर दी. और वहां काम कर रहे अमेरिकी अधिकारियों और कर्मचारियों को बंधक बना लिया. उनकी एक ही मांग थी. अमेरिका फौरन मोहम्मद रज़ा पहलवी को ईरान वापस भेजे ताकि ये मुल्क उसके किए का उससे हिसाब ले सके. पर कौन था मोहम्मद रज़ा पहलवी? अमेरिका उसे क्यों बचा रहा था. और ईरान के लोग उसे क्यों सजा देना चाहते थे?

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बारूद का ढेर बन गया है खाड़ी इलाका. खाड़ी में हथियारों का ज़खीरा इकट्ठा किया गया. इसी वजह से ईरान-अमेरिका के बीच तनाव बढ़ता जा रहा है. आखिर अमेरिका और ईरान के बीच से टसल क्यों हैं. क्यों दोनों मुल्क एक दूसरे को फूटी आंख नहीं सुहाते हैं. क्यों दोनों के बीच हमेशा जंग जैसे हालात रहते हैं.

ईरान में इस्लामिक क्रांति हो चुकी थी. जनवरी 1979 आते आते पूरे ईरान में हालात गृह युद्ध जैसे हो गए थे. वहां नागरिक और प्रदर्शनकारी निर्वासन झेल रहे अयातोल्लाह खोमैनी को वापस बुलाने की मांग कर रहे थे. सेना उन पर गोलियां चला रही थी. इसी दौरान हिंसक भीड़ का सबसे पहला शिकार राजधानी तेहरान में स्थित अमेरिकी दूतावास ही बना.

हज़ारों लाखों छात्रों की भीड़ ने अमेरिकी दूतावास पर चढ़ाई कर दी और वहां काम कर रहे अमेरिकी अधिकारियों और कर्मचारियों को बंधक बना लिया. उनकी एक ही मांग थी, अमेरिका फौरन मोहम्मद रज़ा पहेलवी को ईरान वापस भेजे ताकि ये मुल्क उसके किए का उससे हिसाब ले सके.

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उधर, अयातुल्लाह खोमैनी ने 14 साल बाद अपने देश वापस लौटने का एलान कर दिया. वह काफी समय से फ्रांस में निर्वासन काट रहे थे. 12 फरवरी को जब खोमैनी पेरिस से ईरान की राजधानी तेहरान पहुंचे तो वहां क्रांतिकारी समूह के नेताओं ने खोमैनी का जोरदार स्वागत किया. इसी के बाद ईरान में नया दौर शुरू हो गया था.

सदियों से गरीबी का दंश झेल रहे अरब देशों में तेल और गैस के भंडार किसी नेमत की तरह निकले थे. जो उनकी गरीबी और पिछड़ेपन को दूर करने जा रहे थे. मगर ऊपरवाले की इन नेमतों पर नज़र पश्चिमी देशों की भी थी. क्योंकि दो दो विश्वयुद्ध लड़ने के बाद किसी खास देश की नहीं बल्कि पूरी दुनिया की ही अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी थी.

दरअसल, हर कोई अरब देशों में फूटी तेल की इसी गंगा में हाथ धो लेना चाहता था. खासकर अमेरिका, ब्रिटेन और सोवियत यूनियन. मगर 50 के दशक में अमेरिका सुपर पॉवर बन चुका था लिहाज़ा दुनिया के हर कोने में उसने दखल देना शुरू कर दिया. कुछ जगहों पर उसे कामयाबी मिली लेकिन ईरान में वो नाकामयाब रहा.

ईरान में अमेरिका का हनीमून पीरियड अब बस खत्म होने वाला था. क्योंकि उनके इस मखमली रास्ते में चट्टान की तरह खड़े होने वाले थे अयातुल्लाह रुहुल्लाह खुमैनी. जो अमेरिका को ईरानी लोगों की ज़बरदस्ती की दोस्ती के बाद ज़बरदस्त दुश्मनी दिखाने वाले थे.

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