झारखंड की राजधानी से महज 45 किमी दूर प्रकृति के गोद मे बसे 53 परिवार के इस कस्बे का नाम है सरंजाम इकर. ये कोरोना को महामारी नहीं मानते हैं और न हीं उन्हें इस बीमारी से डर है. यही कारण है कि ये लोग न तो किसी भी गाइडलाइन का पालन करते और नाहीं मास्क लगाए दिखते हैं. अभी तक इन लोगों ने कोरोना का वैक्सीन भी नहीं लिया है. ये परिवार गुजरात के कुंवर केशरी के अनुयायी हैं. ये लोग आज भी तमाम बीमारी जैसे बुखार, सर्दी, खांसी, पेट खराब होने पर जड़ी बूटी का ही सहारा लेते हैं. इनका विश्वास है कि प्रकृति द्वारा दिए गए रोग का इलाज भी प्रकृति के पास ही है.
बुंडू प्रखंड के सरंजाम इकर कस्बा में 53 परिवार रहते हैं. यहां के लोग गुजरात के कुंवर केशरी के अनुयायी हैं और खुद को कुटुंब परिवार का सदस्य मानते हैं, जिनका अटूट विश्वास प्रकृति और सृष्टिकर्ता पर है, लिहाजा न तो ये किसी कोरोना बीमारी को मानते हैं और नाहीं वैक्सीन लेना चाहते हैं. सबकुछ इनके जीवन में प्रकृति पर आधारित है. वैद्य महेंद्र मुंडा ने बताया कि वे किस प्रकार बुखार, सर्दी, खांसी, दस्त और अन्य मर्ज का इलाज करते हैं. इसके साथ ही उन्होंने ये भी बताया कि उनके कस्बे के हर घर में अशोक स्तंभ क्यों है. यहां लगे पोस्टर में रोगों के कारगर इलाज का दावा भी किया जा रहा है.
वैद्य कुंवर सिंह मुंडा और बरगे मुंडा एवं अन्य सभी ने एक सुर से कहा कि वो कोरोना नहीं जानते. उन्होंने कहा कि अगर कोई समस्या हुई तो यहीं आते हैं और जड़ी बूटी ही लेते हैं. उन्होंने बताया कि एक व्यक्ति ने एक डोज वैक्सीन का लिया तो उसे 7 दिनों तक बुखार आ रहा था, लिहाजा फिर उसने वैद्य की शरण में ही जाना उचित समझा और जड़ी बूटी से ही उसका मर्ज ठीक हुआ. बिमल मुंडा बुंडू प्रखंड में काम करते हैं. इनका कहना है कि इनका वश चलता तो ये भी वैक्सीन नहीं लेते, लेकिन ब्लॉक के स्टाफ हैं, तो मजबूरी में उन्हें वैक्सीन लेनी ही पड़ी, लेकिन दूसरे डोज के लिए सोचेंगे. इनका भी मानना है कि कोरोना के जो सिम्पटम हैं सर्दी, खांसी, बुखार, पेट खराब या कुछ और ये आदि काल से ही दिखते रहे हैं. उसका इलाज प्रकृति के पास है और जड़ी बूटियों से संभव है.
यहां के लोगों का मानना है कि प्रकृतिक इलाज का कोई विकल्प नहीं है. जड़ी बूटियों में भी इतना दम है कि इसके सहारे कोरोना से जंग जीती जा सकती है. ये तो एक गांव की बानगी है, लेकिन खूंटी, गुमला, चाईबासा और दूर दराज के कई ऐसे गांव और कस्बे हैं, जहां अभी भी जिंदगी जड़ी बूटी पर निर्भर है. जागरूकता का अभाव साफ दिखता है. लोगों के मन मे वैक्सीन को लेकर विश्वास नहीं है. लिहाजा सरकार के लिए चुनौती है कि कैसे ग्रामीण इलाकों को कोरोना के खिलाफ जंग के लिए तैयारी की जा सकेगी.
सत्यजीत कुमार / अरविंद शर्मा